कोविड-19 महामारी का प्रसार रोकने के लिए 2020 में लगी पाबंदी (लॉकडाउन) के बाद भारतीय श्रम बल में शिक्षा स्तर के आधार पर काफी बदलाव आया है। कम पढ़े-लिखे लोगों के समूह को रोजगार का अधिक नुकसान हुआ है। अधिक पढ़े-लिखे लोगों की भी नौकरियां गईं। स्नातक एवं स्नातकोत्तर उत्तीर्ण लोग अब भी रोजगार छिनने की त्रासदी से उबर नहीं पाए हैं। दूसरी तरफ उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त लोगों को अधिक रोजगार मिले हैं। कम और अधिक पढ़े-लिखे दोनों तरह के लोगों को नुकसान हुआ है मगर इन दोनों श्रेणियों के बीच आने वाले लोगों को लाभ हुआ है।
कोविड महामारी आने तक स्नातक एवं स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त लोगों की नौकरियां बनी रहीं। ऐसे लोगों की संख्या 2016-17 में 5.15 करोड़ थी जो 2017-18 में बढ़कर 5.29 करोड़ हो गई। वर्ष 2018-19 में यह संख्या और बढ़कर 5.43 करोड़ हो गई। 2019-20 में इनकी संख्या कम जरूर हुई थी मगर वर्ष के अंत में ऐसे लोगों की संख्या 5.4 करोड़ हो गई। श्रम बल में स्नातकोत्तर तक पढ़े लोगों की संख्या 2016-17 में 12.5 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 13.4 प्रतिशत हो गई। वर्ष 2019-20 में यह कम होकर 13.2 प्रतिशत रह गई।
मार्च 2020 में समाप्त हुई तिमाही में स्नातकोत्तर पास लोगों की नौकरियां बढ़कर 5.56 करोड़ हो गई। कोविड महामारी के दस्तक देने से ठीक पहले का यह आंकड़ा था। लॉकडाउन के तत्काल प्रभाव के रूप में 1 करोड़ से अधिक स्नातक एवं स्नातकोत्तर पास लोगों की नौकरियां चली गईं। इनकी नौकरियों की संख्या जून 2020 में समाप्त तिमाही में 4.49 करोड़ हो गई। मगर शुरू में स्नातकोत्तर पास लोगों की नौकरियों पर असर नहीं हुआ इसलिए कुल रोजगार में उनकी हिस्सेदारी थोड़ी अधिक बढ़कर 13.7 प्रतिशत हो गई। मगर यह बढ़त अस्थायी ही थी। लॉकडाउन का पूर्ण और दीर्घ असर सितंबर 2020 में समाप्त हुई तिमाही में नजर आया। स्नातकोत्तर पास लोगों के रोजगार कम होकर 4.37 करोड़ रह गए और कुल श्रमबल में इनकी हिस्सेदारी इस तिमाही के दौरान कम होकर 11.1 प्रतिशत रह गई। यह वास्तव में भारत में श्रमबल का हिस्सा रहे लोगों की शिक्षा की गुणवत्ता में बड़ी गिरावट थी। हालांकि इसमें धीरे-धीरे सुधार हो रहा है मगर यह पर्याप्त नहीं है। दिसंबर 2021 की तिमाही तक 12.2 प्रतिशत स्तर पर भारत के कार्यबल में स्नातकोत्तर पास लोगों की हिस्सेदारी अप्रैल 2020 से पूर्व के 13.7 प्रतिशत से काफी खराब थी। फरवरी 2022 तक भारतीय श्रम बल में 5.03 करोड़ स्नातक और स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त लोग थे। यह फरवरी 2020 के 5.73 करोड़ स्नातकोत्तर पास लोगों की संख्या में 70 लाख कम है। दूसरी तरफ श्रमबल में ऐसे लोग हैं जिनकी शिक्षा उच्चतर माध्यमिक से भी कम है। उन्होंने दसवीं की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं की थी। मार्च 2020 में समाप्त हुई तिमाही में श्रम बल में उनकी हिस्सेदारी 54.5 प्रतिशत थी।
