यदि आप सेवानिवृत्त व्यक्ति हैं और आपने किसी बड़े ब्रांड के स्टॉकब्रोकर के साथ ब्रोकरेज खाता खोला है तो आपके साथ कुछ इस तरह की घटनाएं हो सकती हैं। आपको ब्रोकिंग फर्म के ‘रिलेशनशिप मैनेजर’ का फोन आ सकता है जो आपसे यह मौखिक वादा कर सकता है कि वह आपको हर महीने फोन पर दी गई सलाह से एक नियमित प्रतिफल हासिल करने में मदद करेगा। वह आपको बताएगा कि आपके द्वारा किए जाने वाले कारोबार के जोखिम का बचाव सुनिश्चित है और इसलिए उसमें जोखिम या तो न के बराबर है या शून्य है। आप ब्रोकर को 1.25 करोड़ रुपये का 57 शेयरों वाला अपना निवेश पोर्टफोलियो सौंप देते हैं। इनमें हिंदुस्तान यूनिलीवर, एशियन पेंट्स, पिडिलाइट और डाबर जैसी ब्लू चिप कंपनियां शामिल हैं।
ब्रोकर आपके लिए वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) खाता खोलता है और कुछ मुनाफा अर्जित करता है। उसके मुनाफा कमाने का एक ही तरीका हो सकता है और वह है बिकवाली के निर्णय करना और पूर्वनिर्धारित कीमत पर शेयर बेचना। जब बाजार में ज्यादा अस्थिरता नहीं हो तो यह तरीका सही साबित होता है। जब विकल्प में बिकवाली करते हैं और बाजार सीमित दायरे में रहता है तो विकल्प का मूल्य गिर जाता है और महीने के अंत में वह लगभग शून्य हो जाता है आपको आपका लाभ हासिल हो जाता है।
परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बाजार में तेज गिरावट आती है जिसके लिए कोई पहले से तैयार नहीं होता है। आपका मृदुभाषी रिलेशनशिप मैनेजर तो बिल्कुल नहीं। ऐसी गिरावट की स्थिति में आपने जो पूर्व निर्धारित बिकवाली की होती है और जिससे अब तक आपको निरंतर नियमित आय हो रही होती है, उसका मूल्य अचानक बढ़ जाता है और आपको भारी नुकसान होता है। अब तक मित्रवत नजर आ रहे मैनेजर के सुर अचानक बदल जाते हैं। वह आपसे कहता है कि आप भुगतान कीजिए अन्यथा आपके 1.25 करोड़ रुपये मूल्य के ब्लूचिप शेयर जो ब्रोकर के पास हैं, उनकी बिकवाली कर दी जाएगी। आप इसका विरोध करते हैं लेकिन व्यवस्था ब्रोकर के पक्ष में है। वह आपकी जिंदगी भर की बचत की बिकवाली कर देता है। यह एक सेवानिवृत्त व्यक्ति के साथ घटी वास्तविक घटना है।
एक और निवेशक की सच्ची कहानी से रूबरू होते हैं जो एक कारोबारी समूह से ताल्लुक रखते हैं जिसका कामकाज कई मुल्कों में फैला हुआ है। उन्होंने गत वर्ष अक्टूबर में एफऐंडओ में कारोबार शुरू किया और इस वर्ष फरवरी तक 65 लाख रुपये का लाभ कमाया। उनके ब्रोकर ने सलाह दी कि वे एसबीआई काड्र्स की आरंभिक निर्गम पेशकश में निवेश करें।
मार्च में आई भारी गिरावट में उन्हें एफऐंडओ में 10.43 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और उनका दावा है कि उन्हें उस समय 7.51 करोड़ रुपये का अतिरिक्त घाटा सहन करना पड़ा जब ब्रोकर ने बाजार घाटे की भरपाई करने की कोशिश में एसबीआई काड्र्स के शेयर बेच दिए।
उनका दावा है कि उन्हें पता नहीं था कि ब्रोकर ने एफऐंडओ में इतना निवेश किया है। वहीं ब्रोकर, जो कि शेयर कारोबार के बेहतरीन ब्रांड में से एक है का कहना है कि हर सौदा उक्त निवेशक की सहमति और जानकारी के बाद ही किया गया। उसका कहना है कि उसने अनुबंध के कागजात और एसएमएस भेजकर सौदों की पुष्टि की और विशुद्ध लेजर बैलेंस भी भेजा। ऐसे एफऐंडओ कारोबार में पैसा गंवाने वाले अनगिनत लोग हैं। हाल केे वर्षों में हजारों निवेशकोंं ने दिवालिया होने वाली दर्जनों स्टॉकब्रोकिंग फर्मों के जरिये अपना पैसा गंवाया। इनमें आम्रपाली आद्या ट्रेडिंग ऐंड इन्वेस्टमेंट, कसासा फिनवेस्ट, यूनिकॉर्न, वासंती सिक्युरिटीज, रॉयल इंटरनैशनल, क्लिक2ट्रेड, अलाइड फाइनैंशियल सर्विसेज, फिकस सिक्युरिटीज, फेयरवेल्थ और कार्वी ऐसे ही कुछ नाम हैं। बीएमए, मॉडेक्स और कार्वी जैसी कंपनियों के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भी अपने ग्राहकों की हजारों करोड़ रुपये की रकम इधर-उधर की।
याद रहे, 28 वर्ष पहले भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के गठन के बाद प्रतिभूति बाजार के अन्य तमाम पहलुओं की तरह स्टॉकब्रोकिंग का भी विनियमन होता रहा है। ब्रोकरों को परीक्षा पास करनी होती है और एक्सचेंजों द्वारा उनका नियमित अंकेक्षण और जांच की जाती है। इसके बावजूद स्टॉक ब्रोकरों के साथ सौदों में गड़बडिय़ां, गलत सलाह, गलत भरोसा, अक्षमता और धोखाधड़ी जैसी घटनाएं होती रहती हैं। आखिर गड़बड़ी कहां है?
