दुनिया को दिखाने के लिए रक्षा बजट के तहत आने वाले कई खर्चों को इससे बाहर रखने का कोई तुक नहीं।
बता रहे हैं अजय शुक्ला
इस साल पेश किए गए बजट में रक्षा बजट के लिए आवंटित राशि को 96 हजार करोड़ रूपये से बढ़ाकर 1 लाख 5 हजार करोड़ रूपये कर दिया गया है।
बीते 29 फरवरी को पेश बजट में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने रक्षा बजट में 10 फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया। अगर हम
आधिकारिक आंकड़ों से हटकर बात करें तो देश का रक्षा बजट 2 साल पहले ही 1 लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका था। बहरहाल भारत को अपने रक्षा बजट की राशि को छुपाने की कोई जरूरत नहीं है।
रक्षा खर्चों के मामले में फिलहाल भारत पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शतर्ें भी लागू नहीं होतीं। साथ ही भारत का रक्षा बजट सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 फीसदी से कम है, जो राजनीतिक रूप से भी सही है।
इसके बावजूद भारत द्वारा इसे आवरण में रखे जाने की कोशिश जारी है, जबकि अन्य उदारवादी लोकतांत्रिक देश अपने रक्षा खर्चों को दिखाने में पूरी पारदर्शिता का पालन करते हैं।
यह सवाल यह पैदा होता है कि क्या रक्षा बजटों का जायजा लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय कसौटी है? दरअसल संयुक्त राष्ट्र आमसभा के एक प्रस्ताव (12 दिसंबर 1980 को पारित 35142बी प्रस्ताव) में सैन्य खर्चों के मानकीकरण और इसकी जानकारी देने की बात कही गई है।
इस प्रस्ताव को लगभग पूरी दुनिया में मान्यता मिल चुकी है। 1981 से अब तक तकरीबन 115 देश इस सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं।
हालांकि यह प्रस्ताव वही बात करता है, जिसे पारदर्शी सरकारें, रक्षा मामलों से जुड़े अर्थशास्त्री व विश्लेषक और सामान्य बुध्दि वाला आदमी भी बखूबी समझ सकता है।
प्रस्ताव के मुताबिक, सामरिक परमाणु हथियारों पर होने वाले व्यय को रक्षा खर्च में शामिल करने की बात है। इसी तरह देश की सीमा की रक्षा करने वाले और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल अर्ध्दसैनिक बलों पर होने वाले खर्चों को इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। साथ ही सैनिकों के वेतन-भत्ते समेत अन्य खर्च (पेंशन भी शामिल) भी इसी सूची में आएंगे।
प्रस्ताव कहता है कि अगर रक्षा सुविधाओं के मामले में पैसा खर्च होता है, तो इसे भी रक्षा बजट का हिस्सा माना जाना चाहिए। इसके अलावा कमांड और सेना से जुड़ी संचार व्यवस्था की वित्तपोषण भी रक्षा बजट से होगा।
बहरहाल भारत अपने रक्षा खर्चों
का बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र में काम करे लोगों पर खर्च करता है। जहां तक परमाणु हथियारों पर होने वाले खर्च की बात है, रक्षा बजट के जरिए सिर्फ वैसी मिसाइलों के लिए भुगतान किया जाता है, जो अपने लक्ष्य तक परमाणु सामग्री ढोने में सक्षम हो। इस बात को तय करना असंभव है कि परमाणु ऊर्जा विभाग को आवंटित 3,908 करोड़ रूपये में कितनी राशि का इस्तेमाल परमाणु बिजली उत्पादन के मद में किया गया और बम बनाने में कितना।
हालांकि अगर इस राशि का एक तिहाई हिस्सा भी परमाणु हथियारों से जुड़े कार्यक्रमों पर किया जाता है, तो रक्षा बजट की राशि में 1300 करोड़ और जुड़ जाएंगे।
