facebookmetapixel
पांच साल में 479% का रिटर्न देने वाली नवरत्न कंपनी ने 10.50% डिविडेंड देने का किया ऐलान, रिकॉर्ड डेट फिक्सStock Split: 1 शेयर बंट जाएगा 10 टुकड़ों में! इस स्मॉलकैप कंपनी ने किया स्टॉक स्प्लिट का ऐलान, रिकॉर्ड डेट जल्दसीतारमण ने सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को लिखा पत्र, कहा: GST 2.0 से ग्राहकों और व्यापारियों को मिलेगा बड़ा फायदाAdani Group की यह कंपनी करने जा रही है स्टॉक स्प्लिट, अब पांच हिस्सों में बंट जाएगा शेयर; चेक करें डिटेलCorporate Actions Next Week: मार्केट में निवेशकों के लिए बोनस, डिविडेंड और स्प्लिट से मुनाफे का सुनहरा मौकाEV और बैटरी सेक्टर में बड़ा दांव, Hinduja ग्रुप लगाएगा ₹7,500 करोड़; मिलेगी 1,000 नौकरियांGST 2.0 लागू होने से पहले Mahindra, Renault व TATA ने गाड़ियों के दाम घटाए, जानें SUV और कारें कितनी सस्ती हुईसिर्फ CIBIL स्कोर नहीं, इन वजहों से भी रिजेक्ट हो सकता है आपका लोनBonus Share: अगले हफ्ते मार्केट में बोनस शेयरों की बारिश, कई बड़ी कंपनियां निवेशकों को बांटेंगी शेयरटैक्सपेयर्स ध्यान दें! ITR फाइल करने की आखिरी तारीख नजदीक, इन बातों का रखें ध्यान

अमेरिका संग भारत के कारोबारी हितों का बचाव

अनिश्चित वैश्विक माहौल में भारत अगर अमेरिका के साथ व्यापक मुक्त व्यापार समझौते को लेकर प्रतिबद्धता जताता है तो यह जोखिम भरा साबित हो सकता है। बता रहे हैं अजय श्रीवास्तव

Last Updated- May 01, 2025 | 11:42 PM IST
India US Trade

गत 13 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बीच इस बात पर सहमति बनी कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) को लेकर चर्चा की जाए। बीटीए अलग नाम का होने के बावजूद मूलत: एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) ही है। यह जापान के साथ किए गए भारत के व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) और ऑस्ट्रेलिया के साथ किए गए आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) के समान है। सरलता के लिए आगे हम इसे एफटीए कहकर ही संबोधित करेंगे।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और प्रधानमंत्री मोदी ने 21 अप्रैल को कहा कि एफटीए की संदर्भ शर्तों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ये शर्तें समझौते का स्तर तय करती हैं। उदाहरण के लिए भारत-यूरोपीय संघ एफटीए में संदर्भ शर्तें कहती हैं कि मूल्य के लिहाज से कुल व्यापार के करीब 90 फीसदी वस्तुओं पर शुल्क समाप्त किए जा सकते हैं।

अमेरिका के साथ एफटीए की संदर्भ शर्तें सार्वजनिक नहीं हैं लेकिन हम अनुमान लगा सकते हैं। चूंकि अमेरिका में फास्ट ट्रैक अथॉरिटी नहीं है इसलिए वह टैरिफ में आसानी से कटौती नहीं कर सकता। इसका मतलब यह हुआ कि एफटीए पर हस्ताक्षर होने के बाद भी अमेरिका को भारत से होने वाले निर्यात पर मौजूदा आयात शुल्क का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह के अधिकांश उत्पादों पर 10 फीसदी का बुनियादी टैरिफ भी बरकरार रह सकता है। इसके विपरीत अमेरिका भारत पर दबाव बना सकता है कि वह कृषि उत्पादों और वाहनों पर टैरिफ कम करे। वह भारतीय निर्यात में चीन के कच्चे माल के इस्तेमाल को सीमित करने की मांग भी कर सकता है। अमेरिका भारत से शुल्क दरों और घरेलू नीतियों में अधिक रियायत की मांग कर सकता है और बदले में शायद वह कुछ खास न दे।