दिक्कत दरअसल ब्रोकिंग के मॉडल और ब्रोकरों को मिलने वाली इजाजत में है। सेबी ने धीरे-धीरे कई खामियों को दूर किया है। मसलन पावर ऑफ अटार्नी का दुरुपयोग, ग्राहक के खाते से बिना उसकी जानकारी के खरीद-बिक्री और उसके पैसे तथा प्रतिभूतियों का दुरुपयोग। यह सब करने के लिए नए नियम बनाए गए, खुलासों की व्यवस्था की गई और अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा किया गया। इसी तरह ब्रोकर भी अब मार्जिन ट्रेडिंग में ग्राहकों की सहायता करते हैं। सेबी इस समस्या को हल करने की कोशिश कर रही है लेकिन एक जटिल प्रक्रिया के जरिये।
शीघ्रता से नए नियम बनाने से उन लोगों को चुप कराने मेंं मदद मिलती है जो यह सवाल पूछते रहते हैं कि सेबी क्या कर रहा है? परंतु यह दरअसल केवल एक टूटे हुए मॉडल में सुधार कार्य बस है। सेबी को बुनियादी बातों का ध्यान रखना होगा और स्टॉकब्रोकर की भूमिका और उसके कामकाज पर सवाल उठाना होगा। यह भी देखना होगा कि वे निवेशकों की किन जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि सेबी ने यही कहा कि निवेशकों को म्युचुअल फंड खरीदने के लिए ब्रोकरों की आवश्यकता नहीं है। ये फंड भी जोखिम वाली परिसंपत्ति है। मेरा कहना यह बिल्कुल नहीं है कि स्टॉक ब्रोकरों से हमेशा के लिए निजात पाई जाए बल्कि सेबी को स्टॉकब्रोकर की भूमिका को नए सिरे से तैयार करना होगा ताकि वे कोई नुकसान न पहुंचा सकें।
हमें यहीं बहस करनी है। सेबी की स्थापना होने तक स्टॉकब्रोकर इकलौते बाजार बिचौलिये थे और वे नाना प्रकार की गतिविधियों को अंजाम देते थे। इसके बाद विशिष्ट बिचौलियों को लाइसेंस दिए गए, मसलन पोर्टफोलियो प्रबंधक, डिपॉजिटरी, कस्टोडियन, निवेश सलाहकार और शोध विश्लेषक आदि सभी सेबी के नियमों के दायरे में हैं। ब्रोकरों को अब इनमें से कोई काम करने देने की जरूरत नहीं है। सलाहकार और शोध विश्लेषक शेयर संबंधी सलाह दे सकते हैं। बैंक, डिपॉजिटरी और कस्टोडियन लेनदेन वाली परिसंपत्ति संभाल सकते हैं और पोर्टफोलियो प्रबंधक निवेश का ध्यान रख सकते हैं। स्टॉकब्रोकर का काम केवल सौदे पूरे करने तक सीमित हो सकता है। निवेशकों को नुकसान इसलिए होता है क्योंकि ब्रोकर सलाहकार, कस्टोडियन और पोर्टफोलियो प्रबंधक के रूप में भूमिका बदलता रहता है। दिलचस्प है कि नए जमाने के जीरोधा जैसे नए जमाने के ब्रोकर केवल सौदेबाजी कराने जैसा सीमित काम करते हैं और उन पर कोई आरोप भी नहीं है। यदि सेबी बाजार को सुरक्षित बनाना चाहता है तो यही मानक होना चाहिए।
