प्रतीकात्मक तस्वीर
तेजी से बदल रहे भू-राजनीतिक और व्यापारिक परिदृश्य में यूरोपीय संघ (ईयू) अमेरिका से इतर वैकल्पिक भागीदारों की तलाश में अपनी व्यापार नीति को एक नई दिशा देने में सबसे सक्रिय अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। वर्ष 2025 में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के जोखिमों को भांपते हुए ईयू ने एहतियाती कदम उठाकर दिसंबर 2024 में मर्कोसुर (लैटिन अमेरिकी देशों का समूह) के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किए। 2025 में ईयू ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) की सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपनी एफटीए वार्ता की गति तेज कर दी है।
इस सप्ताह के शुरू में ईयू-इंडोनेशिया एफटीए पर हस्ताक्षर किए गए थे, वहीं फिलीपींस, थाईलैंड और मलेशिया के साथ लंबे समय से लंबित एफटीए वार्ता भी फिर से शुरू हो गई है। इसके साथ ही वह प्रशांत पार साझेदारी पर व्यापक और प्रगतिशील समझौता (सीपीटीपीपी) के साथ आर्थिक एकीकरण मजबूत बनाने की दिशा में भी सक्रियता दिखा रहा है।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हाल ही में जिन एफटीए पर हस्ताक्षर हुए हैं वे ईयू की पिछली एफटीए नीतियों से काफी अलग हैं। उदाहरण के लिए मर्कोसुर के साथ एफटीए में कई प्रावधानों में लचीलेपन का प्रावधान है, खासकर पर्यावरण और सतत शासन (ईएसजी) के क्षेत्र में। पहले के ईयू एफटीए में ईएसजी से संबंधित प्रावधान न केवल सख्ती से शामिल किए गए थे बल्कि सततता से जुड़ी प्रतिबद्धता के संभावित उल्लंघन का निर्धारण करने के लिए एक विशिष्ट रूप से परिभाषित विवाद निपटान तंत्र (डीएसएम) का भी प्रावधान किया गया था।
वर्ष 2021 में ईयू ने अपने द्विपक्षीय एफटीए के डीएसएम के तहत कोरियाई श्रम कानूनों को चुनौती दी। इसके अलावा, आसियान अर्थव्यवस्थाओं में राजनीतिक प्रणालियों में भिन्नता (जो अतीत में ईयू-आसियान वार्ता में रुकावट बन गई थी) अब कोई बाधा नहीं लगती है। पहले हुए एफटीए में अपनाए गए सख्त रुख से अलग हटकर और पूर्व की ओर देखने की नीति शायद अमेरिका के साथ अपने पुराने व्यापार संबंधों को लेकर ईयू की बदलती सोच के बाद उत्पन्न हो रही है। स्पष्ट रूप से अब यह महसूस किया जा रहा है कि ईयू को न केवल रक्षा और सामरिक संदर्भ में बल्कि व्यापार में भी एक स्वतंत्र रास्ता तय करने की जरूरत है।
भारत के ईयू के साथ एफटीए वार्ता के लिए ये सकारात्मक घटनाक्रम हैं। भारत को एफटीए को अंतिम रूप देने के लिए इस क्षण का भरपूर लाभ उठाना चाहिए और इसे इस साल के अंत से पहले ही पूरा कर लेना चाहिए। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत ईयू के साथ एफटीए को न केवल अपने निर्यात के लिए तरजीही बाजार तक पहुंच के रूप में देखे बल्कि अपनी विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण भी रखे। लिहाजा, एफटीए के वे भाग जो मूल स्थान के नियमों (रूल्स ऑफ ओरिजिन) और निवेश से संबंधित प्रावधानों से संबंधित हैं, उन्हें विशेष रूप से इस तरह से तैयार करना चाहिए कि वे भारत के ईयू के क्षेत्रीय और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (आरवीसी और जीवीसी) के साथ एकीकरण को सुविधाजनक बनाएं
भारत ने लंबे समय से अपने एफटीए में सख्त दोहरे मानदंड-आधारित रुल्स ऑफ ओरिजिन या आरओओ नीति का पालन किया है। एफटीए भागीदार अर्थव्यवस्थाओं से आयात को मूल वरीयता प्रदान करने के लिए शुल्क मद में बदलाव और उच्च मूल्य वर्धित सामग्री दोनों की आवश्यकता है।
सख्त आरओओ के लिए अंतर्निहित तर्क हमेशा यह रहा है कि वे देश के भीतर एकीकृत मूल्य श्रृंखलाओं को प्रोत्साहित करने में मदद करते हैं। हालांकि, इस औचित्य का समर्थन करने के लिए बहुत कम प्रमाण उपलब्ध हैं। वास्तव में सूचना, संचार और तकनीक में क्रांतिकारी बदलावों से विश्व स्तर पर तंत्रगत उत्पादन प्रक्रियाओं के उत्थान से यह तर्क लंबे समय से अप्रासंगिक हो गया है।
