अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के भारत के मिशन प्रमुख हेरल्ड फिंगर ने रुचिका चित्रवंशी को वर्चुअल बातचीत में बताया कि वैश्विक अनिश्चितता और अमेरिकी शुल्क के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है। फिंगर ने 16वें वित्त आयोग के कार्यों, एआई के प्रभाव और अन्य विषयों पर बात की। प्रमुख अंश:
भारत की अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है। इसकी प्रमुख वजह मजबूत घरेलू स्थिति है। सितंबर में जीडीपी की वृद्धि उम्मीद से कहीं अधिक रही। अगस्त से लगाए गए 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क का अर्थव्यवस्था पर कुछ हद तक असर पड़ने लगा है। हाल के व्यापार में कुछ शुरुआती लचीलापन दिखा है, जिसमें अमेरिका को निर्यात में गिरावट की आंशिक रूप से अन्य देशों को बढ़ते निर्यात से भरपाई हुई है। जब आप इन सभी बातों को ध्यान में रखते हैं, तो वित्त वर्ष 2026 के लिए हमारे 6.6 प्रतिशत के अनुमान में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की संभावना है। हम जनवरी में आगामी वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक अपडेट में अपने अनुमान को अद्यतन करेंगे।
सितंबर तिमाही की मौजूदा मजबूत धारणा को देखते हुए ऐसा लगता है कि इसमें वृद्धि हो सकती है।
शुल्क में वृद्धि से भारत का निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो रहा है, लेकिन समग्र आर्थिक असर प्रबंधन योग्य है। अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार नीति को लेकर बढ़ती अनिश्चितता से भारत में घरेलू निवेश और एफडीआई में कमी आ सकती है। हमारे बेसलाइन अनुमान में अगले वित्त वर्ष में शुल्क बने रहने की स्थिति में मामूली प्रभाव की बात कही गई है, लेकिन हाल के व्यापार आंकड़ों में लचीलापन दिखा है। इसलिए यह संभव है कि शुल्क का प्रभाव हमारे अनुमान से कुछ कम हो, लेकिन पूरी तरह से आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी। इसका पुनर्मूल्यांकन करने के लिए हमें कम से कम कुछ और महीनों के आंकड़ों की आवश्यकता होगी। आईएमएफ ने सार्वजनिक वित्त की संस्थागत संरचना को मजबूत करने के लिए एक स्वतंत्र राजकोषीय निकाय स्थापित करने की सिफारिश की है। 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने भी पहले ऐसा ही सुझाव दिया था।
राजकोषीय परिषद भारत की राजकोषीय संस्थाओं को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम होगा। जैसे-जैसे भारत एक उन्नत अर्थव्यवस्था बनने की कोशिश कर रहा है, वैसे-वैसे सामान्य तौर पर संस्थाओं को मजबूत करने के लिए सुधार करना बेहतर है, क्योंकि भारत भी विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
दरअसल राज्य आर्थिक विकास, संस्थानों की गुणवत्ता, और राजकोषीय प्रदर्शन के मामले में विभिन्न चरण में हैं। ऐसे में ऐसा राजस्व वितरण फॉर्मूला बनाना कठिन हो जाता है, जिस पर सभी सहमत हों। भारत में संघवाद का मतलब है कि राज्यों को कई क्षेत्रों में अपनी रुचियों और क्षमताओं के अनुसार कार्य करने की लचीलापन है, लेकिन इसका तात्पर्य राज्यों के बीच एकजुटता और पुनर्वितरण की आवश्यकता भी है।