भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गत सप्ताह पहली बार भारत सरकार की ओर से 8,000 करोड़ रुपये मूल्य के सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड जारी किए। इस विषय में आरंभिक घोषणा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022 के बजट भाषण में की थी। बाद में सरकार ने कहा था कि वह कुल बाजार उधारी कार्यक्रम के तहत इस वर्ष 16,000 करोड़ रुपये मूल्य के ग्रीन बॉन्ड जारी करेगी।
ऐसे निवेशक हैं जो हरित पहल का समर्थन करने के लिए अपेक्षाकृत कम प्रतिफल के लिए राजी हैं। कुछ संस्थागत निवेशकों के लिए यह जरूरी किया गया है कि वे अपने फंड का एक हिस्सा ऐसी योजनाओं में निवेश करें। यही वजह है कि हरित कारोबार में लगे निकाय अपेक्षाकृत कम दरों पर फंड जुटाने में कामयाब हैं। वैश्विक स्तर पर सरकारों ने अब तक हरित बॉन्ड का सीमित इस्तेमाल किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 2022 के नोट में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच जारी किए गए कुल बॉन्ड में सॉवरिन ग्रीन बॉन्ड केवल 2 फीसदी थे।
भारत सरकार ने 5 और 10 वर्षों की प्रतिभूतियों के रूप में ग्रीन बॉन्ड जारी किए थे। पहली नीलामी में प्रतिफल समान अवधि के नियमित बॉन्ड की तुलना में 5-6 आधार अंक तक कम था। इस अंतर को ’ग्रीनियम’ कहा जाता है। आईएमएफ द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक अमेरिकी डॉलर वाले बॉन्ड में उभरते बाजारों के लिए ग्रीनियम 49 आधार अंकों के बराबर था। यह यह भी दर्शाता है कि शुरुआत में अंतर कम था जो समय के साथ बढ़ता गया। ऐसे में यह संभव है कि इस प्रकार के बॉन्ड की मांग बढ़ने के साथ ही आरबीआई इसकी अधिक प्रतिस्पर्धी कीमत तय कर सकेगा। जैसा कि इस समाचार पत्र ने भी प्रकाशित किया था ग्रीन बॉन्ड की पहली खेप सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों द्वारा जमकर खरीदी गई थी।
जानकारी के मुताबिक संस्थागत विदेशी निवेशकों ने भी करीब 700 करोड़ रुपये मूल्य के ग्रीन बॉन्ड खरीदे। विकसित बाजारों में ग्रीनियम करीब 5–6 अंकों के बराबर है। विकसित और उभरते बाजारों के ग्रीनियम के बीच अंतर को नियमित बॉन्ड प्रतिफल के अंतर के समकक्ष रखा जा सकता है। हालांकि अब विकसित देशों में यह तेजी से बढ़ा भी है। सरकार की इस पहल का समर्थन करने की इच्छा रखने वाले निवेशकों को अपने साथ जोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि जुटाए गए फंड का इस्तेमाल पारदर्शी तरीके से उल्लिखित उद्देश्यों के लिए ही किया जाए।
सरकार ने गत वर्ष एक व्यापक नोट जारी किया था और इस विषय में विस्तार से जानकारी दी थी। वित्त मंत्रालय ने कहा था कि उसने संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधित्व के साथ ग्रीन फाइनैंस वर्किंग कमेटी का गठन किया है। कमेटी की अध्यक्षता भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार करेंगे। कमेटी तय ढांचे के भीतर हरित परियोजनाओं के चयन और आकलन में वित्त मंत्रालय की मदद करेगी। यह कमेटी एक सालाना रिपोर्ट भी तैयार करेगी जिसमें आवंटन, परियोजना का विस्तार से ब्योरा, क्रियान्वयन की स्थिति तथा आवंटित न हो सकी प्राप्तियों का ब्योरा होगा।
परियोजनाओं के पर्यावरण प्रभाव के बारे में अलग से जानकारी दी जाएगी। यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा कि इस फंड का इस्तेमाल उल्लिखित उद्देश्यों के लिए किया जाए। इसके लिए एक योजना बनाई गई है। प्राप्तियों को भारत की संचित निधि में जमा किया जाएगा लेकिन यह हरित परियोजनाओं के लिए उपलब्ध होगा। वित्त मंत्रालय इसके लिए एक अलग खाते की व्यवस्था करेगा। वह एक ग्रीन रजिस्टर भी बनाएगा जिसमें फंड के जारी होने और आवंटन की जानकारी रखी जाएगी। सरकार का इरादा तृतीय पक्ष के समीक्षकों को जोड़ने का भी है ताकि वे सालाना आकलन पेश कर सकें। इस ढांचे का पारदर्शी क्रियान्वयन जरूरी हरित बदलाव की दिशा में सरकार की उधारी की लागत कम करने में मदद करेगा।