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बजट 2024 में कैपिटल गेन टैक्स बढ़ाने के मायने

बजट में पूंजीगत लाभ पर कराधान कारोबारी व्यवहार में बदलाव लाने में मदद करने के साथ असमानता की समस्या दूर कर सकता है। बता रही हैं आर कविता राव

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आर कविता राव   
Last Updated- August 02, 2024 | 10:08 PM IST

पूंजी एक से दूसरे देश में जाने से दुनिया के देशों को कमोबेश स्थिर श्रम आय पर कराधान के बराबर पूंजीगत आय पर कर लगाने में चुनौती पेश आ रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी का अंतरण व्यक्तियों और कंपनियों दोनों के माध्यमों से होता है। जी20 की आधार क्षरण एवं लाभ अंतरण (बीईपीएस) परियोजना ने वैश्विक स्तर पर उपस्थिति रखने वाली कंपनियों से जुड़े विषयों को केंद्र में ला खड़ा किया है।

पिलर 1 और पिलर 2 के रूप में प्रशासनिक एवं कराधान उपायों के माध्यम से इसके समाधान के प्रस्ताव दिए जा रहे हैं। यह दृष्टिकोण देशों के बीच आपसी समन्वय के साथ कर प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता है जिससे कर वंचना की आशंका कम हो जाएगी। इन चर्चाओं के साथ व्यक्तियों, खासकर धनाढ्य निवेशकों पर कर लगाने से जुड़ी चिंता भी उभर रही है।

ब्राजील में जी20 समूह देशों के सम्मेलन में चर्चा के लिए एक प्रस्ताव रखा गया था, जिसमें अरबपतियों की संपत्ति पर 2 प्रतिशत कर लगाने और अगर संभव हो तो करोड़पतियों को भी इस दायरे में लाने की बात कही गई। इस प्रस्ताव से जुड़े पत्र में अमेरिका, फ्रांस, इटली और नीदरलैंड्स से कुछ साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं।

इन साक्ष्यों में कहा गया कि विभिन्न देशों में आय वितरण में शीर्ष 0.1 प्रतिशत लोग शेष आबादी की तुलना में अपनी आय का काफी कम हिस्सा कर के रूप में देते हैं। इस अंतर का कारण यह है कि ये शीर्ष 0.1 प्रतिशत लोग कर भुगतान की योजना बेहतर तरीके से तैयार करते हैं।

इस चिंता का समाधान इन लोगों के धन पर 2 प्रतिशत वैश्विक कर लगाने के रूप में दिया जा रहा है। इस प्रस्ताव के वैश्विक स्तर पर लागू करने का उद्देश्य पुनर्आवंटन के माध्यम से कर वंचना की आशंका को कम करना है। धन पर 2 प्रतिशत कर का मतलब है कि आय पर 33 प्रतिशत कर लगेगा।

यह प्रस्ताव असमानता से जुड़ी चिंता दूर करने के अलावा टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने एवं जलवायु परिवर्तन रोकने के लक्ष्यों के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटाने के उचित माध्यम के रूप में देखा जा सकता है।

ऐसे कर लगाने की इच्छा और इन करों के खास रूप पर विभिन्न मंचों पर चर्चा होगी, मगर तेजी से बढ़ती असमानता और पूंजी और श्रम आय पर करों में नजर आने वाले अंतर एवं उन्हें दुरुस्त किए जाने की जरूरत इस समय अधिक चिंता के विषय हैं।

भारत सरकार ने इन चिंताओं से निपटने के लिए कर कानूनों में बदलाव का प्रस्ताव दिया है। लाभांश पर कराधान कंपनी के बजाय प्राप्तकर्ता के स्तर पर लागू करना ऐसा ही एक उदाहरण था।

इन बाजारों में मालिकाना नियंत्रण में संगठनात्मक बदलाव दूसरा ऐसा पहलू है, जो पूंजीगत बाजार में नीतिगत हस्तक्षेप को बढ़ावा दे सकता है। बैंकिंग क्षेत्र से मिलने वाले तुलनात्मक रूप से कम प्रतिफल (नॉमिनल एवं वास्तविक दोनों रूपों में) ने लोगों को अपनी वित्तीय बचत शेयर बाजार में लगाने की तरफ धकेल दिया है। यह स्थिति नोटबंदी के बाद नकदी की उपलब्धता में अस्थायी बदलाव से बढ़ी है।

