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शहरों में EWS फ्लैट निर्माण खुद के घर बनाने से अधिक चुनौतीपूर्ण

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) ने 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में चुनौती से निपटने का रास्ता दिखाया है। बता रही हैं

Last Updated- July 03, 2025 | 11:33 PM IST
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शहरी क्षेत्र के गरीबों और कम आय वाले परिवारों के लिए पर्याप्त रूप से औपचारिक आवास का विकास भारत की आवास नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है । खासतौर पर देश के 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में चुनाैती ज्यादा है। भारत की शहरी आवास नीति, उन परिवारों को आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग समूह (ईडब्ल्यूएस) में रखती है जिनकी वार्षिक आमदनी तीन लाख रुपये या उससे कम है। केंद्र और राज्य सरकारों की अधिकांश आवास योजनाएं इसी समूह को लक्षित करती हैं।

यह ध्यान बिल्कुल सही है। अनुभवजन्य अध्ययनों से पता चलता है कि अपर्याप्त घरों वाले परिवारों में ईडब्ल्यूएस परिवारों की हिस्सेदारी बढ़ती रही है और 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए शहरी आवास की कमी का अनुमान लगाने के लिए गठित तकनीकी समूह के अनुसार इनकी हिस्सेदारी वर्ष 2012 में 96 फीसदी थी जो 2018 में इसी तरीके का इस्तेमाल कर किए गए एक दूसरे अध्ययन के अनुसार 99 फीसदी हो गई।

एक स्वतंत्र अध्ययन से पता चलता है कि लंबे समय से चल रही प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना (पीएमएवाई-यू) ने 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में इस चुनौती का समाधान करने का रास्ता दिखाया है। पीएमएवाई-यू के तहत मकान निर्माण के लिए दी गई सब्सिडी से इन शहरों में 60 लाख से अधिक ईडब्ल्यूएस परिवारों ने अपनी जमीन पर घर बना लिए हैं या बना रहे हैं। लेकिन 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर में खुद के बनाए घर वास्तव में नीतिगत समाधान के रूप में कारगर नहीं होते हैं क्योंकि जमीन महंगी है और परिवारों के पास अपनी जमीन होना दुर्लभ है। ऐसे में लोगों को फ्लैट की ओर रुख करना पड़ता है। लेकिन फ्लैट का विकास करना घरों के निर्माण की तुलना में कहीं अधिक जटिल है।

इसका समाधान करने के लिए राज्य अपनी ‘किफायती आवास’ नीतियों के तहत सार्वजनिक और निजी डेवलपर, दोनों को फ्लैट बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं।

फ्लोर क्षेत्र अनुपात, उच्च ग्राउंड कवरेज, घनत्व से जुड़े नियमों में नरमी और हस्तांतरणीय विकास अधिकार जैसे प्रोत्साहन डेवलपर को न केवल अधिक ईडब्ल्यूएस फ्लैट बनाने की अनुमति देते हैं बल्कि सामान्य रूप से किसी दी गई जमीन पर जितने दफ्तर, मॉल और अधिक आमदनी वाले आवास की अनुमति होती है, उससे अधिक बनाने की भी छूट दे देते हैं। इसके पीछे विचार यह है कि बाद वाले से होने वाले लाभ, ईडब्ल्यूएस फ्लैट की सब्सिडी की भरपाई करेंगे। झुग्गियों की पुनर्विकास योजनाएं भी इसी तरह काम करती हैं।

अतिरिक्त प्रोत्साहनों में डेवलपर के लिए आयकर और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में छूट, प्राथमिकता वाले ऋण क्षेत्र के तहत किफायती आवास के लिए निर्माण और गृह ऋण उपलब्ध कराना शामिल है। इनके अलावा, ईडब्ल्यूएस फ्लैट के विकास के लिए प्रत्यक्ष नकद सब्सिडी भी मददगार साबित होती है। फिर भी, इन फ्लैटों को बनाना वास्तव में मुश्किल है। अधिक सब्सिडी के बावजूद, पीएमएवाई-यू के तहत स्वीकृत ईडब्ल्यूएस फ्लैटों की संख्या ईडब्ल्यूएस परिवारों के लिए स्वीकृत स्वतंत्र घरों की संख्या के एक-चौथाई से भी कम है। ऐसा क्यों है?

