देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा जरिया 15 से 24 साल के युवा होते हैं। यह वह उम्र होती है जब लोग स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद रोजगार के बाजार में भविष्य संवारने या जीवन बसर करने के लिए धन कमाते हैं। आमतौर 12वीं कक्षा की पढ़ाई 18 साल, स्नातक की पढ़ाई 21 साल और स्नातकोत्तर की शिक्षा 23 या 24 साल तक पूरी हो जाती है। लोगों में शिक्षा पूरी करने के बाद रोजगार के बाजार में प्रवेश करने का दौर अलग-अलग रहता है। भारत में ज्यादातर लोग 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद इस बदलाव के दौर से गुजरते हैं। शिक्षा प्राप्त करने का दौर कभी भी खत्म नहीं होता है लेकिन आजकल की दुनिया में कामधंधा 15 से 24 साल की उम्र के बीच जरूर शुरू हो जाना चाहिए।
यह सामाजिक मानदंड है कि शिक्षा की दुनिया से निकल कर रोजगार की दुनिया में प्रवेश करना होता है। ऐसे में शिक्षा से रोजगार तय होता है और रोजगार से समाज में रुतबा तय होता है। बेरोजगारी एक कलंक की तरह हो सकती है, लोग बेरोजगार व्यक्ति से दूरी बनाना शुरू कर देते हैं। इससे बेरोजगारी के कारण सामाजिक बहिष्कार भी झेलना पड़ सकता है। इससे बेरोजगार व्यक्ति मानसिक दबाव में भी आ जाता है। भारत में बेरोजगारी को मैक्रोइकनॉमिक्स की समस्या के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाता है। इसकी जगह बेरोजगारी को व्यक्तिगत नाकामयाबी के तौर पर देखा जाता है और यह कई सामाजिक अलगाव का जरिया बन जाती है।
आजकल के नागरिकों को अपनी जिंदगी शिक्षा से रोजगार की दुनिया में लेकर जाना चुनौतीपूर्ण होता है। इस संक्रमण काल में परेशानियां आती हैं, साथ ही भविष्य की उम्मीदों की आस भी होती है। व्यक्तिगत तौर पर 15-24 साल की आयु चुनौतीपूर्ण होती है और इस आयुवर्ग के लोग अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। अर्थव्यवस्था को शिक्षा पूरी करने के बाद संक्रमणकाल से गुजरे इन युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए तैयार रहना चाहिए। ये लोग युवा होते हैं, ऊर्जावान होते हैं और हाल में शिक्षा पूरी की हुई आबादी होती है। अगर इस आबादी को सही ढंग से उपयोग किया जाता है तो यह विकास, बचत और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। यदि इस आबादी का लंबे समय तक सही ढंग से उपयोग नहीं किया जाता है तो वे समाज में परेशानी पैदा करने का कारण बन सकती है।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार उत्तरी अमेरिका में 15 से 24 साल की आधी से अधिक आबादी के पास रोजगार है। कुल काम करने वाली आबादी में काम करने वाले लोगों के अनुपात को रोजगार दर कहा जाता है। उत्तरी अमेरिका में रोजगार दर 50.6 प्रतिशत थी। यह दर आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) देशों में तकरीबन 42 प्रतिशत और यूरोपीय संघ के देशों में 33 प्रतिशत थी।
विश्व बैंक के इन आंकड़ों के अनुसार भारत में 15 से 24 साल के लिए रोजगार दर 23 प्रतिशत है। भारत में रोजगार दर 2018 में 20.6 प्रतिशत थी, यह 2019 में बढ़कर 20.7 प्रतिशत हो गई और 2020 में फिर बढ़कर 23.2 प्रतिशत हो गई। लेकिन 2012 में रोजगार दर बहुत ऊंची 29.3 प्रतिशत और 2010 में 32.4 प्रतिशत थी। यह 2005 में 40.5 प्रतिशत और 1994 में 43.4 प्रतिशत थी। रोजगार दर 1994 में 43.4 प्रतिशत से अत्यधिक गिरकर 2020 में 23.2 प्रतिशत पर आ गई थी। विश्व बैंक विभिन्न देशों