केंद्र सरकार इस बात को लेकर आश्वस्त है कि चालू वित्त वर्ष में वह राजकोषीय घाटा लक्ष्य के अनुरूप सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6.4 प्रतिशत तक सीमित रखने में सफल रहेगी। सरकार ने बजट अनुमानों के अतिरिक्त 3.26 लाख करोड़ रुपये व्यय करने की अनुमति मांगी है। सरकार को विश्वास है कि इस अतिरिक्त व्यय से भी राजकोषीय घाटा लक्ष्य से अधिक नहीं होगा। विभिन्न स्तरों पर सतर्क दृष्टिकोण रखने से ऐसा संभव हो पाया है। उदाहरण के लिए सरकार ने वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में कर राजस्व में 9.6 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा था।
मगर पिछले वर्ष की तुलना में कर राजस्व में संभवतः 23 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। सरकार यह भी मान कर चल रही थी कि महंगाई समायोजित किए बगैर भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में केवल 11.1 प्रतिशत दर से आगे बढ़ेगी परंतु पिछले सप्ताह जारी राष्ट्रीय आय के पहले अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में चालू कीमतों पर अर्थव्यवस्था के 15.4 प्रतिशत दर से आगे बढ़ने की संभावना है।
अर्थव्यवस्था में अनुमान से अधिक विस्तार से व्यय करने के लिए सरकार के पास अतिरिक्त संसाधन आए हैं और इससे राजकोषीय घाटा भी तय लक्ष्य तक सीमित रखने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए चालू वित्त वर्ष में नॉमिनल वृद्धि (महंगाई शामिल नहीं) दर अधिक रहने से सरकार के पास व्यय करने के लिए अतिरिक्त 0.97 लाख करोड़ रुपये उपलब्ध होंगे। आर्थिक वृद्धि दर तेज रहने से कर संग्रह भी बढ़ा है। राजकोषीय मोर्चे पर हाल में हुई प्रगति को देखते हुए यह तर्क दिया जा सकता है कि वृद्धि दर एवं राजस्व संग्रह का आकलन कम करने से देश में होने वाले कुल व्यय पर नकारात्मक असर हो सकता है।
हालांकि भारत के सार्वजनिक वित्त की स्थिति को देखते हुए कोविड महामारी के बाद वित्त मंत्रालय द्वारा अपनाए गए सतर्क दृष्टिकोण के लाभ मिले हैं। सरकार पूर्व में राजकोषीय घाटा नियंत्रित करने में संघर्ष कर चुकी है। इस चक्कर में या तो सरकार को पूंजीगत व्यय कम करना पड़ा या राजस्व व्यय बजट अनुमान से इतर रखना पड़ा। वर्तमान परिस्थिति में ऐसी बातें समस्याएं खड़ी कर सकती हैं। इस समय ऋण एवं सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और राजकोषीय घाटा दोनों ही असहज स्तर पर हैं।
इस तरह चालू वित्त वर्ष के दौरान अतिरिक्त व्यय करने के लिए राजकोषीय स्तर पर रुख लचीला रखना तर्कसंगत लगता है। हमें यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि बजट पेश करते समय व्यय एवं राजस्व दोनों के बारे में सटीक आकलन करना कठिन होगा। उदाहरण के लिए जिंसों की कीमतें अचानक बढ़ गईं तो बजट का गणित बिगड़ सकता है। बजट तैयार करते समय सरकार के लिए सतर्क दृष्टिकोण रखना यथोचित हो सकता है मगर इस बात पर भी चर्चा जरूरी हो जाती है कि अतिरिक्त संसाधन होने पर सरकार को क्या करना चाहिए।
वर्तमान परिदृश्य में बजट घाटा कम करना और यथासंभव शीघ्रता से मध्यम अवधि का राजकोषीय लक्ष्य प्राप्त करना ही उचित रहेगा। एक दूसरे विकल्प के तहत भौतिक एवं सामाजिक ढांचा तैयार करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है। हाल के वर्षों में सरकार ने पूंजीगत व्यय बढ़ाया है और भौतिक ढांचा भी तैयार कर रही है मगर शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर सरकार संभवतः अधिक खर्च कर सकती है।
इसके लिए बजट तैयार करते वक्त थोड़ा लचीला रुख रखना होगा। सरकार रक्षा मद में अतिरिक्त संसाधनों का इस्तेमाल कर सकती है। हमें यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि बजट तैयार करते वक्त लचीला दृष्टिकोण तभी काम करेगा जब सरकार का दृष्टिकोण मध्यम अवधि के राजकोषीय समेकन को लेकर स्पष्ट और पारदर्शी रहेगा।
सरकार जिन क्षेत्रों में अतिरिक्त रकम खर्च करने के बारे में सोच रही है उनके बारे में पहले घोषणा हो जाए तो यह और अच्छा रहेगा। इससे इस वर्ष रकम का आवंटन हो सकेगा। ऐसी किसी योजना की अनुपस्थिति में सरकार अतिरिक्त संसाधनों का इस्तेमाल तो कर लेगी मगर दीर्घ अवधि में इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। सरकार जो भी व्यय करे उसका उसे अधिकतम लाभ लेने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।