भारत में इस साल कंपनियां डॉलर में कर्ज कम ले रही हैं। इसकी वजह है कि अमेरिका में ब्याज बहुत ज्यादा है और दुनिया में तनाव चल रहा है। इसलिए कंपनियां अब रुपये में ही कर्ज लेना ज्यादा पसंद कर रही हैं। इसी कारण कई विदेशी बैंक जैसे स्टैंडर्ड चार्टर्ड और बार्कलेज अब भारतीय रुपये बॉन्ड (rupee bond) बाजार में अपनी पकड़ बढ़ाने में जुटे हैं। ये बैंक अब भारतीय कंपनियों को रुपये में कर्ज देने और उनके लिए बॉन्ड जारी करने की योजना बना रहे हैं।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के डायरेक्टर प्रथमेश सहस्रबुद्धे का कहना है कि भारतीय कंपनियों के लिए रुपये में कर्ज लेना सस्ता और सुरक्षित लगता है। दुनिया में जब तक हालात ठीक नहीं होते और ब्याज दरें ज्यादा रहती हैं, तब तक कंपनियां रुपये में ही ज्यादा कर्ज लेंगी। बड़ी भारतीय और विदेशी (MNC) कंपनियां अब भारत के अंदर ही पैसे जुटा रही हैं, क्योंकि यहां पैसा आसानी से मिलता है और ब्याज में ज्यादा बदलाव नहीं होता। इसी वजह से 2025 में रुपये बॉन्ड बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। अभी तक ₹12.6 लाख करोड़ के रुपये बॉन्ड बिक चुके हैं। इसके मुकाबले, डॉलर वाले बॉन्ड केवल $9 अरब ही बिके हैं, जो पिछले साल से 32% कम है।
बार्कलेज बैंक भारत में अपना काम बढ़ाने के लिए घरेलू बाजार में ज्यादा पैसा लगा रहा है। 2021 से अब तक बैंक $700 मिलियन (लगभग ₹5,800 करोड़) भारत में लगा चुका है, ताकि यहां का कारोबार मजबूत हो सके। बार्कलेज ने हाल ही में भारती टेलीकॉम के ₹8,500 करोड़ के बॉन्ड बेचने में मदद की। इस साल बैंक ने अब तक ₹22,600 करोड़ के सौदे किए हैं, जो पिछले साल से करीब 37% ज्यादा है।
विदेशी बैंकों को भारतीय बैंकों से कड़ी टक्कर मिल रही है। एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंक जैसे भारतीय बैंक रुपये बॉन्ड मार्केट में सबसे आगे हैं। इनके पास ज्यादा जमा पैसा है, ज्यादा शाखाएं हैं और सरकारी बैंकों को सरकार का सहारा भी मिलता है।
कैपरी ग्लोबल के डायरेक्टर अजय मंगलूनिया का कहना है कि अब विदेशी बैंकों को समझ में आ गया है कि भारत में रुपये में कर्ज देना ही जरूरी है और इससे ही वे अपना कारोबार बढ़ा पाएंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें स्थानीय बैंकों से सीधा मुकाबला करना पड़ेगा। (ब्लूमबर्ग के इनपुट के साथ)