भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) पिछले 20 वर्षों से साल के इस वक्त में अपनी मौसम संबंधी भविष्यवाणी पेश करता आ रहा है।
इसमें यह बताया जाता है कि किसी खास साल में मॉनसून की क्या स्थिति रहेगी। हालांकि इस भविष्यवाणी की विश्वसनीयता लगातार कम होती जा रही है।मौसम विभाग के इस अनुमान को, कि इस साल मॉनसून सीजन (जून से सितंबर के दौरान) में बारिश लंबे वक्त से चले आ रहे औसत का 99 फीसदी होगी, थोड़ा सतर्क होकर देखने की जरूरत है।
हालांकि पहली नजर में तो यही लग रहा है कि यह देश के किसानों, अर्थव्यवस्था और जल संतुलन के लिए खुशखबरी है।पिछले साल मौसम विभाग ने सामान्य से 6 फीसदी कम बारिश का अनुमान व्यक्त किया था। पर अनुमान गलत निकला। पिछले साल बारिश सामान्य से 6 फीसदी ज्यादा हुई।
1998 लेकर लेकर अब तक मौसम विभाग ने जो अनुमान पेश किए हैं, उनमें से सिर्फ शुरुआती छह वर्षों में ही विभाग के अनुमान सही साबित हुए। गौरतलब है कि मौसम विभाग फिलहाल गोवारीकर मॉडल के आधार पर गणना कर अपने अनुमान पेश करता है।
इस लिहाज से कहें तो 1998 समेत आगामी छह वर्षों में गोवारीकर मॉडल के आधार पर की गई गणना सही पाई गई, जबकि उसके बाद वाले वर्षों में यह गणना सही नहीं पाई गई। इसकी सबसे बड़ी मिसाल सूखे का एक वर्ष रही, जिसका अंदेशा मौसम विभाग ने दूर-दूर तक नहीं जताया था।
हालांकि तब तक ऐसा कोई भी सांख्यिकीय मॉडल विकसित नहीं किया जा सका है और न ही ऐसा किए जाने की कोशिश की गई है, जिसकी मदद से मॉनसून के बारे में ज्यादा से ज्यादा ठोस भविष्यवाणी पेश की जा सके। मॉनसून भविष्यवाणी प्रक्रिया में किए गए महत्वपूर्ण बदलाव पिछले साल से लागू कर दिए गए। इसके तहत भविष्यवाणी के एक नहीं, बल्कि दो जरिये अपनाए गए। पहला, शुरुआती आंकड़े जुटाकर प्राथमिक भविष्यवाणी अप्रैल में पेश की जाए।
दूसरा, भविष्यवाणी की दूसरी निखरी हुई खेप जून में पेश की जाए और उसमें क्षेत्रवार आंकड़े भी पेश किए जाएं।हालांकि पहले ही वर्ष में यह तरीका बहुत सटीक साबित नहीं हुआ। खासकर मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के बारे में की गई भविष्यवाणियां तो बहुत ही ज्यादा अटपटी पाई गईं।
इन दो क्षेत्रों के बारे में अनुमान जताया गया था कि यहां सामान्य से 4 से 6 फीसदी कम बारिश होगी, जबकि मध्य क्षेत्र में सामान्य से 8 फीसदी ज्यादा और दक्षिणी क्षेत्र में सामान्य से 26 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई।
इस झटके से सतर्क होकर आईएमडी ने इस बार पिछले साल के मॉडल का इस्तेमाल सिर्फ उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी इलाकों में मौसम की भविष्यवाणी के लिए किया है। दक्षिणी और मध्य क्षेत्र के लिए एक नए मॉडल का इस्तेमाल किया गया है, जो पश्चिमी देशों में मशहूर है, पर भारत में अभी जांच के स्तर पर ही चल रहा है।