वस्तु एवं सेवा कर (GST) जिसने केंद्र और राज्यों के 14 अप्रत्यक्ष करों का स्थान लिया था, वह यकीनन एक ऐतिहासिक सुधार था। इससे राजस्व में भी सतत वृद्धि देखने को मिली थी और अप्रैल 2024 में इससे 2.1 लाख करोड़ रुपये की राशि मिली। यह राशि पिछले साल से 15.5 फीसदी अधिक थी।
इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 5.57 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 5.05 लाख करोड़ रुपये से अधिक थी। यह वृद्धि 10.2 फीसदी थी जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की अनुमानित नॉमिनल वृद्धि से अधिक है। ऐसा न केवल अर्थव्यवस्था के बेहतर प्रदर्शन की वजह से है बल्कि कर प्रशासन में सुधार के बाद अनुपालन में भी बेहतरी आई, खासतौर पर तकनीकी प्लेटफॉर्म में मजबूती आने से ऐसा हुआ। मध्यम अवधि में निरंतर उच्च वृद्धि के अनुमान तथा बेहतर प्रशासन एवं कर प्रवर्तन के साथ जीएसटी संग्रह के बेहतर बने रहने की उम्मीद है।
लाभ के बावजूद कर ढांचा अभी भी वांछित स्तर से नीचे है और उल्लेखनीय अतिरिक्त सुधार उपायों की आवश्यकता है ताकि विसंगति को कम किया जा सके, अनुपालन लागत घटाई जा सके और अधिक से अधिक कर जुटाया जा सके। अभी इसे सरल, किफायती और अंतरराष्ट्रीय व्यवहार के अनुरूप बनाने के लिए काफी कुछ किया जाना है और सुधारों के अगले चरण में ऐसा ही होना चाहिए।
आधार को बढ़ाने के लिए कर मामलों में दूसरे चरण के सुधार आवश्यक हैं। दर ढांचे को सरल करना और राजस्व में इजाफा करना इसका लक्ष्य होना चाहिए। 2047 तक विकसित देश बनने का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है जबकि हमारे यहां कर ढांचा प्रतिस्पर्धी हो तथा विसंगतियां और अनुपालन लागत कम हो। अब तक जीएसटी परिषद मामूली रद्दोबदल करने में लगी थी जबकि अब वक्त आ गया है कि कर ढांचे और प्रशासन में बुनियादी सुधार किए जाएं। बुनियादी कर सुधार तब सफल होते हैं जब उन्हें तेज आर्थिक सुधारों के दौर में अंजाम दिया जाता है ताकि सुधार राजस्व पर बुरा असर न डालें।
यह सही है कि जीएसटी के ढांचे और परिचालन ब्योरों में ऐसा सिद्धांत नहीं हो सकता है जो सब पर सटीक बैठे लेकिन कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना होगा। यह भी सब जानते हैं कि एक बार सुधार को स्वीकार्य बनाने के लिए गलत तत्त्वों को शामिल कर लिया जाए तो उन्हें हटाना बहुत मुश्किल होता है। न्यूनतम रियायत वाली एक व्यापक कर व्यवस्था न केवल राजस्व के कारण अहम है बल्कि एक व्यापक मूल्यवर्धित कर श्रृंखला के लिए भी वह आवश्यक है।
जल्दी खराब होने वाले और प्रसंस्करण रहित खाद्य पदार्थों के लिए रियायतों को खत्म नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसमें प्रशासनिक दिक्कतें हैं लेकिन अन्य सभी वस्तुओं को कर दायरे में शामिल करना जरूरी है। वर्गीकरण की कमियों, इनवर्टेड शुल्क ढांचे और इनसे उत्पन्न होने वाले वादों से बचने के लिए कम विभाजित दरें रखना जरूरी है।
इसके अलावा अधिकांश मूल्यवर्धित कर प्रशासनों को सक्षम तकनीकी समूह का समर्थन हासिल होता है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं और जो निरंतर ज्ञान का नवीनीकरण और शोध करते रहते हैं। इनमें प्रशासन, कराधान, अंकेक्षण, अर्थशास्त्र, कानून और भारी आंकड़ों का विश्लेषण आदि शामिल हैं।