दिसंबर 2021 की तिमाही तक उनकी हिस्सेदारी कम होकर 49 प्रतिशत रह गई। सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों के इस समूह के लिए जोखिम भी अधिक हैं। जून 2020 तिमाही में इन लोगों की नौकरियों में 30 प्रतिशत की तेज गिरावट आ गई। इसके बाद जब अगली तिमाही में लॉकडाउन लगभग पूरी तरह हटा लिया गया तो इस समूह में रोजगार में 31 प्रतिशत तेजी आई। इस समूह में रोजगार अनौपचारिक होता है इस वजह से इनती तेजी आई। मगर चुनौतियां अब भी कायम हैं। सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों के इस समूह में रोजगार में लगातार गिरावट आई है। फरवरी 2022 में जिन लोगों ने अपनी दसवीं परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी उनमें रोजगार की संख्या 19.28 करोड़ थी। फरवरी 2020 की तुलना में यह 11.6 प्रतिशत कम थी। यह गिरावट इसी अवधि के दौरान आई 2.2 की कुल गिरावट की तुलना में कहीं अधिक है। रोजगार में लगातार आई कमी के दौर में फायदा उन लोगों को हुआ जिन्होंने 10वीं या 12वीं की परीक्षा पास की थी। इस समूह में रोजगार और कुल रोजगार में उनकी हिस्सेदारी महामारी से पहले भी लगातार बढ़ रही थी। वर्ष 2016-17 में उनकी हिस्सेदारी कुल रोजगार में 27.9 प्रतिशत थी। 2017-18 में यह बढ़कर 29.7 प्रतिशत हो गई। 2018-19 में यह 30.5 प्रतिशत और 2019-20 में यह 31.3 प्रतिशत हो गई। वर्ष 2020-21 में उच्च माध्यमिक उत्तीर्ण लोगों की संख्या 38 प्रतिशत हो गई। यह बढ़ोतरी अचानक एवं तेज थी। मार्च 2020 में समाप्त हुई तिमाही में कुल रोजगार में उनकी हिस्सेदारी 31.8 प्रतिशत थी। अप्रैल-जून 2020 के दौरान यह हिस्सेदारी 39 प्रतिशत हो गई। तब से यह हिस्सेदारी 37 से 39 प्रतिशत के बीच रही है। पाबंदी जब चरम पर थी तो उच्च विद्यालय उत्तीर्ण लोगों में रोजगार बरकरार रहने की दर अधिक रही। अप्रैल 2020 में सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों (जिन्होंने दसवीं कक्षा की परीक्षा भी पास नहीं की थी) के समूह में रोजगार दर 38 प्रतिशत कम हो गई और स्नातकोत्तर पास लोगों के मामले में यह 20 प्रतिशत तक फिसल गई। उच्च विद्यालय (हाई स्कूल) पास लोगों के मामले में यह गिरावट 17 प्रतिशत के साथ थोड़ी कम रही। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि हाई स्कूल तक शिक्षा रखने वाले लोगों ने रोजगार के मामले में अधिक तेजी से वापसी की।
जून 2020 में समाप्त हुई तिमाही में सबसे कम पढ़े-लिखे लोगों के बीच रोजगार 30 प्रतिशत कम हो गया और स्नातकोत्तर तक शिक्षा रखने वाले लोगों में यह 19 प्रतिशत कम हो गया। मगर हाई स्कूल पास लोगों में रोजगार में केवल 1 प्रतिशत गिरावट आई। फरवरी 2022 में हाई स्कूल पास लोगों में रोजगार फरवरी 2020 की तुलना में रोजगार 18 प्रतिशत अधिक था। दूसरी तरफ सबसे कम पढ़-लिखे और स्नातकोत्तर पास लोगों में फरवरी 2020 के स्तर की तुलना में रोजगार का स्तर 12 प्रतिशत कम था। स्नातक पास लागों में बेरोजगारी दर सबसे अधिक यानी 19 प्रतिशत से अधिक रही है। अगर इस तथ्य को ऊपर के विश्लेषण के संदर्भ में देखें तो हाई स्कूल से अधिक शिक्षा के बाद नौकरी मिलने की संभावना कम हो जाती है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
