अगर वर्ष 2022 ने दुनियाभर के नीति-निर्माताओं को कुछ सिखाया है तो वह यह कि उन्हें अपनी स्वच्छ ऊर्जा नीतियों को लेकर व्यावहारिक होना जरूरी था। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध सभी विकसित और विकासशील देशों के लिए एक कड़वे सच को पहचानने जैसा था, क्योंकि ये देश इस बात को लेकर बड़े आश्वस्त थे कि वे कोयले से बहुत ही जल्दी निजात पा लेंगे और हाइड्रोकार्बन पर अपनी निर्भरता को बड़ी तेजी से कम करने में सफल हो जाएंगे। मगर वर्ष ने कोयले की मांग और कीमत दोनों को और बढ़ा दिया।
विकसित देश जैसे अमेरिका और जर्मनी अब फिर से ईंधन की ओर रुख कर रहे हैं और कोयले के बंद पड़े संयंत्रों को फिर से शुरू कर रहे हैं। विशेष रूप से, पश्चिमी यूरोप इस बात को समझ गया है कि अगर इसे सस्ती दरों पर प्राकृतिक गैसों की आपूर्ति नहीं मिलती तो उसे सौर और पवन ऊर्जाओं से मदद नहीं मिलने वाली है। इसने यह भी पाया है कि पारंपरिक ऊर्जा आपूर्ति में रुकावट आने से लीथियम और निकल जैसे खनिजों की कीमतें बढ़ जाएंगी।
जैसे कि हम 2023 में प्रवेश कर चुके हैं, ऊर्जा क्षेत्रों से मिली सीख को समझना बहुत महत्त्वपूर्ण है। कई सीखों में से एक सीख वह भी है जिस पर ऊर्जा विशेषज्ञों ने समय-समय पर चेताया है लेकिन नीति-निर्माताओं ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया था।
विशेषज्ञ हमेशा संकेत देते रहे हैं कि जब तक ऊर्जा प्रौद्योगिकी का भंडारण पूरा नहीं हो जाता तब तक सौर और पवन ऊर्जा के लिए गैस संचालित संयंत्र की आवश्यकता होगी ताकि अक्षय ऊर्जा की कमी के दौरान इसकी आपूर्ति की जा सके। गीगावॉट क्षमता में भंडारण करने वाले कारखाने, जो दुनियाभर को ऊर्जा की आपूर्ति करा सकते हैं, के बारे में अरबपतियों द्वारा समय-समय पर की जाने वाली घोषणाओं के बावजूद अभी हम कई वर्षों या कहें तो एक दशक से भी अधिक समय तक ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों से दूर हैं।
इसके पीछे के दो कारण हैं, पहला यह कि बैटरी रसायनों में रोज सफलताओं की घोषणा की जा रही है, ऐसा कहा जा रहा है कि अगर प्रयोगशालाओं में व्यावहारिक रूप से कार्य को पूरी तरह से शुरू कर दिया जाए तो सौर और पवन ऊर्जा की अनुपस्थिति में भी ये संयंत्र पूरे शहर को बिजली दे सकते हैं। लेकिन, इसके बावजूद इन प्रयोगशालाओं को व्यावहारिक और बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण केंद्र में बदलना अभी बड़ी दूर की बात है। सैकड़ों-हजारों घरों, कार्यालयों और कारखानों को बिजली देने में सक्षम एक वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोग में प्रायोगिक सफलता हासिल करने के लिए समय, पूंजी और इंजीनियरिंग विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। और कई प्रयोगशालाओं को सफलता तो मिल गई है लेकिन वे प्रक्रिया की ही अंतर्निहित सीमाओं के कारण ठीक से उत्पादन नहीं बढ़ा सकती हैं।
दूसरा मुद्दा खनन गतिविधियों का है और करेंट बैटरी और नवीकरणीय रसायनों के साथ भी बैटरी की क्षमता बढ़ाने के लिए खनिज आपूर्ति को तेजी से बढ़ाने की आवश्यकता है। लीथियम-आयन बैटरी जो आज मानक है, को लीथियम, कोबाल्ट, निकल और अन्य खनिजों की आवश्यकता होती है। सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों को भी खनिजों की आवश्यकता होती है। कुछ आसान किस्म के खनिज भी होते हैं और आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन कई खनिज ऐसे हैं जिनको पाना थोड़ा कठिन है। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि विकसित देशों के महत्त्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अगले कुछ दशकों में अरबों टन खनिजों का खनन करने की आवश्यकता होगी।
लेकिन इन सबके अलावा एक दूसरी समस्या भी है। खनन साफ-सुथरा व्यवसाय नहीं है। बड़े पैमाने पर खनन किए जाने वाले भौगोलिक क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति पहुंचाने के अलावा, संचालन के लिए भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है। और खनन कार्य अनिवार्य रूप से गंदे और थर्मल-ईंधन वाले बिजली संयंत्रों पर निर्भर होते हैं, न कि उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों द्वारा पूरा किया जा सकता है।