जटिल मूल्य श्रृंखलाओं (जो हमेशा उच्च-तकनीक वाले उद्योगों की विशेषता होती हैं) के अंतर्गत कल-पुर्जे कई देशों की सीमाएं लांघते हैं और कभी-कभी किसी विशेष स्थान पर इनमें न्यूनतम मूल्यवर्द्धन होता है। लिहाजा, सरल आरओओ इनपुट सोर्सिंग के लिए अधिक लचीले विकल्प सामने लाते हैं। भारत को जीवीसी और आरवीसी के साथ एकीकृत करने के लिए, भारत के एफटीए में आरओओ को वैश्विक उत्पादन में बिखराव की इस वास्तविकता के साथ संरेखित किया जाना चाहिए।
ईयू के साथ एफटीए में भारत के लिए कम से कम उत्पादों या क्षेत्रों की चुनिंदा श्रेणी के लिए सरल, संचयी मूल्यवर्द्धन (वीए)- आधारित आरओओ को अपनाना उपयोगी साबित हो सकता है। वीए संचय नियमों को क्षेत्रों एवं उत्पादों की एक बड़ी श्रेणी और समय के साथ उन अर्थव्यवस्थाओं, जिनके साथ भारत और ईयू दोनों के एफटीए हैं, में लागू करने की संभावना को एफटीए में एक अंतर्निहित प्रावधान के रूप में शामिल करने पर विचार किया जा सकता है।
सामान्य एफटीए भागीदार देशों में कलपुर्जों को इस तरह की मूल स्थान वरीयता प्रदान करना (जिनके लिए वीए संचय की अनुमति है) भारत के लिए मूल्य श्रृंखला एकीकरण को बढ़ावा देगा। आसियान सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ द्विपक्षीय एफटीए की संख्या बढ़ाने के लिए यूरोपीय संघ के गंभीर प्रयास तथा आसियान और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए) के साथ भारत के मौजूदा एफटीए को ध्यान में रखते हुए, एफटीए में आरओओ का उपयुक्त तालमेल भारत के जीवीसी एकीकरण के लिए संभावनाओं के एक नए क्षेत्र को खोलेगा। इसे देखते हुए ईयू के साथ आरओओ वार्ता के लिए अधिक उदार और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।
निवेश के संबंध में पहला सबसे अच्छा दृष्टिकोण व्यापक एफटीए वार्ता के हिस्से के रूप में एक साथ व्यापार और निवेश से जुड़े विषयों पर बातचीत रहेगा। बाद में होने वाले एक अलग निवेश सौदे में हमेशा अनिश्चित काल तक देरी होती है। एक उपयुक्त रूप से तैयार निवेशक-राज्य विवाद निपटान तंत्र की कमी भारत के हालिया एफटीए में निवेश एक सीमित दायरे में सिमटने का कारण रहा है।
ऑस्ट्रेलिया इसका एक उदाहरण है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि शुल्क वरीयताओं तक सीमित एक एफटीए पर्याप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने में कारगर नहीं रहता है। इसे देखते हुए ईयू सहित दुनिया भर के विभिन्न देशों से उभरने वाले विचारों को ध्यान में रखते हुए एक दूरदर्शी निवेशक-राज्य विवाद निपटान तंत्र पर भारत में तत्काल चर्चा शुरू करने की आवश्यकता है।
इस बीच, नियामक सुगमता और निवेश सुविधा पर प्रतिबद्धताओं के अलावा, निवेश अध्याय में भारत-यूरोपीय संघ मध्यस्थता तंत्र (जो यूरोपीय संघ में किसी एक सदस्य देश के अनुमोदन के अधीन नहीं हो) को शामिल करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। यह इस महीने की शुरुआत में जारी की गई यूरोपीय संघ की नई भारत रणनीति में रेखांकित महत्त्वपूर्ण उभरती प्रौद्योगिकियों में संभावित निवेश अवसरों को साकार करने में अहम प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।
अंत में, भारत कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) पर ईयू-मर्कोसुर एफटीए से कुछ सीख ले सकता है। ऐसी स्थिति में, जहां बातचीत के माध्यम से रियायती व्यापार के परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, इसी प्रकार से तरजीही प्रावधानों के पुनर्संतुलन पर यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम किया जा सकता है। यह भारत के कार्बन क्रेडिट बाजार और मूल्य निर्धारण तंत्र को विकसित करने में सहयोग (तकनीकी और परिचालन) के भरोसे के साथ किया जाना चाहिए ताकि ईयू उत्सर्जन व्यापार प्रणाली के साथ अंतर-संचालनीयता सुनिश्चित की जा सके।
नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन क्षमताओं और हरित वित्त (ग्रीन फाइनैंस) के विकास पर सहयोग के लिए संभावित संयुक्त पहलों पर संयुक्त भारत-ईयू व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद में अतिरिक्त रूप से बातचीत की जानी चाहिए। कुल मिलाकर ईयू के साथ अच्छी तरह से तैयार और ठोस एफटीए को अंतिम रूप देने का यह माकूल समय है।
(लेखिका जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)