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वैश्विक उठापटक के बीच भारत सुरक्षित स्थिति में

वर्तमान परिस्थितियों में भारत में बाहरी पूंजी की आवश्यकता कम है इसलिए वैश्विक स्तर पर उठापटक का हम पर मामूली असर होगा। बता रहे हैं अजय शाह

Last Updated- March 24, 2023 | 9:22 PM IST
India in a safe position amid global upheaval
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

वैश्विक वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता बढ़ गई है। यह अनिश्चितता कुछ निश्चित माध्यमों के जरिये एक से दूसरे देश में पूंजी का प्रवाह प्रभावित करती है। विदेश से आने वाली पूंजी पर भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता कम है क्योंकि बाह्य पूंजी की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।

निवेश और बचत के बीच का अंतर पूंजी आयात कहलाता है। मैंने पिछले महीने बिज़नेस स्टैंडर्ड में अपने स्तंभ में लिखा था कि दुनिया में अनिश्चितता पहले की तुलना में अब कम हो गई है। मैंने इसके लिए अनिश्चितता सूचकांक (वीआईएक्स) और मेरिल लिंच ऑप्शन वॉलैटिलिटी एस्टिमेट (मूव) के निचले स्तरों पर होने का हवाला दिया था। ये दोनों ही फरवरी 2022 की तुलना में निचले स्तर पर थे।

फरवरी 2022 ऐसा समय था जब रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था और अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी थी। उस समय विश्व में अनिश्चितता लगभग अपने चरम पर पहुंच गई थी।

हालांकि पिछले सप्ताह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का एक कारण और उत्पन्न हो गया। वीआईएक्स 6 फरवरी को 19 की तुलना में बढ़कर पिछले शनिवार को 26 के स्तर पर पहुंच गया। इसी तरह, मेरिल लिंच ऑप्शन वॉलैटिलिटी एस्टिमेट भी इसी अवधि के दौरान 100 से बढ़कर 180 का स्तर पर पहुंच गया।

इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक वित्तीय माहौल अधिक दबाव में है। समस्याएं इसलिए भी और बढ़ रही हैं कि विकसित बाजारों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रहे हैं। विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और वर्तमान समय में बिगड़ती परिस्थितियों के बीच वैश्विक निवेशक विकसित बाजारों की परिसंपत्तियां अधिक से अधिक अपने पास रखना चाहेंगे।

वर्ष 2022 में हमने देखा कि स्टार्टअप इकाइयों और आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) की चमक भारत में किस तरह फीकी पड़ गई और अन्य गैर-तरल जोखिम भरी परिसंपत्तियां भी निवेशकों के लिए अपना महत्त्व खो बैठीं। आने वाले सप्ताहों में ऐसी स्थिति जारी रह सकती है।

हालांकि, एक ऐसा कारण है जिस वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति एक सहज और राहत भरी स्थिति की ओर इशारा करती है। यह कारण बाह्य पूंजी की कम आवश्यकता है। समष्टि अर्थशास्त्र में आंकड़ों पर कुछ इस तरह विचार किया जाता है।

घरेलू निवेश और घरेलू बचत का अंतर चालू खाते का घाटा होता है। इस घाटे की भरपाई करने के लिए बाहर से पूंजी मंगाई जाती है। कई लोग चालू खाते के घाटे पर विचार करते समय आयात और निर्यात पर अधिक जोर देते हैं। हालांकि, समष्टि अर्थशास्त्र की समझ उस पूंजी आयात की आवश्यकता के कारण को समझने से आती है जिसकी पूर्ति स्थानीय स्तर पर नहीं हो पाती है।

इस पर विचार करते समय हमें परंपरागत उपायों की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए। सोने का वैध या अवैध आयात, आयात पर खर्च अधिक दिखाना या निर्यात का हिसाब-किताब कम दिखाना ये सभी आधिकारिक आंकड़ों की जद में नहीं आते हैं। हम आज अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार निवेश और बचत पर चर्चा करेंगे।

बचत के मोर्चे पर एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है समेकित भारतीय अर्थव्यवस्था का वित्तीय रुख। जब भारतीय अर्थव्यवस्था में घाटा अधिक हो जाता है तो घरेलू बचत कम हो जाती है। कुछ वर्षों में निवेश और बचत के बीच अंतर पर घाटे का महत्त्वपूर्ण असर तो हुआ है मगर सालाना आधार पर होने वाले ये बदलाव साधारण होते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा है इसलिए एक से दूसरे साल की अवधि में होने वाला बदलाव सीमित ही रहता है।

एक महत्त्वपूर्ण कारक जो समय के साथ बदलता रहता है वह है निजी क्षेत्र से आने वाला निवेश। निवेश का असर तभी दिखाई देता है जब यह पूरे उत्साह के साथ किया जाता है। जब चारों ओर उत्साह और आशा का माहौल रहता है तब निवेश का आकार काफी बड़ा होता है।

