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मोदी सरकार का हरित ऊर्जा एजेंडा

हरित ऊर्जा (Green Energy) –विशेषकर सौर एवं पवन ऊर्जा- की बात करें तो भारत सालाना अपनी क्षमता बढ़ाने में दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है।

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वंदना गोम्बर   
Last Updated- June 28, 2024 | 10:12 PM IST

लोक सभा नतीजों की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को पहले संबोधन में ‘हरित युग’ की शुरुआत का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने इस बात का भी जिक्र किया कि भारत किस तरह हरित औद्योगीकरण, हरित ऊर्जा और हरित वाहन खंडों में अग्रणी देश बनना चाहता है। प्रधानमंत्री द्वारा कही गई ये बातें संकेत देती हैं कि हरित विकास में सरकार किन प्राथमिकताओं के साथ आगे बढ़ेगी।

हरित ऊर्जा (Green Energy) –विशेषकर सौर एवं पवन ऊर्जा- की बात करें तो भारत सालाना अपनी क्षमता बढ़ाने में दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है और वह इसे (हरित ऊर्जा) और बढ़ावा देने के लिए स्थानीय विनिर्माण क्षमता का और विस्तार कर रहा है। जो भी देश स्थानीय स्तर पर विनिर्माण बढ़ाने का प्रयास कर रहा है उसे एक अलग प्रकार की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

उदाहरण के लिए अमेरिका में लगातार नीतिगत बदलाव किए जा रहे हैं ताकि प्रोत्साहित करने एवं हतोत्साहित करने का मिश्रण घरेलू विनिर्माताओं के लिए आकर्षक बना रहे और इसके साथ ही क्षमता विस्तार को भी अतिरिक्त विस्तार समर्थन मिलता रहे। भारत में लोक सभा चुनाव संपन्न होने और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद वेंकटेश जोशी के कमान संभालने के बाद अब तेजी से विभिन्न उद्देश्यों के बीच संतुलन स्थापित करने और विशेष लक्ष्य पूरे करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।

भीषण गर्मी में बिजली की मांग ताबड़तोड़ बढ़ने के बीच अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है। अप्रैल 2024 के लिए केंद्रीय बिजली प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार अक्षय ऊर्जा (जल विद्युत सहित) की देश में कुल बिजली उत्पादन में 20 फीसदी हिस्सेदारी होती है। इस 20 फीसदी हिस्सेदारी में सौर ऊर्जा का योगदान लगभग आधा है और इसके बाद बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं और पवन ऊर्जा का सबसे अधिक योगदान रहा है।

दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर प्रगति थोड़ी धीमी हुई है। ब्लूमबर्गएनईएफ के आर्थिक बदलाव परिदृश्य (इकनॉमिक ट्रांजिशन सिनेरियो) में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री 2023 के 1.39 करोड़ से बढ़कर 2027 में 3 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इस अवधि के दौरान इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री सालाना 21 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है जबकि 2020 से 2023 के बीच इसकी दर 61 फीसदी रही थी।

दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत के सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाले बाजारों में शामिल रहने का अनुमान है। वियतनाम की विनफास्ट और टेस्ला के प्रवेश के बाद भारतीय बाजार को और मजबूती मिल सकती है।

इस बीच, यूरोपीय संघ ने जुलाई से चीन से निर्यात होने वाली इलेक्ट्रिक कारों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। यूरोपीय संघ के इस निर्णय के कई मतलब निकाले जा सकते हैं।

संघ ने कहा है कि वह ‘अस्थायी तौर पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चीन में बैटरी से चलने वाली इलेक्ट्रिक वाहन (बीईवी) मूल्य व्यवस्था अनुचित सब्सिडी से लाभान्वित होती है। इस अनुचित सब्सिडी प्रक्रिया से यूरोपीय संघ के बीईवी उत्पादों को आर्थिक नुकसान होने का खतरा पैदा हो गया है’।