वर्ष 2022 में एक महत्त्वपूर्ण अहसास यह भी था कि अभी भी स्वच्छ ऊर्जा और इसके साथ ही हरित हाइड्रोजन जैसे बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं जिनका प्राकृतिक गैस के लिए व्यावहारिक प्रतिस्थापन से पहले निराकरण करने की आवश्यकता है।
हाइड्रोजन की कीमत में तेजी से गिरावट आने पर इस गैस का उपयोग कई कार्यों में किया जा सकता है। यह प्राकृतिक गैस या कोयले की जगह सीमेंट, स्टील, एल्युमीनियम और अन्य कई कार्यों के लिए उपयोग में लाई जा सकती है। हरित हाइड्रोजन या हाइड्रोजन सबसे स्वच्छ ईंधन माना जाता है जिसका उत्पादन पानी के विद्युत अपघटन की प्रक्रिया से किया जाता है और विद्युत अपघटन करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा जैसे-सौर या पवन ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।
लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि इस समय प्राकृतिक गैस की जगह पर हरित हाइड्रोजन का प्रयोग करना काफी महंगा पड़ेगा। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि जैसे-जैसे इसकी वैश्विक क्षमता में बढ़ोतरी होगी, प्रक्रिया में संशोधन होगा, हरित हाइड्रोजन की कीमत में कमी आएगी। ऐसा अगले एक दशक में संभव है, जब इसकी कीमत उस स्तर पर पहुंच जाए, जब प्राकृतिक गैस की जगह पर हरित हाइड्रोजन का प्रयोग किया जा सके। हरित हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए सबसे आकर्षक बात यह है कि इसकी खपत से पानी निकलेगा, जो उत्सर्जन की समस्या का सबसे बड़ा समाधान साबित होगा।
लेकिन ऊंची कीमत के अलावा, शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में प्रयोग से पहले एक समस्या पर समाधान ढूंढ़ने की आवश्यकता बताई है। वह समस्या है लीकेज की। इसके अत्यधिक ज्वलनशील होने के कारण सुरक्षित परिवहन के लिए एक विशेष कंटेनर या पाइप की आवश्यकता होगी। हालांकि, कितना भी बेहतर प्रयास कर लिया जाए, लेकिन कभी-कभी गैसें कुछ परिस्थितियों में लीक हो ही जाती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि एक तरफ भले ही प्राकृतिक गैस के मुकाबले हरित हाइड्रोजन के कई पर्यावरणीय फायदे हैं लेकिन, अगर इसमें लीकेज हो जाती है तो इसके फायदे से कहीं ज्यादा ही नुकसान हो जाता है। इस समय इतना अधिक हाइड्रोजन का उपयोग नहीं किया जा रहा है कि इसके लीक होने से कोई बहुत बड़ा घाटा सहना पड़े। लेकिन जैसे-जैसे इसका उपयोग बढ़ेगा, इसके लीक होने के बाद पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता होगी।
2023 में प्रवेश करने के साथ एक बात जो स्पष्ट हो गई है वह यह है कि स्वच्छ ऊर्जा को हासिल करना कोई आसान बात नहीं है। सभी तरह के ईंधन कुछ न कुछ नकारात्मक पहलू भी लेकर आते है, और जिस रफ्तार से लोग इसको अपनाते हैं, इसके खतरे और भी बढ़ते जाते हैं। इसी तरह वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे गंदे ईंधन के प्रयोग को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि कीमत और कई अन्य कारणों की वजह से इसकी कई दशकों तक आवश्यकता पड़ सकती है।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नीति निर्माता और ऊर्जा रणनीतिकार लगातार इस बात का संकेत दे रहे हैं कि सरकारों को यह बात माननी होगी कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर पूरी तरह से प्रतिस्थापन बिल्कुल ही स्वच्छ नहीं होगा। यह एक रुकावट भरी यात्रा हो सकती है, जिसमें कई गलत तरह के कदम भी उठाए जा सकते हैं और यह भी संभव है कि लक्ष्य हासिल करने से पहले ही इसे समाप्त करना पड़े।
(लेखक बिजनेस टुडे और बिजनेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक और संपादकीय परामर्शदाता प्रोजेक व्यू के संस्थापक हैं)