भारत में मत्स्य पालन (Fisheries) या जलीय कृषि की तेज वृद्धि को अपेक्षित सराहना नहीं मिली है। पिछले एक दशक के दौरान जलीय कृषि फार्मों में मत्स्य एवं अन्य जलीय खाद्य उत्पादन में 80 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
देश में 2.8 करोड़ से अधिक लोग मछली पालन या जलीय कृषि से सीधे रोजगार पा रहे हैं। इसके अलावा, लाखों लोग उत्पादन के बाद इसकी मूल्य श्रृंखला से जुड़ कर रोजी-रोटी कमा रहे हैं।
ऐसे राज्यों में जहां पारंपरिक तौर मछलियां नहीं पाली जातीं, वहां भी किसानों ने अपने खेतों में तालाब खोद कर मत्स्य पालन शुरू कर दिया है। बेहतर आमदनी और रोजगार के लिए बड़ी संख्या में युवा इस धंधे की ओर आकर्षित हो रहे हैं। झींगा उत्पादन में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रही है।
ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात जैसे कई राज्यों में मीठे और खारे पानी के हजारों तालाब खोदे गए हैं, जिनमें झींगा पालन किया जा रहा है।
विशेष बात यह कि इनमें बहुत से ऐसे हैं, जहां से 100 फीसदी झींगा निर्यात किया जा रहा है। नतीजतन, भारत फार्म फिश उत्पादन में अग्रणी देश बन गया है और वह इस मामले में लगभग चीन की बराबरी कर रहा है। यही नहीं, अपना देश पकड़कर जस का तस बेचे जाने वाले और प्रसंस्कृत झींगा के निर्यात में भी शीर्ष देशों में शामिल हो गया है।
रोचक तथ्य यह है कि मछली उत्पादन में लगभग 60 लाख टन वार्षिक के स्तर पर पहुंचने में आजादी के बाद 66 वर्ष लग गए, जबकि इससे दोगुने उत्पादन का लक्ष्य मात्र पिछले 10 वर्ष में हासिल कर लिया गया। आधिकारिक आंकड़ों से साफ पता चलता है कि मत्स्य उत्पादन में पिछले एक दशक में बहुत तेज वृद्धि हुई है।
जलीय कृषि उत्पादन वर्ष 2013-14 में जहां 61.3 लाख टन दर्ज किया गया था, वहीं 2022-23 में यह 1.31 करोड़ टन पहुंच गया। आने वाले वर्षों में इसमें और भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा रही है।
इसका बड़ा कारण यह है कि केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत देश में मत्स्य पालन पर बहुत अधिक जोर दिया जा रहा है। यह योजना साल 2020 में लागू की गई थी, जिसका उद्देश्य मछली उत्पादन को मौजूदा 3 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 टन से अधिक के स्तर पर पहुंचाना है।
इसके अतिरिक्त, इस योजना की वजह से जलीय कृषि उत्पादों का निर्यात भी पहले के मुकाबले दोगुना हो गया है और लगभग 50.5 लाख अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
यही नहीं, यह इसी योजना की देन है कि स्माल फार्मर्स एग्री-बिजनेस कंसोर्टियम (एसएफएसी), भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी एवं विपणन संघ (NAFED), राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड जैसी एजेंसियों के सहयोग से देश में 2000 से अधिक किसानों के मत्स्य उत्पादक संगठन (एफएफपीओ) बन चुके हैं।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे उत्तर भारत के गैर पारंपरिक मत्स्य उत्पादक राज्यों में झींगा पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार एक और योजना लाने पर काम कर रही है। इस उद्देश्य के लिए खारे भूजल वाली लवणीय भूमि की पहचान की जा रही है, जहां घरेलू उपयोग और निर्यात के लिए खारे पानी वाली झींगा मछली का उत्पादन किया जा सके।