भारत में नई सरकार का आर्थिक नजरिया जुलाई में बजट पेश होने के बाद स्पष्ट हो जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिनों पहले इटली में संपन्न जी-7 समूह की बैठक में 2070 तक कार्बन के नेट जीरो उत्सर्जन का भारत का संकल्प दोहराया है।

इलेक्ट्रिक वाहन और तेल

बीएनईएफ का अनुमान है कि सभी प्रकार के इलेक्ट्रिक वाहन और फ्यूल-सेल वाहन 2027 तक रोजाना लगभग 40 लाख बैरल तेल का विस्थापित कर सकते हैं। इसके अनुसार 2027 तक सड़कों पर चलने वाले वाहनों के लिए ईंधन की मांग शीर्ष स्तर पर पहुंच जाएगी और इसके बाद इसमें कमी आनी शुरू हो जाएगी।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEK) के अनुसार इस तिमाही में तेल की मांग लगभग 10.4 करोड़ बैरल प्रति दिन रहने की उम्मीद है। बीएनईएफ के आर्थिक बदलाव परिदृश्य के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहन खंड में प्रगति नहीं हुई होती तो तेल की मांग 2030 में प्रति दिन 66 लाख बैरल अधिक रहती।

कुछ वाहन निर्माता कंपनियों ने निकट भविष्य के इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर अपनी रफ्तार थोड़ी सुस्त कर दी है मगर दीर्घ अवधि में इन वाहनों के विकास एवं इनकी मांग बढ़ने के कई कारण मौजूद हैं। इनमें किफायती बैटरी, चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार और नए सस्ते वाहन ढांचे शामिल हैं। बीएनईएफ के अनुसार पेट्रोल-डीजल इंजन वाहनों की मांग वर्ष 2017 में सर्वोच्च स्तर पर पहुच गई। इस स्तर से वर्ष 2027 तक इसमें 29 फीसदी गिरावट आने का अनुमान है।

ऊर्जा भंडारण

लंबी अवधि तक ऊर्जा का भंडारण करने वाली नई तकनीकों का समूह ऊर्जा भंडारण में लिथियम-आयन बैटरियों के दबदबे को चुनौती दे सकता है। बीएनईएफ का पहला दीर्घकालिक ऊर्जा भंडारण (एलडीईएस) लागत सर्वेक्षण दर्शाता है कि ये सभी तकनीक फिलहाल शुरुआती चरण में हैं और महंगे भी हैं मगर इनमें कुछ ऊर्जा भंडारण में लिथियम से अधिक किफायती साबित हो रहे हैं।

ताप बिजली भंडारण और संपीडित वायु भंडारण सबसे कम खर्चीली एलडीईएस तकनीक हैं। अन्य तकनीकों में फ्लो बैटरी, पंपयुक्त जलविद्युत भंडारण और गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा भंडारण शामिल हैं। एलडीईएस की अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली प्रणाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

भारत दो घंटे तक ऊर्जा भंडारण के लिए तीन नीलामी कर चुका है जिनमें काफी बोलियां आई थीं। इन पर कोई सब्सिडी नहीं दी गई है मगर भारत अब 4 गीगावॉट-घंटा वाली बैटरी परियोजनाओं के लिए 9,400 करोड़ रुपये सब्सिडी देने की योजना पर काम कर रहा है। यह सब्सिडी विभिन्न नीलामी में बांटी जाएगी।

बैटरी पर बीएनईएफ में लीड इंडिया विश्लेषक रोहित गाद्रे का कहना है, ‘इस सब्सिडी योजना में बैटरी विनिर्माता काफी रुचि दिखाएंगे क्योंकि इन्हें लेकर दिशानिर्देश उनके अनुकूल हैं। उनके सामने बाजार के जोखिम भी नहीं होंगे और बैटरी परिचालन के तीन वर्ष पूरे होने पर उन्हें पूरी सब्सिडी का भुगतान किया जाएगा।‘

(लेखिका ब्लूमबर्गएनईएफ में वरिष्ठ संपादक-वैश्विक नीति हैं)

First Published : June 28, 2024 | 9:27 PM IST