में तुलनात्मक अध्ययन का महत्त्वपूर्ण आंकड़ा मुहैया कराता है। इस मामले में रोचक तथ्य यह है कि चीन ऐसे आंकड़े मुहैया नहीं कराता है। यही संभावित कारण है कि विश्व बैंक विश्व के युवाओं के रोजगार की दर पेश नहीं कर पा रहा है। लेकिन हमें विश्व बैंक के आंकड़ों से यह पता चलता है कि पाकिस्तान में 15-24 साल के युवाओं में रोजगार दर 38.9 प्रतिशत थी और यह बांग्लादेश में 35.3 प्रतिशत थी। श्रीलंका में सिर्फ 24.1 प्रतिशत लोगों के पास रोजगार था। पड़ोसियों के संदर्भ में बात की जाए तो भारत में युवाओं को रोजगार मुहैया कराने का रिकॉर्ड सबसे खराब रहा।
विश्व बैंक विभिन्न देशों के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन मुहैया कराता है। विश्व बैंक का आंकड़ा आधिकारिक आंकड़ों पर आश्रित होता है। इसमें अंतरराष्ट्रीय श्रम बल (आईएलओ) के दिशानिर्देशों के अनुसार रोजगार की लचीली परिभाषा होती है। हालांकि सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) की रोजगार को लेकर अधिक कड़ी परिभाषा है। इसलिए युवाओं में रोजगार की अधिक खराब दर दिखती है। हालांकि विश्व बैंक के अनुसार भारत के युवाओं में रोजगार दर 23.2 प्रतिशत थी। हालांकि सीएमआईई के सीपीएचएस के अनुसार वित्तीय वर्ष 2020-21 में इस आयु वर्ग में रोजगार दर केवल 10.9 प्रतिशत थी।
सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि बीते पांच सालों में सीपीएचएस की डेटाशीट में यह दर तेजी से गिरी है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में युवाओं (15 से 24 साल) में रोजगार दर 20.9 प्रतिशत थी। यह अगले साल 2017-18 में गिरकर 17.9 प्रतिशत और साल 2018-19 में फिर गिरकर 15.5 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। महामारी से ठीक पहले 2019-20 में रोजगार दर फिर थोड़ा गिरकर 14.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके बाद महामारी के पहले साल 2020-21 में भारत के युवाओं की रोजगार दर नाटकीय रूप से गिरकर 10.9 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
साल 2021-22 में फिर थोड़ी गिरकर 10.4 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। युवाओं के लिए रोजगार की कार्यदशाएं आमतौर पर खराब हैं। आयु वर्ग 15 से 24 की रोजगार सहभागिता दर (एलपीआर) तुलनात्मक रूप से कम है। साल 2016-17 और 2021-22 के बीच एलपीआर 42.6 प्रतिशत थी। हालांकि युवाओं में एलपीआर दर कहीं कम 22.7 प्रतिशत थी। इससे युवा बेरोजगारी का कहीं ज्यादा सामना कर रहे हैं। बेरोजगारी की औसत दर 7 प्रतिशत थी। लेकिन युवाओं में बेरोजगारी की दर 34 प्रतिशत से अधिक थी। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एलपीआर की समग्र दर में गिरावट की तुलना में युवाओं में यह दर तेजी से गिर रही है। लेकिन उच्च बेरोजगारी दर युवाओं को श्रम बल में भागीदारी करने से रोकती है। यह महिलाओं के मामले में भी सही साबित होता है।
भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है। यह युवा आबादी देश के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में उपलब्ध है। युवाओं में सबसे कम रोजगार दर वाले देशों में भारत है। अभी विश्व में पूंजी की कोई कमी नहीं है। भारत में आसानी से उपलब्ध श्रम है और तेजी से विकास को बढ़ाने वाली ईंधन रूपी पूंजी है। आदर्श स्थिति में भारत को इस दुर्लभ अवसर का लाभ उठाना चाहिए लेकिन ऐसा लगता है कि यह अवसर हाथ से फिसल रहा है।
