भारत में तैयार होने वाले आधे से अधिक शहद के लिए विदेश में अच्छा-खासा तैयार बाजार मिल रहा है और मधुमक्खी पालन कृषि क्षेत्र के लिए एक लाभदायक निर्यात गतिविधि के तौर पर उभरा है। लगभग दो दशकों से शहद निर्यात की वृद्धि ने उत्पादन की वृद्धि को लगातार पीछे छोड़ा है। भारत इस प्राकृतिक मिठास के वैश्विक बाजार में छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
भारत के पास शहद के निर्यात को अब वैश्विक बाजार में और बढ़ाने की काफी गुंजाइश है, लेकिन इसके लिए विदेश में नए बाजारों की खोज करनी होगी और शहद के उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, पैकेजिंग, ब्रांडिंग, परिवहन और मार्केटिंग से जुड़ी पूरी घरेलू वैल्यू चेन में सुधार की आवश्यकता होगी।
वर्तमान में, निर्यात का बड़ा हिस्सा यानी लगभग 80 फीसदी, अकेले अमेरिका में जाता है जबकि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, लीबिया, मोरक्को और कनाडा जैसे अन्य देशों में इसकी कम मात्रा जाती है। यूरोपीय संघ और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में आसानी से नए बाजार खोजे जा सकते हैं। इन दिनों शहद में चीनी की मिलावट पर भी ज्यादा चर्चा होती है जिससे घरेलू बाजार और निर्यात से जुड़े बाजारों में भारतीय शहद की छवि खराब होती है।
इसके अलावा, अब तक मधुमक्खी पालन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ही सीमित रहा है, लेकिन अब इसका विस्तार अन्य क्षेत्रों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत में किया जाना चाहिए जहां फूलों वाले पौधों की मात्रा भरपूर है।
दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2005-06 से भारत का शहद उत्पादन लगभग 240 फीसदी बढ़ा है जबकि निर्यात में 260 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। हाल के वर्षों में घरेलू उत्पादन के मुकाबले निर्यात बढ़ने के रुझान में तेजी आई है। सरकारी आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि जहां वर्ष 2018-19 और 2022-23 के बीच देसी उत्पादन 72 फीसदी बढ़कर 77,000 टन से 1,33,000 टन हो गया है, वहीं निर्यात में 86 फीसदी की वृद्धि हुई है और यह 43,000 टन से बढ़कर लगभग 80,000 टन हो गया है।
दुनिया भर में शहद की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसका मुख्य कारण यह है कि इसके स्वास्थ्य लाभ को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है और चीनी के बेहतर विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल भी स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद के तौर पर बढ़ा है। दवा और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में भी इसका उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। रोग प्रतिरोधक क्षमता के अपने गुणों के कारण महामारी के दौरान शहद को काफी बढ़ावा मिला।
इसमें ऐंटी-बैक्टीरियल गुण के साथ-साथ हाइड्रोजन पैरॉक्साइड भी होता है जिसे एक प्रभावी सैनिटाइजर माना जाता है। आयुर्वेद में, प्राकृतिक शहद का व्यापक उपयोग खांसी, कफ, अस्थमा, हिचकी, आंखों में संक्रमण, मधुमेह, मोटापा, कृमि संक्रमण, उल्टी और दस्त के उपचार के लिए किया जाता है। इसके अलावा त्वचा की समस्याओं को भी दूर करने के लिए भी इसे बाहरी त्वचा पर लगाया जाता है।
आधुनिक तकनीकों के आने और प्रवासी मधुमक्खी पालकों के एक नए वर्ग के उभरने के साथ ही मधुमक्खी पालन से होने वाला मुनाफा लगातार बढ़ रहा है। प्रवासी मधुमक्खी पालक फूलों वाले पौधे और परागण के साथ-साथ परस्पर परागित पौधे की तलाश में अपने मधुमक्खियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। मधुमक्खियों का वास्तव में कृषि और विशेष रूप से बागवानी फसलों के साथ परस्पर सहजीवी संबंध है।
मधुमक्खियां फूलों के परागकण और रस से अपना आवश्यक भोजन प्राप्त करती हैं, वहीं दूसरी ओर मधुमक्खियों से फूलों वाले पौधे को परागण के लिए एक फूल से दूसरे फूल में पराग ले जाने और इसका प्रसार करने में फायदा मिलता है। दुनिया के 2,50,000 महत्त्वपूर्ण फूलों वाले पौधों की प्रजातियों में से लगभग 16 फीसदी के लिए मधुमक्खियों को प्रमुख परागणक माना जाता है।
इसके अलावा मानव आहार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा मधुमक्खी परागण के उत्पादों से मिलता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि मधुमक्खियों के माध्यम से परागण, मूली के बीज उत्पादन को 22-100 फीसदी और गोभी तथा खीरे के बीज उत्पादन को 400 फीसदी तक बढ़ा सकते हैं। इससे उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
इस प्रकार, कई मामलों में परागणक के रूप में मधुमक्खियों का आर्थिक योगदान शहद और उसके अधिक मूल्य वाले दूसरे उन उत्पादों के मूल्य से अधिक हो जाता है जिनका उत्पादन मधुमक्खियां करती हैं। इनमें से अधिकांश अन्य उत्पादों में रॉयल जेली, मोम, मधु पराग और मधुमक्खी का विष शामिल हैं जिनकी दवा और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में अच्छी मांग होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 में श्वेत क्रांति और हरित क्रांति की तर्ज पर शहद क्रांति लाने का आह्वान किया था जो शहद क्षेत्र के लिए एक बड़ा बदलाव वाला मोड़ साबित हुआ। राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और मधु मिशन के शुभारंभ के साथ ही एक राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के गठन ने इस क्षेत्र के तकनीकी आधुनिकीकरण और मधुमक्खी के छत्तों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि को रफ्तार दी है।
इन निकायों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मधुमक्खी पालन विकास केंद्रों, मधुमक्खी पालकों के समूहों और सहकारी समितियों और विभिन्न प्रकार के किसान उत्पादक संगठनों और स्टार्टअप के उभरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जो मधुमक्खी पालन और इसके उत्पादों के प्रसंस्करण और मार्केटिंग से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में लगे हुए हैं।
आईसीएआर देश के विभिन्न कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास कार्यों के लिए, मधुमक्खियों और परागणकों पर एक अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना भी चला रहा है। किसानों की आमदनी दोगुनी करने में शहद उत्पादन को बढ़ावा देने और मधुमक्खी पालन को उसकी उचित भूमिका निभाने के लिए इन प्रयासों को तेज करने की आवश्यकता है।