धारणा की जंग में अमेरिका का दबदबा

अमेरिका यह चित्रित करने में कामयाब रहा है कि भारत के टैरिफ और नियम ही व्यापार घाटे की वजह हैं, इसलिए वह मांग कर रहा है कि भारत अधिक अमेरिकी वस्तुएं, तेल और हथियार खरीदे तथा गूगल, मेटा, एमेजॉन, वालमार्ट, टेस्ला और अन्य अमेरिकी कंपनियों के कारोबार संबंधी नियमों को शिथिल करे।

हकीकत यह है कि भारत अमेरिका से जितने डॉलर पाता है, उससे अधिक वह उसे चुकाता है। समग्र आर्थिक संतुलन भी अमेरिका के पक्ष में है। यह तस्वीर उस समय पूरी तरह बदल जाती है जब आप भारत को बेचे जाने वाले अमेरिकी हथियारों तथा अमेरिकी बैंकों और कंपनियों द्वारा हासिल मुनाफे और रॉयल्टी पर विचार करते हैं। अमेरिकी टेक कंपनियों को भारत में मुक्त रूप से पहुंच का लाभ हासिल है।

अमेरिका में करीब 1,000 डॉलर में बिकने वाले हर आईफोन पर ऐपल करीब 450 डॉलर कमाती है जबकि भारत को 25 डॉलर से भी कम मिलते हैं। इसके बावजूद व्यापार के आंकड़ों में पूरा मूल्य भारत से होने वाले निर्यात के रूप में गिना जाता है जिससे अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ता है। अमेरिका की इस कहानी को चुनौती देने के बजाय भारतीय अधिकारी कंपनियों से कहते हैं कि वे चीन से आयात कम करें और अमेरिका से अधिक खरीदी करें।

जनवरी से भारत ने बॉर्बन व्हिस्की, मछलियों के दानों, मोटरसाइकलों, सैटलाइट के हिस्सों और मोबाइल कलपुर्जों पर आयात शुल्क कम कर दिया। उसने भारतीय उपयोगकार्ताओं से अर्जित राजस्व पर लगने वाले 6 फीसदी डिजिटल कर को भी समाप्त कर दिया। यह कदम गूगल, मेटा और एमेजॉन के लिए मददगार है। भारत अपने परमाणु जवाबदेही कानून में बदलाव पर भी विचार कर रहा है ताकि अमेरिकी कंपनियां बिना किसी कानूनी जोखिम के परमाणु सामग्री की आपूर्ति कर सकें। ईलॉन मस्क के स्टार लिंक को जल्दी ही मंजूरी दी जा सकती है ताकि वह रिलायंस जियो और भारती एयरटेल जैसे स्थानीय साझेदारों की मदद से इंटरने सेवा प्रदान कर सके।

अमेरिका की चाहत

अमेरिका चाहता है कि भारत सिर्फ टैरिफ कटौती से आगे बढ़े। कृषि में वह चावल व गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में सुधार चाहता है। वह सार्वजनिक भंडारण कार्यक्रम में बदलाव, जीन संवर्धित खाद्य पदार्थों के आयात की इजाजत और अपने कृषि उत्पादों पर कम टैरिफ चाहता है। दवा क्षेत्र में वह दवाओं के पेटेंट पर अंतहीन विस्तार की इजाजत चाहता है। उसकी मांग है कि एमेजॉन और वालमार्ट को अपने प्लेटफॉर्म से सीधे भारतीय उपभोक्ताओं को सामान बेचने की इजाजत हो।

