गौतम अदाणी के सामने मुश्किल हालात हैं। अदाणी समूह की कंपनियों की गड़बड़ी के बारे में जारी की गई हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर समूह ने जो खंडन जारी किया है आप उसे संतोषजनक पाएं या नहीं (यह रिपोर्ट में केवल कुछ बिंदुओं को शामिल करता है) लेकिन उसके शेयरों में तेज गिरावट देखने को मिली है। अदाणी समूह के शेयर शुक्रवार को बुरी तरह पछाड़ खा
गए। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समूह के सबसे प्रमुख उपक्रम अदाणी एंटरप्राइजेज के शेयर अपने सार्वजनिक निर्गम के आधार मूल्य से भी नीचे चले गए।
यह निर्गम मंगलवार तक सबस्क्रिप्शन के लिए उपलब्ध है। संभव है अदाणी समूह को इस मसले को हल करने के लिए चाही गई कीमत को कम करना पड़े लेकिन अगर अगले सप्ताह भी शेयर कीमतों में गिरावट जारी रही तो शायद इससे भी बात न बने। यह बात जहां दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शामिल अदाणी के लिए शर्मिंदगी का सबब बन सकती है, वहीं इसका न केवल उन पर बल्कि व्यापक शेयर बाजार पर भी नकारात्मक असर हो सकता है।
किसी विवादित कारोबारी के तेजी से कारोबारी जगत पर छाने के बाद उस पर मंदड़ियों के हमले की घटना सन 1980 के दशक के आरंभ में हुई थी। उस समय दलालों के एक समूह ने रिलायंस के शेयर को अधिमूल्यित मानते हुए उसके खिलाफ मोर्चा खोला था। कंपनी के प्रवर्तक धीरूभाई अंबानी थे जो स्वयं बाजार में दखल रखते थे। उन्होंने जल्दी ही ‘फ्रेंड्स ऑफ रिलायंस’ को एकजुट किया जिनमें ज्यादातर विदेशी कारोबारी थे। इनकी मदद से जल्दी ही पलटवार किया गया जिसका मंदड़ियों पर काफी असर पड़ा।
अब रिलायंस की कीमतें चढ़ रही थीं और मंदड़ियों को अपने सौदों का बचाव करना पड़ रहा था। उसके बाद शेयर बाजार के किसी कारोबारी ने रिलायंस को निशाने पर लेने की हिम्मत नहीं की। इस बार अंतर यह है कि अदाणी समूह के शेयर बीते कुछ वर्षों की असाधारण तेजी के बाद कुछ महीनों से पहले ही गिरावट पर थे। समूह की कंपनियों ने वर्ष 2022 में अलग-अलग समय पर अपना उच्चतम स्तर छुआ।
उसके बाद से उनमें 35 से 45 फीसदी तक की गिरावट आई है। शुक्रवार का नुकसान उन सबसे बढ़कर है। सीमित सार्वजनिक धारिता वाली कंपनियों की बात करें तो कम कारोबार के बावजूद उनकी कीमतों में बड़ा उलटफेर हो सकता है। यह जोखिम तो है ही लेकिन यह धीरूभाई की तरह अदाणी के बचाव के प्रयासों की ओर भी संकेत हो सकता है। एक दिक्कत यह है कि समूह की कंपनियों में कोई उल्लेखनीय बात नहीं है।
उदाहरण के लिए अदाणी एंटरप्राइजेज का राजस्व करीब तीन वर्ष की स्थिरता के बाद 2021-22 में 75 फीसदी बढ़ा लेकिन इसके बावजूद उसी वर्ष कंपनी का शुद्ध लाभ कम हुआ और कुल बिक्री के 1.5 फीसदी से भी कम रहा। सात में से छह कंपनियों को देखें तो मार्च 2022 तक उनके कर पूर्व लाभ में कमी देखने को मिली। केवल अदाणी पावर अपवाद रही जिसके राजस्व में तो मामूली वृद्धि हुई लेकिन उसका मुनाफा करीब तीन गुना बढ़ गया।
तकरीबन 300 से 600 गुना आय वाली कंपनियों से किसी को भी ऐसे वित्तीय आंकड़ों की आशा नहीं होगी। इतनी अधिक आय अक्सर छोटे आकार के स्टार्टअप में देखने को मिलती है, न कि गहन पूंजी के इस्तेमाल वाली अधोसंरचना कंपनियों में। इकलौता वास्तविक मूल्यांकन अदाणी पावर और अदाणी पोर्ट्स का है। इनका कीमत आय अनुपात क्रमश: 12 है और 27 है। इससे पहले अनिल अंबानी की रिलायंस पावर के रूप में एक और अधोसंरचना कंपनी ने 2008 में सार्वजनिक निर्गम में इसी स्तर का मूल्यांकन हासिल किया था और उसके बाद क्या हुआ इससे हम सब वाकिफ हैं।
खबरों के मुताबिक इतना बढ़ाचढ़ाकर किया गया मूल्यांकन तथा समूह का कमजोर प्रदर्शन इसलिए नजरों से बचा रहा क्योंकि कुछ ही ब्रोकिंग हाउस अदाणी के अधिकांश शेयरों पर शोध करते हैं। हालांकि समूह की कुछ कंपनियां प्रमुख शेयर बाजार सूचकांकों का हिस्सा हैं। यह संभव है कि हरित ऊर्जा से लेकर रक्षा उपकरण और सेमीकंडक्टर तक तमाम बड़ी और नई परियोजनाओं की घोषणा और बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सीमेंट कंपनी और अब एक क्रिकेट फ्रैंचाइजी को हासिल करने जैसी घटनाओं ने समूह के लिए एक नया और मुश्किल लक्ष्य तय कर दिया हो।
यह भी संभव है कि शेयरों पर शोध करने वाले राजनीतिक संपर्कों वाले समूह की गहराई से पड़ताल करने से बचते रहे हों। सवाल यह है कि इस बीच शेयर बाजार नियामक और जांच एजेंसियां क्या कर रही थीं? बीते दो वर्षों में समय-समय पर उन मुद्दों से जुड़ी खबरें सामने आती रही हैं जिन्हें हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उठाया गया है। कहा गया कि इन्हें लेकर कई जांच भी शुरू की गईं लेकिन उनका भी कोई नतीजा नहीं निकला।