हरियाणा ने पहले ही इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है, जहां लगभग 500 हेक्टेयर जलस्रोतों को झींगा पालन के लिए चिह्नित किया जा चुका है। झींगा, सीप, घोंघा, केकड़े, समुद्री बैस, मुलेट, मिल्क फिश और कोबिया जैसे जलीय जीवों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए चेन्नई के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिश-वॉटर एक्वाकल्चर जैसे मत्स्य शोध केंद्रों की मदद ली जा रही है।
आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर ऐसे कृषि फार्मों से उत्पादन बढ़ाकर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 टन तक करने की उम्मीद है। पठारी क्षेत्र के अधिकांश भागों में मत्स्य उत्पादकों में झींगा पालन पहले से ही काफी लोकप्रिय है। अब उत्तरी राज्यों में भी झींगा का उत्पादन बढ़ने लगा है। मीठे और खारे पानी में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने से भारत जलीय खाद्य उत्पादों के निर्यात में खासी वृद्धि करने में कामयाब होगा।
भारत में 1960 के अंत और 1970 के आरंभ में मानव निर्मित तालाबों के साथ-साथ प्राकृतिक जल स्रोतों में संयुक्त मत्स्य पालन शुरू किए जाने के साथ जलीय कृषि क्रांति की जड़ें जमने लगी थीं। आज भी काफी लोकप्रिय इस तकनीक के जरिए मछलियों की कई प्रजातियों को एक ही तालाब या जलस्रोत में एक साथ पाला जाता है।
इनमें ऐसी मछलियों और जलीय खाद्य जीवों को रखा जाता है, जो पानी की अलग-अलग गहराई में एक साथ रहने के आदी हों। ये ऐसी प्रजातियां होती हैं, जिनमें अपने भोजन के लिए कोई आपसी प्रतिस्पर्धा या छीना-झपटी नहीं होती। इस प्रणाली में रोहू, कतला और मृगल के साथ-साथ सिल्वर कार्प एवं ग्रास कार्प जैसी मछलियों की तीन प्रजातियों को बहुतायत में पाला जाता है। खास बात यह कि पूरे देश में हमेशा इन मछलियों की मांग बहुत अधिक रहती है।
कंपोजिट फिश फार्मिंग अथवा मिश्रित मत्स्य उत्पादन में पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत अधिक बदलाव आया है। वर्टिकल मत्स्य उत्पादन इसमें सबसे प्रमुख है। इसके जरिए बहुत अधिक मछलियों को एक साथ पाला जाता है।
किसान इस विधि से अधिक से अधिक मछली उत्पादन कर बहुत मोटा लाभ कमाते हैं। कुछ तरक्की पसंद किसान तो अब अधिक उत्पादन और मोटे लाभ के लिए अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने लगे हैं। जैसे वे अपने फार्मों पर इंटरनेट आधारित ऐसी डिवाइस तैनात करते हैं, जिससे लगातार पानी की गुणवत्ता का पता लगाया जा सके।
साथ ही यह भी देखा जा सके कि पानी में मछलियों के लिए कितना भोजन या ऑक्सीजन शेष है। इससे मछलियों की शारीरिक वृद्धि और निगरानी करने में खासी मदद मिलती है। इससे मछली उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाकर प्रति हेक्टेयर 7 से 10 टन तक करने में मदद मिल रही है।
कई किसान अब फसलों के साथ मछली उत्पादन कर रहे हैं। यही नहीं, बहुत से किसान तो डेरी, मुर्गी पालन, सुअर और बत्तख पालन जैसी कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियों के साथ-साथ मछली पालन कर रहे हैं। इससे उन्हें एक-दूसरे से निकलने वाले कचरे और खाद जैसे उप-उत्पादों को इस्तेमाल कर लागत कम करने में मदद मिल रही है, जिससे उनके लाभ में स्वत: वृद्धि हो जाती है।
इसके अलावा बहुत से किसान धान की फसल के साथ भी मछली पालन कर रहे हैं। मत्स्य पालन में ऐसे नवोन्मेषी प्रयोगों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि किसानों और मत्स्यपालकों की आमदनी में इजाफा किया जा सके।