अमेरिका इस्तेमाल की जा चुकीं (पुरानी) पूंजीगत वस्तुओं और पुनर्निर्मित उत्पादों के मामले में नियमों में शिथिलता चाहता है और यह भी कि ईंधन इस्तेमाल के लिए एथनॉल आयात पर प्रतिबंध समाप्त किया जाए। वह भारत के मेक इन इंडिया खरीद नियमों पर भी आपत्ति करता है जो 250 करोड़ रुपये मूल्य से कम के सार्वजनिक अनुबंधों को घरेलू कंपनियों के लिए सीमित रखते हैं और यह भी शर्त है कि 50 फीसदी सामग्री स्थानीय हो। अमेरिका की राष्ट्रीय व्यापार अनुमान रिपोर्ट 2025 भारत से की जा रही सैकड़ों मांगों को सामने रखती है। एफटीए वार्ताओं के दौरान अमेरिका इनका दबाव बनाएगा।

भारत के लिए बातचीत बेहतर

भारत को एफटीए को वाणिज्यिक वस्तुओं तक सीमित रखना चाहिए। अन्य देशों पर जहां टैरिफ कटौती का दबाव है वहीं भारत पर दबाव बनाया जाएगा कि वह पूर्ण एफटीए के अधीन अपनी घरेलू नीतियों में बदलाव लाए। यह समझौता भारत की खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, छोटे कारोबारों और डिजिटल निर्भरता को प्रभावित कर सकता है। ट्रंप पर अमेरिका में और बाहर दोनों तरफ से दबाव है। ऐसे में भारत का व्यापक एफटीए पर हस्ताक्षर करना जोखिम भरा हो सकता है।

इसकी जगह, भारत ऐसा समझौता कर सकता है जहां 90 फीसदी औद्योगिक वस्तुओं पर पारस्परिक आधार पर टैरिफ समाप्त कर दिया जाए जबकि कृषि और वाहन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को इससे बाहर रखा जाए। इससे 90 फीसदी अमेरिकी निर्यात भारत में शुल्क मुक्त पहुंच हासिल करेंगे और ट्रंप की उच्च टैरिफ की शिकायत दूर हो जाएगी। भारत के लिए ऐसा रुख अपनाना बेहतर होगा। आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मौजूदा एफटीए के तहत पहले ही ऐसी व्यवस्था है। इस तरह भारत का उद्योग जगत भी ऐसी प्रतिस्पर्धा का अभ्यस्त है। ऐसा समझौता घरेलू नीतियों में बदलाव के दबाव से भारत के हितों की रक्षा करेगा।

500 अरब डॉलर के कारोबार की हकीकत

13 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत और अमेरिका का लक्ष्य 2030 तक आपसी कारोबार को बढ़ाकर 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का है। 21 अप्रैल को जब दोनों पक्षों ने एफटीए के संदर्भ की शर्तों को अंतिम रूप दिया तो भारत के अखबारों ने लिखा कि यह 500 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अहम कदम है।

सच यह है कि 500 अरब डॉलर का आंकड़ा एक दशक से हवा में तैर रहा है। भारत की ओर से इसका पहला जिक्र 2014 में बतौर प्रधानमंत्री मोदी की पहली अमेरिका यात्रा के दौरान किया गया था। 2015-16 की आर्थिक समीक्षा में भी कहा गया था कि भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रशांत पार साझेदारी एफटीए में शामिल होकर 500 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य पा सकता है। हालांकि, हकीकत में यह केवल एक अच्छा दिखने वाला आंकड़ा है। भारत को सावधानी से आगे बढ़ना चाहिए। मौजूदा अनिश्चित हालात में एकतरफा एफटीए से हमारे राष्ट्रीय हितों पर असर पड़ सकता है। एक सीमित, औद्योगिक वस्तुओं वाला समझौता अधिक सुरक्षित और समझदारी भरा होगा।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक हैं)

First Published - May 1, 2025 | 11:42 PM IST

संबंधित पोस्ट