बजट में वर्ष 2023-24 के प्रारंभिक आंकड़ों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए और रिजर्व बैंक के अतिरिक्त अधिशेष का इस्तेमाल बेहतर प्रभाव के लिए किया जाना चाहिए। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य
अब जबकि निर्मला सीतारमण पिछले कार्यकाल की तरह वित्त मंत्री के पद पर लौट आई हैं तो केंद्रीय वित्त मंत्रालय भी अपने सबसे अहम काम में जुट गया है यानी 2024-25 का बजट तैयार करना। उन्होंने गत 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया था परंतु वह केवल लेखानुदान था। यानी उन्होंने नई सरकार का पूर्ण बजट पेश होने तक व्यय के लिए एक खास राशि खर्च करने के वास्ते संसद की अनुमति मांगी थी।
इससे पहले के कुछ अंतरिम बजट के उलट उन्होंने बजट में कोई नई नीतिगत घोषणा नहीं की थी। अब जबकि वह चालू वर्ष का पूर्ण बजट तैयार कर रही हैं तो उनकी प्रमुख चिंता क्या होनी चाहिए?
निस्संदेह वृहद आर्थिक हालात जिनके तहत आगामी बजट तैयार किया जाएगा, वे अंतरिम बजट के समय की तुलना में फिलहाल बेहतर नजर आ रहे हैं। खुदरा मुद्रास्फीति नियंत्रण में नजर आ रही है, हालांकि अभी भी यह सरकार द्वारा तय चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है।
सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी (GDP) 2023-23 में 8.2 फीसदी की दर से बढ़ी और इस वर्ष उसके 7.2 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) भी 640 अरब डॉलर के साथ सहज स्तर पर है। चालू खाते का घाटा भी 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में जीडीपी के 1.2 फीसदी के साथ नियंत्रण में रहा है।
कुछ अनुमानों के अनुसार पूरे वर्ष के दौरान यह एक फीसदी से कम रह सकता है। निर्यात के मोर्चे पर भी कुछ चिंताएं हैं। वस्तु निर्यात में गिरावट आ रही है और सेवा निर्यात भी पहले जैसा गतिशील नहीं है।
भूराजनीतिक तनावों में कोई कमी आती नहीं दिख रही है, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जिंस कीमतें खासकर कच्चे तेल की कीमतें भी चिंता का विषय हो सकती हैं। परंतु कुल मिलाकर 2024-25 का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती से लाभान्वित हो सकता है।
वर्ष 2024-25 के बजट के लिए एक और सकारात्मक बात हाल के घटनाक्रम से निकली है। भारतीय रिजर्व बैंक का अधिशेष हस्तांतरण इस वर्ष अनुमान से 133 फीसदी अधिक रह सकता है। कुल 2.1 लाख करोड़ रुपये का यह हस्तांतरण जीडीपी के करीब 0.37 फीसदी के करीब गुंजाइश बनाएगा।
क्या सरकार को इस अतिरिक्त प्राप्ति का इस्तेमाल घाटा कम करने में करना चाहिए या अधोसंरचना में निवेश बढ़ाना चाहिए अथवा खपत बढ़ाने के लिए कर प्रोत्साहन देना चाहिए। एक प्रश्न यह भी है कि क्या सरकार को निचले स्तर पर इससे अधिक रोजगार तैयार करने चाहिए?
