एलॉइस पार्कर स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद अकेले रहती हैं मगर उनकी एडम क्ले से अच्छी दोस्ती हो गई। एडम उनके खलिहान में रहता है और मधुमक्खी पालता है। एक दिन पार्कर एक फिशिंग घोटाले की शिकार हो जाती हैं, जिसमें उनकी जीवन भर की कमाई साफ हो जाती है। साथ ही वह जो चैरिटी चलाती हैं, उसकी 20 लाख डॉलर से ज्यादा रकम भी घोटाले की बलि चढ़ जाती है।
पूरी तरह टूट चुकी पार्कर खुद को गोली मार लेती हैं। एडम को उनका शव मिलता है और पार्कर की बेटी उसे गिरफ्तार कर लेती है। बेटी खुद भी एफबीआई एजेंट होती है। जब एडम निर्दोष साबित होने पर रिहा किया जाता है तो वह ‘बीकीपर्स’ नाम के एक रहस्यमय समूह से बात करता है और पार्कर को फिशिंग के जरिये ठगने वाले लोगों के बारे में जानकारी मांगता है। उसकी तलाश एक कॉल सेंटर पर जाकर खत्म होती है।
साइबर अपराध की दुनिया में झांकना चाहते हैं? तो आप 2024 में आई अमेरिकी एक्शन थ्रिलर फिल्म ‘द बीकीपर’ देखें। अपने देश की कहानी चाहिए तो क्राइम ड्रामा सीरीज ‘जामताड़ा-सबका नंबर आएगा’ देख लीजिए, जो आपको सोशल इंजीनियरिंग की दुनिया में ले जाएगा। जनवरी 2020 में एक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज इस सीरीज का दूसरा सीजन सितंबर 2022 में आया। साइबर अपराध के नए तौर-तरीके दिखाने वाली यह सीरीज दर्शकों में बेहद लोकप्रिय रही।
साइबर अपराध तेजी से रूप बदल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया में 9 जनवरी को छपी एक खबर में बताया गया कि डिजिटल अरेस्ट स्कैम पर देश भर में की गई कार्रवाई के तहत कोलकाता पुलिस ने भी 11 लोग गिरफ्तार किए। पुलिस ने इस गिरफ्तारी से देश भर में 930 से ज्यादा शिकायतें सुलझ जाने का दावा किया। अक्टूबर में ‘मन की बात’ के एक एपिसोड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डिजिटल धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई थी।
सरकार द्वारा संसद में पेश आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020 में साइबर धोखाधड़ी के 2,677 मामले सामने आए थे, जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 29,082 हो गए यानी करीब 10 गुना बढ़ गए। भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया सालाना रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2024 के दौरान डिजिटल भुगतान में 1,457 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े हुए और साल भर में यह आंकड़ा पांच गुना बढ़ गया था। यह आंकड़ा चिंता की अकेली बात नहीं है। असली चिंता इस बात की है कि फर्जीवाड़ा करने वाले इतनी बारीकी और सफाई के साथ बढ़ रहे हैं कि वित्तीय तंत्र की कमजोरियां सामने आती जा रही हैं।
भारत साइबर अपराधों का अकेला शिकार नहीं है। सिंगापुर ने 11 नवंबर को अपनी संसद में प्रोटेक्शन फ्रॉम स्कैम्स बिल पेश किया। यह विधेयक 7 जनवरी को पारित हुए और इसके साथ ही वह दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया, जहां पुलिस के पास उन घोटाला पीड़ितों के बैंक खाते अपने नियंत्रण में लेने का अधिकार होगा, जो जागरूक नहीं हैं। प्रतिबंध के आदेश जारी करने का अधिकार मिलने के बाद सिंगापुर की पुलिस किसी भी व्यक्ति के बैंक खाते से रकम भेजने, एटीएम के इस्तेमाल और ऋण सुविधा रोक सकती है। साथ ही व्यक्ति बैंक शाखा में जाकर भी खाते में कुछ नहीं कर सकता है।
पुलिस को लगता है कि पीड़ित व्यक्ति घोटालेबाज को रकम भेज सकता है तो वह बैंक को प्रतिबंध आदेश भेज सकता है ताकि पीड़ित की सुरक्षा हो सके। सिंगापुर में लोग इस तरह की धोखाधड़ी में रोजाना करीब 20 लाख डॉलर गंवा रहे हैं। 2024 की पहली छमाही में सिंगापुर में साइबर धोखाधड़ी के 26,587 मामले दर्ज हुए, जिनमें 38.5 करोड़ डॉलर से ज्यादा चले गए थे। इनमें से 86 फीसदी मामलों में पीड़ितों ने स्वेच्छा से धोखेबाजों को रकम भेजी थी। यह विधेयक आने से पहले अगस्त में ही सिंगापुर का सबसे बड़ा बिजनेस ईमेल लीक घोटाला पकड़ा गया था और 4.1 करोड़ डॉलर बरामद किए गए थे। साइबर अपराध रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की यह शायद पहली घटना थी।
पिछले साल 19 जुलाई को सिंगापुर की एक कमोडिटी फर्म बेहद सफाई से की गई धोखाधड़ी की शिकार हो गई। साइबर अपराधियों ने आपूर्ति करने वाला कारोबारी बनकर कंपनी से एक फर्जी बैंक खाते में रकम डलवा दी। इसके बाद पुलिस हरकत में आई। इंटरपोल के ग्लोबल रैपिड इंटरवेंशन ऑफ पेमेंट्स (आई-ग्रिप) के हस्तक्षेप से उस रकम का बड़ा हिस्सा वापस आ गया। यह अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी भी थी।
