केंद्र सरकार ने वर्ष 2006 में शहरी विकास मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति जारी की थी। इस नीति में 10 लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों के लिए एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) के गठन का सुझाव दिया गया था। वर्ष 2011 की गणना के अनुसार देश में ऐसे 53 शहर थे। अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई मेट्रो रेल नीति को मंजूरी दी थी। इस नीति में उन शहरों के लिए ढांचा तैयार किया गया था, जो मेट्रो रेल प्रणाली शुरू एवं इसका विस्तार करना चाह रहे हैं।
वैसे तो कई शहरों ने नई मेट्रो रेल परियोजनाएं शुरू करने की ठान ली है मगर इस बात को समझने के व्यापक प्रयास नहीं हो रहे हैं कि किसी शहर एवं इसके लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप कोई मेट्रो रेल परियोजना किस तरह फिट बैठती है। इस नीति में स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर कोई शहर अपनी मेट्रो परियोजना के लिए केंद्र सरकार से सहायता चाहता है तो संबंधित राज्य सरकार को यूएमटीए संचालित करने का आश्वासन देना होगा।
यूएमटीए एक इकाई है जो सभी प्रकार के शहरी परिवहन के लिए उत्तरदायी होगी। यह फिर उस शहर में यातायात के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण शुरू करेगा। जिन शहरों में मेट्रो रेल परियोजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है, उन्हें एक वर्ष के भीतर यूएमटीए स्थापित करने पर विचार करना होगा। आवास एवं शहरी मामलों पर संसद की स्थायी समिति की 16वीं रिपोर्ट में मेट्रो रेल परियोजनाओं के विषय पर कहा गया है कि ‘यह देखकर हैरानी हो रही है कि चार वर्ष बीतने के बाद भी राज्यों ने यूएमटीए का गठन नहीं किया है’।
लगभग सभी राज्यों में इस स्थिति को समझने के लिए ‘द इन्फ्राविजन फाउंडेशन’ ने दो विशेष शोध शुरू किए हैं। इनमें एक शोध आईआईटी दिल्ली की गीतम तिवारी और दूसरा शोध आईआईएम अहमदाबाद के संदीप चक्रवर्ती ने किया है। ये दोनों जाने-माने परिवहन विशेषज्ञ हैं। डॉक्टर तिवारी ने ‘ए फ्रेमवर्क फॉर सलेक्टिंग एन एप्रोप्रियेट अर्बन ट्रांसपोर्ट सिस्टम इन इंडियन सिटीज’ शीर्षक के साथ अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में पांच स्पष्ट सिफारिशें की गई हैं।
1. यातायात के अलग-अलग रूपों के लिए अलग-अलग सार्वजनिक परिवहन प्रणाली उपयुक्त होते हैं। यातायात के इन रूपों का निर्धारण दूरी से निर्धारित किया जाता है। किस मार्ग पर किसी तरह की परिवहन प्रणाली की जरूरत है यह बात यातायात का विकल्प चुनने में मदद करती है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के सभी लाभ (सामाजिक लाभ सहित) लोगों को देना सहज हो जाता है।
2. उच्च क्षमता वाली परिवहन प्रणाली जैसे मेट्रो रेल लंबी दूरी के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 80 लाख से अधिक आबादी वाले बड़े शहरों में 300-400 किलोमीटर लंबी मेट्रो लाइनें बिछाई जा सकती हैं। हालांकि ऐसे शहरों में एक मजबूत एवं विश्वसनीय बस सेवा भी होनी चाहिए जो सभी प्रमुख एवं मझोले मार्गों पर चलाई जा सके। इनकी कुल लंबाई लगभग 800-1,000 किलोमीटर होना चाहिए। अंत में गंतव्य तक पहुंचने के लिए पैदल या मध्यस्थ सार्वजनिक परिवहन विकल्पों जैसे ऑटो रिक्शा आदि का सहारा लिया जा सकता है। नीति, नियोजन, खाका और नियामकीय स्तरों पर तीनों प्रणालियों के एकीकरण से एक उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणाली विकसित हो पाएगी। फीडर बसों के जरिये यात्रियों को मेट्रो स्टेशनों तक पहुंचाया जा सकता है, जिससे विशेष फीडर बसों की जरूरत नहीं रह जाएगी।
