एक वरिष्ठ बैंक अधिकारी ने पिछले दिनों मुझे वित्तीय उद्योग की बड़ी परेशानी का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि फीस से आय बढ़ाने के चक्कर में अपनी शाखाओं पर जमकर म्युचुअल फंड और बीमा पॉलिसियां बेचकर बैंकों ने बड़ी आफत मोल ले ली है। जब तक उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब तक मामला हाथ से निकल चुका था।
ज्यादातर बैंक ग्राहकों से रकम जमा कराने की जद्दोजहद में लगे हैं ताकि वे अधिक से अधिक कर्ज दे सकें। ऐसे में उन्हें पछतावा हो रहा है कि अपनी शाखाओं को उन्होंने दूसरे गैर-बैंकिंग वित्तीय उत्पाद बेचने के लक्ष्य क्यों दिए थे। आलम यह है कि फरवरी में नीतिगत दर में चौथाई फीसदी कटौती की गई है मगर बैंक अपनी जमा दरों में कमी नहीं कर सकते। आम तौर पर ऐसा कहां होता है? जमा पर ब्याज जैसी देनदारी जस की तस बनी हुई है या बढ़ रही है मगर कर्ज से होने वाली ब्याज आय घटना तय है क्योंकि ज्यादातर कर्ज की ब्याज दरें नीतिगत दर से जुड़ी रहती हैं।
ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब बैंक उन ग्राहकों को म्युचुअल फंड में निवेश के लिए मना रहे थे, जिनके जमा खाते में भारी रकम थी। लेकिन शेयर बाजार में भारी गिरावट के बाद कई फंड कंपनियां नकदी शेयरों में लगाने के बजाय अपने पास बचाकर रख रही हैं। इस पैसे का वे क्या करती हैं? इसे वे बैंकों में रखती हैं। फिर बैंकों को शिकायत किस बात की है? म्युचुअल फंडों के जरिये जो रकम बैंकों की तिजोरी में लौट रही है वह सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (सीडी) की शक्ल में आ रही है। सीडी पर सावधि जमा यानी फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के मुकाबले ज्यादा ब्याज देना पड़ता है। बैंक ज्यादा से ज्यादा 1 साल के सीडी जारी करते हैं। फरवरी के पहले हफ्ते में 5.19 लाख करोड़ रुपये के सीडी बकाया थे। बैंक अब जमा बढ़ाने की जुगत सीखने सलाहकार फर्मों के पास पहुंच रहे हैं। वे पूछ रहे हैं कि कम खर्च वाली चालू और बचत खाता (कासा) जमा, सावधि जमा और एनआरआई जमा कैसे बढ़ाई जाएं तथा पूंजी हासिल करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ रिश्ते मजबूत कैसे किए जाएं।
चालू खाते पर ब्याज नहीं मिलता और बचत खाते पर 2.6 फीसदी से 4 फीसदी ब्याज मिलता है। ज्यादातर सरकारी बैंक 1 लाख रुपये तक जमा राशि पर 2.6 से 2.75 फीसदी, 1 लाख रुपये से 50 लाख रुपये के बीच रकम पर 2.7 से 2.9 फीसदी तक और उससे अधिक जमा पर 2.7 से 4 फीसदी तक ब्याज देते हैं। आपकी शिकायत हो सकती है कि ये बैंक मिलीभगत कर बहुत कम ब्याज देते हैं। मगर बचत खाते के रखरखाव पर बैंकों को बहुत खर्च करना पड़ता है और ब्याज तो इस खर्च का मामूली हिस्सा है।