अर्ध्दसैनिक बलों की विशाल फौज पर होने वाला खर्च गृह मंत्रालय के बजट के दायरे में आता है, जबकि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) जैसे संगठनों का इस्तेमाल सीमाओं की सुरक्षा में किया जाता है।
असम राइफल्स पर होने वाला खर्च भी गृह मंत्रालय ही वहन करता है। गौरतलब है कि इसका संचालन सेना ही करती है और कमान भी किसी सेना के प्रतिनियुक्त अफसर के हाथ में होती है। यही बात राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) और ब्लैट कैट कमांडो पर भी लागू होती है, जिनका इस्तेमाल हाईजैकिंग और आतंकवाद के खिलाफ अभियान में किया जाता है।
इन बलों पर होने वाला सालाना खर्च तकरीबन 7,632 करोड़ रूपये है। हालांकि इसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के लिए आवंटित 4,219 करोड़ रूपये शामिल नहीं हैं। सीआरपीएफ के एक चौथाई जवान पूर्वोत्तर में उग्रवाद के खिलाफ अभियान में शामिल हैं।
गृह मंत्रालय न सिर्फ इन सारे खर्चों को उठाता है, बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमाओं पर बाड़ लगाने के लिए भी इस साल मंत्रालय को 608 करोड़ रूपये मंजूर किए गए हैं।
गृह मंत्री शिवराज पाटिल अपने अर्ध्दसैनिक बलों के जवानों के लिए आवास के तहत 555 रूपये खर्च करते हैं, जबकि उनके साथी मंत्री पी. चिदंबरम संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को नजरअंदाज करते हुए उन्हें पाकिस्तान, चीन और म्यांमार की सीमाओं पर उच्च तकनीकी निगरानी के लिए 404 करोड़ रूपये मुहैया कराते हैं।
इसके अलावा अशांत दूर-दराज इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भी गृह मंत्रालय को 100 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं। जाहिर इस फंड का इस्तेमाल सुरक्षा संबंधी निमार्ण कार्यों होगा।
हालांकि रक्षा बजट में सबसे खटकने वाली बात जो है, वह रक्षा बजट में पेंशन (डिमांड नंबर 20) के लिए आवंटित 15,564 करोड़ रूपये और संबंधित मंत्रालय (डिमांड नंबर 19) के लिए आवंटित 2,370 करोड़ रूपये की गैरमौजूदगी है।
रक्षा मंत्रालय को आवंटित फंड का इस्तेमाल सेना के रेजिमेंट जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री, कोस्ट गार्ड और मंत्रालय सचिवालय के खर्चों के लिए किया जाता है। इस आवंटन को रक्षा बजट के दायरे से बाहर रखने का कोई तुक नहीं बनता।
साथ ही चीन जैसे देशों में रिटायर्ड सैनिकों का वेतन भी सैन्य बजट में शुमार किया जाता है।
इन छुपे हुए खर्चों के मद्देनजर भारत का कुल रक्षा बजट 1 लाख 05 हजार करोड़ के बजाय 1 लाख 34 हजार 133 करोड़ रूपये बैठता है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है।
जहां इस लेख का मकसद रक्षा आंकड़ों का दुरुस्त करना है, वहीं भारत एक ऐसा मुल्क है, जहां विशेषज्ञ, आला अधिकारी और राजनेता रक्षा बजट पर बहस को हमेशा नजरअंदाज करते आए हैं। रक्षा योजनाओं के बारे में ऐसे रवैये से जाहिर है कि 1 लाख 34 हजार 133 करोड़ रूपये का रक्षा बजट भी संसद बिना बहस के पास कर देती।
डेटा
घोषित रक्षा बजट 1,05,000 करोड़
परमाणु कार्यक्रम 1,300 करोड़
अर्ध्दसैनिक बल 7,632 करोड़
इससे संबंधित आवास 555 करोड़
सीमा घेराबंदी 608 करोड़
सीमा आधारभूत ढांचा 504 करोड़
पेंशन 15,564 करोड़
रक्षा मंत्रालय 2,370 करोड़
वास्तविक रक्षा बजट 1,34,133 करोड़