उपरोक्त नजरिये से भारत में जीएसटी सुधारों की तत्काल आवश्यकता है। इस कर में स्थिरता आने के बाद अब अवसर है कि इस कर आधार को बढ़ाया जाए। भारत के जीएसटी में एक कमी है पेट्रोलियम उत्पादों, बिजली और अचल संपत्ति को इससे बाहर रखना। पेट्रोलियम उत्पादों को राजस्व के कारण इससे बाहर रखा गया है क्योंकि इन उत्पादों पर लगने वाले उत्पाद शुल्क और बिक्री कर से केंद्र और राज्यों के कर संग्रह में 40 फीसदी से अधिक आंतरिक अप्रत्यक्ष कर आता है। बहरहाल, इसका असर भारतीय विनिर्माताओं की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर पड़ता है क्योंकि परिवहन की लागत बढ़ती है।
बिजली पर लगने वाले शुल्क को बाहर करने और उसे जीएसटी में लाने के लिए राज्य सूची में भी संशोधन करना जरूरी है। ऐसे उपाय व्यवस्था को बहुत अधिक व्यापक बनाएंगे और इसे औपचारिक बनाने में मदद करेंगे। अगर पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में शामिल करने में राजस्व का बिंदु आड़े आ रहा है तो जीएसटी परिषद को एक अलग हरित शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिए। इसे जीएसटी आधार में शामिल करने के अलावा इसे जलवायु संबंधी कदमों में प्रयोग किया जा सकता है।
ढांचे को तैयार करते समय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में शामिल करीब 50 फीसदी वस्तुओं को कर से बाहर रखा गया ताकि कीमतों पर जीएसटी के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके। यह बड़ी रियायत मूल्यवर्धित कर के सिद्धांत के खिलाफ जाती है। वांछित यही है कि इस रियायत को अप्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और जल्दी खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं तक सीमित रखा जाए तथा अन्य वस्तुओं पर 8 फीसदी की निचली दर से कर लगाया जाए।
कर्नाटक के 2023-24 के आंकड़े दिखाते हैं कि 50 लाख रुपये से कम के टर्नओवर वाले जीएसटी डीलर करदाताओं में 93 फीसदी हैं लेकिन कुल टर्नओवर में उनकी हिस्सेदारी केवल 6.5 फीसदी है और कुल चुकता कर में वे 12 फीसदी की हिस्सेदारी है। बड़ी कंपनियों के बजाय छोटी कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करने से बेहतर अनुपालन और बेहतर कर प्राप्ति संभव होंगे।
अन्य महत्त्वपूर्ण सुधारों में से एक है दरों को युक्तिसंगत बनाना। आदर्श स्थिति में एकल दर पर जीएसटी लगाना और रियायतों की न्यूनतम सूची को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। परंतु वह शायद अभी राजनीतिक रूप से स्वीकार्य न हो और कोशिश यह होनी चाहिए कि दरों को कम करके दो किया जाए और फिर एक दर की दिशा में बढ़ा जाए। कर्नाटक में दरों की श्रेणी के हिसाब से जुटाए गए राजस्व की बात करें तो 2021-22 में 75 फीसदी कर 12 और 18 फीसदी दरों की श्रेणी में जुटाया गया।
अगर इन्हें 16 फीसदी की एक दर में बदल दिया जाता तो यह राजस्व निरपेक्ष दर होती। इस समय 5 फीसदी की दर से कर वसूली वाली वस्तुएं 6.2 फीसदी राजस्व जुटाती हैं। इसे बढ़ाकर 8 फीसदी किया जा सकता है। 28 फीसदी की दर को केवल अयोग्य वस्तुओं तथा निर्माण सामग्री एवं यात्री कारों जैसी श्रेणियों में रखा जाना चाहिए। विनिर्माण श्रम आधारित गतिविधि है और यात्री कारों का क्षेत्र भी श्रम गहन सेवा क्षेत्र है। 2026 के बाद जब उपकर लगने बंद हो जाएंगे तब कर ढांचा अधिक सरल होगा। केवल दो दरों के साथ यह सरल और अच्छा कर होगा।
(लेखक NIPFP के पूर्व निदेशक और 14वें वित्त आयोग के सदस्य हैं। वह ब्रिकवर्क रेटिंग्स में मुख्य आर्थिक सलाहकार भी हैं। लेख में निजी विचार हैं)