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बैंकिंग उद्योग में बढ़ती धोखाधड़ी

Last Updated- April 18, 2023 | 9:08 PM IST
Indian Banks- भारतीय बैंक
BS

जूम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, स्टर्लिंग बायोटेक लिमिटेड, किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड, दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्प लिमिटेड, रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड और श्रेय इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस लिमिटेड इन सभी में क्या समानता है? इन कंपनियों के खाते भारतीय बैंकों के उन हजारों खातों में शामिल हैं जिन पर ऋण नहीं लौटाने और धोखाधड़ी करने का ठप्पा लग चुका है।

वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2023 के बीच इन खातों को विभिन्न बैंकों ने काली सूची में डाल दिया था। इन खातों से जुड़ी रकम अलग-अलग हैं मगर इनमें प्रत्येक मामले में ऋण कम से कम 100 करोड़ रुपये है।

बैंकिंग उद्योग ने वित्त वर्ष 2022 में 60,389 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 9,102 मामले दर्ज किए थे। इनकी तुलना में वित्त वर्ष 2021 में 7,358 मामलों में 1.37 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 8,702 मामलों में 1.85 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए गए।

वर्ष 2019 में बैंकों के साथ धोखाधड़ी के 8,700 मामलों में 1.9 लाख करोड़ रुपये की रकम संलिप्त थी। इनमें लगभग 86 प्रतिशत मामले बड़ी कंपनियों से जुड़े थे और इनमें प्रत्येक में ऋण की राशि 50 करोड़ रुपये से अधिक थी।

जून 2017 में वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों के साथ धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों और इनमें शामिल भारी भरकम रकम का जिक्र किया था और ऐसे मामलों को वित्तीय क्षेत्र के लिए जोखिम करार दिया था। दो वर्ष बाद जून 2019 में जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में धोखाधड़ी के मामलों की पहचान में देरी को तेजी से बिगड़ती स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

इस रिपोर्ट में कहा गया कि वित्त वर्ष 2019 में दर्ज 90.6 प्रतिशत मामले ऐसे थे जो 2000 और 2018 की बीच की अवधि में दर्ज हुए थे। दिसंबर 2018 में आरबीआई ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जोखिम प्रबंधन की राह में धोखाधड़ी को सबसे गंभीर चिंता का विषय बताया था। मार्च के अंत में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि किसी खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले कर्जधारकों को उनका पक्ष रखने का मौका अवश्य दिया जाना चाहिए।

शीर्ष न्यायालय का आदेश 2016 में जारी आरबीआई के परिपत्र से जुड़ा है। इस परिपत्र में इरादतन भुगतान नहीं करने वालों को जालसाज घोषित करने की अनुमति दी गई थी। अगर कोई व्यक्ति ऋण चुकाने की क्षमता के बावजूद ऋण नहीं चुकाता है तो उसे इरादतन ऋण नहीं चुकाने वाला समझा जाता है। रकम की हेराफेरी करने वाले भी इसी श्रेणी में रखे गए हैं।

शीर्ष न्यायालय ने 2020 में उच्च न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखा मगर वह (शीर्ष न्यायालय) बिना पक्ष सुने किसी को एकतरफा जालसाज घोषित किए जाने के खिलाफ है। भुगतान में चूक करने वालों को जालसाज क्यों घोषित किया जा रहा है इसके कारणों को जानना एवं समझना अनिवार्य है। स्पष्ट है कि इस आदेश का मकसद बैंकों को अधिकारों का मनमाना इस्तेमाल करने से रोकना है।

यह मुख्य परिपत्र 2016 में बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35ए के तहत जारी किया गया था। इसके तहत बैंकों को इरादतन भुगतान नहीं करने वालों को एकतरफा जालसाज घोषित करने का अधिकार दिया गया था। यहां पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि धोखाधड़ी का ठप्पा लगवा चुके सभी खाते इरादतन चूक करने वाले माने गए हैं मगर इरादतन चूक करने वाले सभी कर्जधारकों को जालसाज नहीं माना गया है।

यह परिपत्र जुलाई 2017 में अद्यतन किया गया था। ऊर्जा पारेषण एवं वितरण कारोबार करने वाली कंपनी बी एस लिमिटेड के प्रवर्तक राजेश अग्रवाल ने इसे तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। आरबीआई और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की थी।

अगर बैंक मनमाने ढंग से किसी कर्जधारक को जालसाज घोषित करते हैं तो इससे न केवल उस कर्जधारक की ऋण लेने की क्षमता पर असर होता है बल्कि यह परिपत्र प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है। ऐसा लगता है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश का यही आधार है। यह अलग बात है कि कर्जदाता इस परिपत्र को फर्जीवाड़े की समय रहते पहचान के लिए काफी उपयोगी मानते हैं।

क्या यह आदेश देश में ऋण आवंटन के ढांचे में नाटकीय बदलाव लाएगा? यह तो आगे चलकर ही पता चल पाएगा। अब बैंकों के साथ जालसाजी के तरीके भी बदल रहे हैं। ऋण से जुड़ी जालसाजी के मामलों में अब कमी आ रही है मगर साइबर अपराध तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।

साइबर अपराध में कार्ड या इंटरनेट आधारित लेनदेन शामिल होते हैं। यह भी सच है कि कंपनियों द्वारा ऋण नहीं चुकाने के मामलों में शामिल रकम की बराबरी साइबर अपराध नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एबीजी शिपयार्ड ने एसबीआई और अन्य 27 बैंकों को 22,842 करोड़ रुपये का चूना लगाया था। इसी तरह पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) के साथ 11,400 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हुआ था।

इस समय बैंक इरादतन भुगतान नहीं करने वालों को उनका पक्ष रखने का मौका तो देते हैं मगर वे जालसाजों की नहीं सुनते हैं। अगर जालसाजों को उनका पक्ष रखने की अनुमति मिल जाती है तो इससे स्थितियां शायद ही बदलेंगी। आखिर कौन मानेगा कि उसने धोखाधड़ी की है?

बैंक किसी खाते को धोखाधड़ी से जोड़ने से पहले काफी जांच-पड़ताल करते हैं। ये मामले सीधे हमसे जुड़े हैं क्योंकि इनमें कहीं न कहीं जमाकर्ताओं की रकम शामिल होती है। आखिर, वे किसी निर्दोष कर्जधारकों को दोषी ठहराने की कोशिश क्यों करेंगे?

कुछ अपवादों को छोड़कर नई प्रणाली पूरी प्रक्रिया में देरी कर देगी। किसी खाते को फर्जीवाड़ा घोषित करने के बाद भी न्यायालय में मामले चलते रहेंगे। एक ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि प्राथमिकी दर्ज किए जाने से पहले जरूरी नहीं है कि कर्जदाताओं को उसका पक्ष रखने का मौका दिया जाए।

First Published - April 18, 2023 | 9:08 PM IST

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