शेयर बाजार से अधिक दमदार प्रतिफल मिलने (नकदी और वायदा एवं विकल्प दोनों खंडों में) और वित्त-तकनीक क्षेत्र में प्रगति से निवेश के अवसर आसानी से उपलब्ध होने से शेयर बाजार में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है।

उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2023-24 में निफ्टी में 26 प्रतिशत तेजी आई जबकि सेंसेक्स में 24 प्रतिशत उछाल दर्ज की गई। पिछले पांच वर्षों के दौरान इन सूचकांकों में औसत सालाना बढ़ोतरी लगभग 16 प्रतिशत रही है। इसके उलट, सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) पर ब्याज किसी भी समय 10 प्रतिशत से अधिक नहीं रहा है।

संरचनात्मक बदलाव इस बात में झलक रहा है कि कुल बाजार पूंजीकरण में म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2107 की 4.9 प्रतिशत की तुलना में बढ़कर 8.9 प्रतिशत हो गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इक्विटी कैश खंड में कारोबार में व्यक्तिगत निवेशकों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2024 में 35.9 प्रतिशत रही है।

परिवारों की वित्तीय बचत में शामिल घटकों की समीक्षा करने के बाद मालूम होता है कि हाल के समय में परिवारों की वित्तीय बचत में शेयरों और डिबेंचर की औसत हिस्सेदारी 6.8 प्रतिशत रही है। वित्त वर्ष 2016 से पूर्व यह हिस्सेदारी 1.6 प्रतिशत हुआ करती थी। बैंक डिपॉजिट की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम होकर 36 प्रतिशत रह गई है।

इस बात पर भी विचार किया जा सकता है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ते वित्त बाजारों का लोगों के वित्तीय निर्णयों पर क्या असर होता है। शेयर बाजार में निवेश पर मिलने वाले ऊंचे प्रतिफल औसत आय वाले वास्तविक निवेश को व्यावहारिक या निरुत्साह करने वाला बना सकते हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी 10,639 प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के संयुक्त बहीखाते पर नजर डालने पर मालूम होता है कि कुल परिसंपत्तियों में सकल नियत परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी 2020-21 की 48.2 प्रतिशत से कम होकर 2022-23 में 46.8 प्रतिशत रह गई। दूसरी तरफ, शेयर योजनाओं एवं शेयरों में निवेश 8.0 प्रतिशत से बढ़कर 8.7 प्रतिशत रह गया।

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में पूंजीगत लाभ पर कराधान के प्रावधान को इसी संदर्भ में समझने की आवश्यकता है। बजट में सूचीबद्ध शेयरों में निवेश से अल्प अवधि और दीर्घ अवधि के पूंजी लाभ पर कर क्रमशः 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत और 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिए गए हैं। इसके अलावा, वायदा एवं विकल्प खंड में प्रतिभूति लेन-देन कर भी बढ़ा दिया गया है।

इन उपायों को पूंजी और श्रम आय पर करों में अंतर घटाने के कदमों के रूप में देखा जा सकता है। शेयरों की पुनर्खरीद पर कराधान में बदलाव भी कर आधार बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है और कर देनदारी पूंजीगत आय पर डाली जा रही है।

दूसरी तरफ, ऊंचे कर से पूंजी बाजारों में कयास आधारित निवेश से प्रतिफल नियंत्रित हो सकता है। अल्प अवधि और दीर्घ अवधि के पूंजीगत लाभ कर में अंतर बढ़ने से निवेशक लंबे समय तक निवेश बनाए रख सकते हैं। अगर पूंजी बाजारों से मिलने वाले प्रतिफल में कमी आएगी तो अर्थव्यवस्था में वास्तविक निवेश को अधिक स्थिरता और मजबूती मिलेगी।

(लेखिका राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान, नई दिल्ली में निदेशक हैं)

First Published : August 2, 2024 | 9:19 PM IST