3. जिन शहरों की आबादी 40 से 80 लाख है वहां सभी प्रमुख एवं उप-मार्गों पर बस प्रणाली संचालित कर यातायात की जरूरत पूरी की जा सकती है। 10 किलोमीटर से अधिक दूरी वाले मार्गों के लगभग 20 प्रतिशत हिस्से पर लाइट रेल ट्रांसपोर्ट (एलआरटी) इस्तेमाल में लाया जा सकता है। यह यातायात व्यवस्था में बस सेवाओं के साथ मिलकर काम करेगा। अंत में गंतव्य तक पहुंचने के लिए पैदल जाया जा सकता है या मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का सहारा लिया जा सकता है। 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को एकीकृत प्रणाली के रूप में बीआरटीएस/मेट्रो लाइन जैसी उच्च क्षमता वाली प्रणाली इस्तेमाल करने पर विचार कर सकते हैं।
4. जिन शहरों की आबादी 10 लाख से कम है उन्हें यातायात के झंझट का समाधान करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाली बस प्रणाली में निवेश करना चाहिए। उच्च क्षमता वाली परिवहन प्रणाली जैसे मेट्रो की योजना पर तभी विचार किया जाना चाहिए जब शहर की आबादी बढ़कर 10 लाख से अधिक होने का अनुमान हो और माना जा रहा हो कि अगले 10 वर्षों में यह बढ़कर 2.40 करोड़ से अधिक
हो जाएगी।
5. 5 लाख से कम आबादी वाले शहरों में परिवहन की मांग मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के जरिये पूरी की जा सकती है। इसके साथ ही प्रमुख एवं उप-मार्गों पर छोटे स्तर पर बस सेवा का संचालन किया जा सकता है।
डॉ. चक्रवर्ती की रिपोर्ट ‘स्ट्रैटजीज टू इम्प्रूव द फाइनैंशियल परफॉर्मेंस ऑफ मेट्रो रेल सिस्टम्स इन इंडिया’ मुख्य रूप से यूएमटीए पर ध्यान केंद्रित करता है। वह चतुर्आयामी कदम का सुझाव देते हैं।
1. यूएमटीए को शहर में सभी गैर-निजीकृत परिवहन ढांचे और सार्वजनिक परिवहन के सभी साधनों का नियंत्रण, संचालन और रखरखाव अपने हाथों में लेना चाहिए। इस तरह, परिणामस्वरूप पूरे शहर या महानगर क्षेत्र के परिवहन से जुड़े कार्यों की जिम्मेदारी यूएमटीए की होनी चाहिए। इन कार्यों में नीति तैयार करना, रणनीतिक नियोजन, परियोजना मूल्यांकन एवं मंजूरी, परियोजना क्रियान्वयन, संचालन एवं रखरखाव, धन की उपलब्धता और शोध शामिल होंगे।
2. यूएमटीए इनमें किसी भी कार्य के लिए ठेकेदार (कॉन्ट्रैक्टर) नियुक्त कर सकता है और जरूरत पड़ने या संभावनाएं बनने पर निजी क्षेत्र के साथ इक्विटी साझेदारी कर सकता है। यूएमटीए निजी परिवहन सेवा (ऐप-आधारित टैक्सी सेवा), सूक्ष्म यातायात सेवा (साझा बाइक एवं इलेक्ट्रिक स्कूटर) और शहर लॉजिस्टिक सेवा (ई-कॉमर्स आपूर्ति, वस्तुओं के परिवहन, गोदाम में संरक्षण आदि) के प्रबंधन, नियमन एवं लाइसेंस जारी करने के लिए उत्तरदायी होगा।
3. यातायात नियंत्रण, इंटीग्रेटेड मोबिलिटी पेमेंट सिस्टम्स (ट्रांजिट स्मार्ट कार्ड), मल्टीमोडल सिस्टम डेटा कलेक्शन और वास्तविक समय में यात्रा सूचना प्रावधान का उत्तरदायित्व भी यूएमटीए पर होना चाहिए।
4. यूएमटीए को बड़े संस्थागत बदलाव और शहरों में परिवहन परिसंपत्तियों के मालिकाना नियंत्रण के हस्तांतरण और बड़े कार्यों के लिए पहल करनी होगी।
सार्वजनिक परिवहन के लिए दुनिया के जिन शहरों की मिसाल दी जाती है वहां नियोजन, क्रियान्वयन और शहरी यातायात के सभी पहलुओं के संचालन के लिए एक इकाई होती है। इनमें न्यूयॉर्क सिटी ट्रांजिट अथॉरिटी, ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन और सिंगापुर का एसबीएस ट्रांजिट और एसएमआरटी जैसे कुछ नाम गिनाए जा सकते हैं।
भारतीय शहरों को भी परिवहन से जुड़े नीति निर्धारण में यात्रियों को केंद्र में रखना चाहिए। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले एक एकीकृत परिवहन प्राधिकरण स्थापित करना अनिवार्य एवं आवश्यक शर्त है।
(लेखक आधारभूत ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ और द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी हैं।)