इसके बाद भी निजी क्षेत्र के कुछ बैंक बचत खाते पर काफी ज्यादा ब्याज दे रहे हैं। मसलन आईडीएफसी फर्स्ट बैंक 5 लाख से 100 करोड़ रुपये तक जमा पर 7.5 फीसदी ब्याज दे रहा है और आरबीएल बैंक 15 लाख से 3 करोड़ रुपये जमा पर इतना ही ब्याज दे रहा है। येस बैंक भी 10 लाख से 100 करोड़ रुपये तक जमा पर 7 फीसदी ब्याज दे रहा है। कम खर्च में रकम हासिल करने में कासा जमा बैंकों के बहुत काम आती है। इससे बैंक परिसंपत्ति की गुणवत्ता गिराए बगैर ब्याज से ज्यादा कमा लेते हैं। मान लीजिए, किसी बैंक के लिए रकम की कुल लागत 5 फीसदी है तो यह ग्राहक से 9 फीसदी ब्जाय वसूलकर 4 फीसदी शुद्ध ब्याज मार्जिन पा सकता है। मगर रकम की लागत 7 फीसदी हुई तो 4 फीसदी शुद्ध ब्याज मार्जिन के लिए उसे 11 फीसदी ब्याज पर कर्ज देना होगा, जिसे अच्छी क्रेडिट रेटिंग वाला कोई ग्राहक नहीं लेगा। तब बैंक की परिसंपत्ति बिगड़ेगी और ऊंची लागत के कारण ब्याज मार्जिन का भी फायदा नहीं होगा।
पिछले साल भर में कुछ ही बैंक अपना कासा अनुपात बरकरार रख पाए हैं। कुछ की कासा जमा बढ़ी है। दिसंबर 2023 से दिसंबर 2024 के बीच ऐक्सिस बैंक का कासा अनुपात 42 फीसदी से घटकर 39 फीसदी, बंधन बैंक का 36.1 से घटकर 32 फीसदी, एचडीएफसी बैंक का 37.7 से गिरकर 34 फीसदी और कोटक महिंद्रा बैंक का अनुपात 47.7 फीसदी से घटकर 42.3 फीसदी रह गया। इसी दौरान सरकारी बैंकों का कासा कम घटा-बढ़ा है। भारतीय स्टेट बैंक का कासा अनुपात 41.18 फीसदी से कम होकर 39.2 फीसदी और पंजाब नैशनल बैंक का 42.47 फीसदी से कम होकर 38.12 फीसदी रहा। ज्यादातर अन्य बैंकों में गिरावट 1 फीसदी के करीब रही।
इसी दरम्यान ज्यादातर बैंकों के सीडी बढ़ गए। बैंक ऑफ महाराष्ट्र के सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट 27,971 करोड़ रुपये से बढ़कर 35,260 करोड़ रुपये के हो गए। निजी बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक के सीडी 1.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 1.90 लाख करोड़ रुपये हो गए। आगे का रास्ता साफ है। चालू खाते कि लिए बैंकों को कारोबारी ग्राहक बढ़ाने होंगे, लेनदेन बढ़ाना होगा और नकदी प्रबंधन तथा व्यापार सेवाओं पर ध्यान देना होगा। मगर जमा खातों में रकम लाना ज्यादा मुश्किल है। कुछ बैंकों ने प्रीमियम बचत खातों पर व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, खुदरा ऋण पर कम ब्याज जैसे फायदे देने शुरू कर दिए हैं।
निजी बातचीत में कई बैंक अधिकारी मानते हैं कि उनका फौरी लक्ष्य वृद्धि नहीं बल्कि कासा जमा में कमी पर अंकुश लगाना है। उन्हें छात्रों, युवा पेशेवरों, महिलाओं, वेतनभोगियों, वरिष्ठ नागरिकों और पेंशनभोगियों के लिए अलग-अलग तरीके अपनाने होंगे। उन्हें कम ब्याज दरों के साथ मुफ्त स्वास्थ्य जांच, रेस्तरां में छूट के कूपन, आकर्षक हॉलिडे पैकेज जैसा कुछ भी करना होगा।
कर लाभ के मामले में बैंक म्युचुअल फंड या शेयर निवेश को सीधे टक्कर नहीं दे सकते। इसकी शिकायत भी वे सरकार से कई बार कर चुके हैं मगर शायद ही कोई सुनवाई हो। किफायती ब्याज के दम पर ही बचत खातों में जमा नहीं बढ़ सकती। अब बैंकों को नए तरीके अपनाने होंगे। साथ ही अगर उन्हें फीस के बजाय ब्याज से कमाई को तवज्जो देते हैं तो म्युचुअल फंड और बीमा बेचने से भी परहेज करना होगा।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)