आई-ग्रिप प्रोग्राम ने लाखों डॉलर की अवैध रकम पकड़ने में अहम भूमिका निभाई है और अब यह सुर्खियों में है। वित्तीय साइबर अपराध रोकने के लिए 2022 में शुरू हुआ यह प्रोग्राम तुरंत प्रतिक्रिया देने वाला तंत्र है, जिसके जरिये इंटरपोल के 196 सदस्य देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियां ऐसे वित्तीय लेनदेन में फौरन हस्तक्षेप करती हैं, जिनके आपराधिक गतिविधियों से जुड़े होने का संदेह होता है। इन देशों में भारत भी शामिल है। संदिग्ध लेनदेन का पता चलते ही आई-ग्रिप जरूरी जानकारी का आदान-प्रदान कराता है, जिससे अधिकारी लेनदेन रोक देते हैं और रकम को धोखाधड़ी करने वालों तक नहीं पहुंचने देते। इसमें वित्तीय संस्थाओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच गहरा सहयोग होता है और सही समय पर सही जानकारी मिलती है। इस तरह वित्तीय अपराध से कारगर तरीके से निपटा जा सकता है।
आई-ग्रिप इंटरपोल के तरकश का खास तीर है। भुगतान रोकने वाली इस प्रणाली से देशों के बीच सहयोग बढ़ता है और अपराध से हासिल की गई रकम का पता लगाने, उसे पकड़ने तथा विदेश में भी उसे बरामद करना आसान हो जाता है। सिंगापुर में 4.2 करोड़ डॉलर के बिजनेस ईमेल लीक घोटाले में पुलिस ने आई-ग्रिप के जरिये तुरंत मदद मांगी, जिससे रकम जल्द बरामद हो गई।
सिंगापुर ने तो पुलिस को घोटाला पीड़ितों के बैंक खातों पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया है मगर भारत में बैंकों के लिए उन म्यूल खातों से निपटना मुश्किल होता है, जिनके जरिये ठगी करने वाले कमीशन देकर एक खाते से दूसरे खाते में रकम पड़वाते हैं। किसी खाते से फर्जीवाड़े के जरिये बड़ी रकम निकालने के बाद साइबर अपराधी उसे छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर म्यूल खातों में डाल देते हैं। म्यूल खाते वाले रकम निकालकर अज्ञात धोखेबाजों को दे देते हैं।
थोड़ा कमीशन उन्हें भी मिल जाता है। चूंकि इन खातों की केवाईसी समेत समूची प्रक्रिया पूरी होती है, इसलिए बैंक इन्हें रोक नहीं पाते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक केंद्र सरकार ने पिछले साल करीब 4.5 लाख म्यूल बैंक खाते बंद कर दिए, जिनका इस्तेमाल साइबर धोखाधड़ी से हासिल काले धन को सफेद करने में किया जाता था। ये खाते तमाम बैंकों में होते हैं मगर भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, केनरा बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और एयरटेल पेमेंट्स बैंक में ऐसे ज्यादा खाते मिले हैं।
गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के अधिकारियों ने बैंकिंग प्रणाली की खामियों पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय को यह बात बताई। उन्होंने यह भी बताया कि फर्जीवाड़ा करने वाले आजकल ऐसे म्यूल खातों से पैसे निकाल रहे हैं, जो आम तौर पर दूसरों के केवाईसी दस्तावेज के जरिये खोले जाते हैं। इसके अलावा चेक, एटीएम या डिजिटल माध्यमों से भी रकम निकाली जा रही है।
हाल में बैंकों में नई किस्म की धोखाधड़ी चल रही है, जिसे चार्जबैक स्कैम कहा जा रहा है। इसमें फर्जीवाड़ा करने वाले लोग बैंक से यह कहकर पैसे वापस मांगते हैं कि उन्हें अमुक सामान या सेवा मिली ही नहीं, जबकि हकीकत में उन्होंने वह भुगतान किया ही नहीं होता है। आम तौर पर कोई ग्राहक व्यापारी से कुछ खरीदता है और पेमेंट ऐप से भुगतान कर देता है। इसके बाद वह अपने बैंक से सामान नहीं मिलने या भुगतान में गड़बड़ी होने की शिकायत करता है। उसका बैंक इसकी शिकायत उस बैंक से करता है, जिसके नेटवर्क के जरिये व्यापारी ने रकम ली थी। 2023 में उत्तर के एक राज्य से चार्जबैक के हजारों मामले सामने आए।
रिजर्व बैंक ने डिजिटल भुगतान में धोखाधड़ी रोकने के लिए ‘डिजिटल पेमेंट्स इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म’ बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस पर विचार के लिए भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी एपी होता की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है। इस प्लेटफॉर्म की मदद से रिजर्व बैंक संदिग्ध और फर्जी लेनदेन का तुरंत पता लगा सकेगा और रकम बरामद भी कर सकेगा। उद्योग को इस वक्त वैसी ही व्यवस्था की जरूरत है, जैसी सिंगापुर ने की है। एनपीसीआई भी फर्जीवाड़ा रोकने के लिए व्यवस्था चलाता है, जिसमें धोखाधड़ी को फौरन रोकने की कोशिश की जाती है।
यह आसान काम नहीं है क्योंकि साइबर अपराधी पीड़ितों से हमेशा आगे रहते हैं और अपना काम करने का तरीका भी बदलते रहते हैं। पहले लोग लालच के कारण ऐसी धोखाधड़ी के शिकार होते थे मगर अब डर के कारण भी फंस रहे हैं। इससे लड़ना है तो लोगों को जागरूक करने के अलावा कोई और तरीका नहीं है। साइबर अपराधों से लड़ने के लिए भारत को वही करना चाहिए, जो उसने लोगों तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने के लिए किया था यानी उसे पूरे देश में जन जागरूकता अभियान चलाना होगा।