सरकार द्वारा गत वर्ष संसाधनों के उपयुक्त इस्तेमाल की बदौलत वर्ष 2023-24 का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.6 फीसदी तक सीमित रखने में मदद मिली जबकि बजट अनुमान 5.9 फीसदी का था। अब घाटे को कम करके अंतरिम बजट के 5.1 फीसदी के लक्ष्य तक लाने का काम अपेक्षाकृत आसान होना चाहिए।
यकीनन वित्त मंत्रालय और तेज कमी लाकर 4.5 फीसदी के लक्ष्य को 2025-26 से पहले हासिल करने का लक्ष्य रख सकता है और अगले कुछ वर्ष में इसे तीन फीसदी के स्तर पर लाने की बात भी कह सकता है। अगले बजट में इन बड़े नीतिगत विकल्पों को चुनना होगा कि क्या इस वर्ष केवल घाटा कम करने पर ध्यान देकर उपलब्ध संसाधनों से अर्थव्यवस्था की अन्य जरूरतों को पूरा किया जाए मसलन निवेश, रोजगार और खपत मांग को बढ़ाना।
इस वर्ष के बजट का दूसरा सकारात्मक पहलू अप्रत्याशित क्षेत्र से आ सकता है। जुलाई 2022 से जून 2024 के बीच सरकार के वस्तु एवं सेवा कर (GST) क्षतिपूर्ति उपकर राजस्व में करीब 2.7 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। यह वह राशि है जो केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक से उधार ली थी ताकि कोविड के महीनों में उन्हें हुई राजस्व हानि की भरपाई की जा सके। जुलाई 2022 से राज्यों को किसी तरह की क्षतिपूर्ति मिलनी बंद हो गई लेकिन केंद्र अपने ऋण की भरपाई के लिए यह राशि संग्रहित करता रहा।
वास्तविक भुगतान देनदारी के ब्योरे उपलब्ध नहीं हैं लेकिन संभव है कि मार्च 2025 के पहले पूरा भुगतान हो जाएगा। इससे सरकार को दो तरह से अवसर मिलेंगे। वित्त मंत्रालय जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर समाप्त कर सकता है या उसके एक हिस्से को संशोधित दरों में शामिल कर सकता है।
आदर्श स्थिति में उपकर समाप्त होना चाहिए और यह कवायद जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया के साथ होनी चाहिए। दूसरा लाभ समग्र क्षतिपूर्ति उपकर को समाप्त करके जीएसटी दर को कम करना हो सकता है ताकि मांग बढ़ सके।
बजट विकल्पों से इतर नजर डालें तो वित्त मंत्रालय बजट प्रस्तुति में पारदर्शिता लाकर बड़ा सुधार कर सकता है। आम चुनाव के बाद पेश किए गए सभी बजट पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों पर आधारित रहे हैं जो अंतरिम बजट में पेश किए जाते।
बहरहाल जब तक पूरा बजट पेश किया जाता है वित्त मंत्रालय के पास पिछले वर्ष के प्रारंभिक आंकड़े होते हैं हालांकि वे अंकेक्षित नहीं होते। ध्यान रहे कि पिछले कुछ बजटों में संशोधित अनुमान और आरंभिक अनुमानों में काफी अंतर था।
उदाहरण के लिए 2008-09 में कुल राजस्व प्राप्तियों के लिए प्रारंभिक अनुमान संशोधित अनुमान से तीन फीसदी कम निकला। प्रारंभिक अनुमान में सरकार का पूंजीगत व्यय संशोधित अनुमान से 8 फीसदी कम था। 2013-14 में सरकार का कुल कर राजस्व प्रारंभिक अनुमानों में संशोधित अनुमान से 214 फीसदी कम था। वर्ष 2018-19 में यह अंतर बहुत बढ़ गया और राजस्व प्राप्ति के प्रारंभिक अनुमान संशोधित अनुमान से 9.6 फीसदी कम रहे।
शुद्ध कर प्राप्तियां 11 फीसदी और कुल व्यय छह फीसदी कम रहा। अधिकांश अवसरों पर यह अंतर अंतिम आंकड़ों पर बड़ा असर नहीं डाल सका। परंतु राजस्व और व्यय के आंकड़ों में इस अंतर का अर्थ यह था कि इन आंकड़ों पर आधारित अर्थव्यवस्था के सभी पाठों में दिक्कत होगी।
बजट दस्तावेजों का अध्ययन करने पर राजस्व और व्यय के आंकड़े बजट अनुमान और संशोधित अनुमान के रूप में दो श्रेणियों में नजर आएंगे, हालांकि सरकार के पास प्रारंभिक बिना अंकेक्षण के भिन्न-भिन्न आंकड़े उपलब्ध होंगे।
2023-24 के प्रारंभिक और संशोधित आंकड़ों में ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन वित्त मंत्री को अधिक पारदर्शिता बरतनी चाहिए ताकि सरकार के राजस्व संग्रह तथा व्यय के रुझान को लेकर अधिक पारदर्शी तस्वीर सामने आ सके। यह निर्णय बजट निर्माण की प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता लाने की दृष्टि से भी अहम होगा।