एक खुले पूंजी खाते (ओपन कैपिटल अकाउंट) का लाभ तभी मिलता है जब निवेशकों के उत्साहित होने की स्थिति में वित्त तक पहुंच आसानी से हो जाती है। एक पूरी तरह बंद अर्थव्यवस्था में निवेश बचत से अधिक नहीं हो सकता है, इसलिए आशावादी रुख भी निवेश में निरंतरता बनाए रखने में असफल रहता है।

बड़ी गैर-वित्तीय कंपनियां एक महत्त्वपूर्ण समूह होती हैं जहां मजबूत आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। बड़ी गैर-वित्तीय कंपनियों की शुद्ध नियत परिसंपत्तियों (नेट फिक्स्ड ऐसेट्स) के पूर्ण सीएमआईई आंकड़ों में सालाना आधार पर सांकेतिक बदलाव लगभग 35 से 0 प्रतिशत के बीच रहते हैं। इन बड़ी वित्तीय कंपनियों में सूचीबद्ध और गैर सूचीबद्ध दोनों कंपनियां शामिल है।

इन आंकड़ों और अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार कोविड-19 के बाद बड़ी गैर-वित्तीय कंपनियों की तरफ से निवेश की गति सुस्त हो गई है। भारत में निवेश की सुस्त गति अर्थव्यवस्था में बचत की परिधि में ही रहती है। यही कारण है कि विदेशी पूंजी प्रवाह की जरूरत तुलनात्मक रूप से कम है। वर्ष 2008 और 2012 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी उठापटक के कारण भारत पर दबाव बढ़ गया था। इन वर्षों के दौरान विदेश से पूंजी की आवश्यकता बढ़ गई थी। इसकी एक और वजह यह थी कि 2008 काफी बड़ा वैश्विक संकट था।

अगर इस कठिन माहौल में भी पूंजी आयात की आवश्यकता अधिक होती तो बाजार किसी तरह इसका प्रबंध करता और आवश्यक पूंजी की उपलब्धता में बाधा नहीं आती। जब वैश्विक वित्तीय माहौल अधिक दबाव में रहता है तब भारतीय परिसंपत्तियों की कीमतें नीचे उस स्तर पर लाई जाती हैं जहां उनकी खरीदारी आकर्षक लगने लगती है।

ऐसा दो तरीकों से किया जा सकता है। पहला तरीका यह है कि विनिमय दर दबाव सहने के लिए समायोजित की जा सकती है और भारतीय परिसंपत्तियों की कीमतों में कमी रुपये में कमजोरी के जरिये सुनिश्चित की जा सकती हैं।

दूसरे तरीका के तहत सरकार विनिमय दर स्थिर रखती है जिससे परिसंपत्तियों की कीमतें उस स्तर तक गिर जाती हैं जहां वैश्विक निवेशकों के लिए वे आकर्षक हो जाती हैं। जब वैश्विक स्तर पर दबाव बढ़ता है तब भारत में डॉलर में रियल एस्टेट की कीमतें कम करनी पड़ती है। ऐसा करने के लिए रुपया- डॉलर के समायोजन और रियल एस्टेट कीमतों में बदलाव करना पड़ता है।

विकास रणनीति में एक पुराना विचार पूंजी प्रवाह के आकार को लेकर चिंतित रहता है। यह विचार इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट करता है कि क्या संभाव्य पूंजी आयात एक सीमा तक ही हो सकता है। ‘संधारणीय चालू खाते का घाटा’ का काफी इस्तेमाल किया गया। पिछले कई वर्षों के दौरान हम यह समझ चुके हैं कि ऐसी कोई बात नहीं है। वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सदैव सीमित पूंजी होती है। मगर अलग-अलग परिसंपत्ति श्रेणियों में उठापटक की स्थिति बन सकती है। हम भारतीय सरकार के ऋण और भारतीय स्टार्टअप इकाइयों को लेकर अविश्वास के माहौल को देख चुके हैं।

इसका समाधान यह है कि वैश्विक निवेश पटल पर बड़ी संख्या में मजबूत एवं स्थिर भारतीय परिसंपत्ति श्रेणियां तैयार की जाएं। वैश्विक वित्त, सूचनाओं के प्रवाह और सार्वजनिक इक्विटी, निजी इक्विटी, सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड, जींस आदि के साथ जुड़े रहना अच्छी बात है।

एक बार ऐसा होने पर किसी एक परिसंपत्ति श्रेणी में उठापटक वृहद आर्थिक हालात के लिए चिंता का कारण नहीं बन सकती है क्योंकि भारतीय रुपये में मामूली कमजोरी दूसरी परिसंपत्ति श्रेणियों को आकर्षित बना कर नुकसान की भरपाई कर देती है।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - March 24, 2023 | 9:22 PM IST

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