इसकी कुछ अहम वजहें हैं, पहली, ईडब्ल्यूएस फ्लैट के लिए यह जरूरी सब्सिडी या तो सरकारी फंड से आनी चाहिए या क्रॉस-सब्सिडी (एक परियोजना के मुनाफे से दूसरे की सब्सिडी सहायता) के माध्यम से। करीब 400 वर्गफुट के फ्लैट को बनाने में लगभग 3,000 रुपये प्रति वर्ग फुट की लागत से कम से कम 12 लाख रुपये का खर्च आता है जिसमें जमीन की कीमत शामिल नहीं है। इसमें से परिवार आमतौर पर लगभग 3 लाख रुपये देते हैं, जिससे 9 लाख रुपये की सब्सिडी की जरूरत रह जाती है। अगर जमीन की लागत भी जोड़ ली जाए तब सब्सिडी की जरूरत और बढ़ जाती है।

यह सब्सिडी, सरकार या ‘किफायती आवास’ नीतियों और झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास योजनाओं से पूरी की जाती है। लेकिन इतनी बड़ी सब्सिडी की जरूरत बड़ी मुश्किल से पूरी होती है और इसी वजह से ईडब्ल्यूएस फ्लैट बड़े पैमाने पर नहीं बन पाते हैं। इसके कारण निजी डेवलपर भी ईडब्ल्यूएस परियोजनाओं से जुड़ने से बचते हैं। वहीं दूसरी ओर सरकारी डेवलपर के पास भी सीमित साधन हैं और सरकार के पास भी फंड की कमी है। नतीजतन, बहुत कम ईडब्ल्यूएस फ्लैट परियोजनाओं को स्वीकृति मिलती है और उसकी शुरुआत होती है।

दूसरा, भारत में देरी होना आम बात है और इससे सब्सिडी की जरूरत और बढ़ जाती है। नतीजा यह होता है कि कई बार परियोजनाएं रद्द हो जाती हैं। इसमें कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि पीएमएवाई-यू के तहत स्वीकृत लगभग आधे ईडब्ल्यूएस फ्लैट रद्द कर दिए गए। जमीन से जुड़े विवाद और मुकदमे, जमीन और निर्माण से जुड़ी मंजूरियों में लगने वाला समय और सही जगहों पर सस्ती जमीन मिलने की स्थायी चुनौती भी इस तरह की देरी के सामान्य कारण हैं।

तीसरा, आवास की कमी का मतलब यह नहीं है कि ईडब्ल्यूएस परिवारों के बीच फ्लैट की मांग बढ़ेगी। पीएमएवाई-यू फ्लैट परियोजनाओं के रद्द होने का एक कारण लाभार्थी परिवारों में इसके लिए दिलचस्पी की कमी बताई गई थी। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि ईडब्ल्यूएस परिवार जो खराब गुणवत्ता वाली लेकिन अच्छी जगह पर बनी झुग्गियों या अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं, वे भी शहर के बाहरी इलाकों में बने फ्लैटों में जाने से हिचकिचाते हैं। इसकी वजह यह है कि इससे उनका यात्रा समय और खर्च बढ़ जाता है। एक मंजिला घरों में रहने के आदी होने के कारण भी कई लोग, ऊंची इमारतों में रहने से भी कतराते हैं।

इन चुनौतियों के बावजूद, बड़े शहरों में ईडब्ल्यूएस आवास के लिए क्या किया जा सकता है? पहली बात तो यह है कि ईडब्ल्यूएस आवास को सभी केंद्र और राज्य नीतियों में ‘किफायती आवास’ से अलग माना जाना चाहिए न कि केवल सब्सिडी-आधारित कार्यक्रमों में।  ईडब्ल्यूएस आवास को जो अहमियत मिलनी चाहिए वह ‘किफायती आवास’ के दायरे में पीछे छूट जाता है जिसमें 50 लाख रुपये या उससे अधिक कीमत के आवास शामिल हैं। राज्य सरकार की आवास नीतियों के माध्यम से विभिन्न विकासात्मक प्रोत्साहनों के साथ-साथ सीधी सब्सिडी के माध्यम से ईडब्ल्यूएस फ्लैट को लक्षित करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

दूसरा, यह पता लगाया जाए कि क्या फ्लैट के बजाय छोटे, विकसित जमीन के हिस्से परिवारों के लिए और सब्सिडी की जरूरत के लिहाज से भी देना संभव है या नहीं। विश्व बैंक की 1980 के दशक की जगह और सेवाओं से जुड़ी योजना की तर्ज पर, इस दृष्टिकोण की व्यावहारिकता को सभी बड़े शहरों में ईडब्ल्यूएस आवास के लिए जांचा जाना चाहिए।

तीसरा, किराये वाले घरों को बढ़ावा दिया जाए। बड़े शहरों में कई ईडब्ल्यूएस परिवार रोजी-रोटी की तलाश में होते हैं न कि स्थायी पते की। उनकी आवास से जुड़ी जरूरतों को निजी मकान मालिकों द्वारा अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है। लेकिन किराये के मकान में असुरक्षा की भावना आम बात है। ऐसे में राज्य क्या कर सकते हैं? मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 की तर्ज पर राज्य के मौजूदा किराया कानूनों की समीक्षा करना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। भारत की अर्थव्यवस्था का विकास, इसके दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों से होता है। यह सही समय है कि उनकी आवास नीति ठीक की जाए और इसके लिए, ईडब्ल्यूएस आवास से जुड़े सभी हितधारकों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

(लेखिका अर्थशास्त्री हैं। लेख में  उनके निजी विचार हैं)

First Published - July 3, 2025 | 11:15 PM IST

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