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एआई और गिग अर्थव्यवस्था के दौर में कैसा होगा रोजगार का भविष्य?

रोजगार की योग्यता को सार्थक रोजगार में बदलने के लिए नीतियों को अर्थव्यवस्था में हो रहे प्रगति और परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाना होगा

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 19, 2025 | 9:32 PM IST

देश की श्रम शक्ति बदलाव के दौर से गुजर रही है। भारतीय उद्योग परिसंघ, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और भारतीय विश्वविद्यालय संघ द्वारा तैयार हालिया भारत कौशल रिपोर्ट 2026 (काम का भविष्य- गिग श्रम शक्ति, फ्रीलांसिंग, एआई समर्थित श्रम शक्ति, दूर से किए जाने वाले काम और उद्यमिता) इस बदलाव को विस्तार से दर्ज करती है। रोजगार-योग्यता पिछले वर्ष के 54.81 फीसदी से बढ़कर 56.35 फीसदी हो जाने के साथ, रिपोर्ट नौकरी के लिए तैयार होने और कौशल अपनाने में निरंतर सुधार की ओर संकेत करती है। यह अध्ययन रोजगार-योग्यता परीक्षणों और 1,000 से अधिक संस्थानों से प्राप्त अंतर्दृष्टियों पर आधारित है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि वैश्विक प्रतिभा केंद्र के रूप में भारत का कद बढ़ रहा है। वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में काम कर रही श्रम शक्ति का करीब 16 फीसदी भारत से है। इस क्षेत्र में करीब 6 लाख लोग काम कर रहे हैं और 2027 तक यह आंकड़ा दोगुना बढ़ने का अनुमान है। डिजिटल और फ्रीलांस अर्थव्यवस्था का भी तेजी से विस्तार हो रहा है और वर्ष 2030 तक गिग कर्मियों की संख्या बढ़कर 2.35 करोड़ हो जाने का अनुमान है। एआई समर्थित भर्ती, हाइब्रिड कार्य मॉडल और मानव संसाधन प्रणाली आदि तमाम क्षेत्रों में नियुक्तियों को नए ढंग से परिभाषित कर रहे हैं। अब हर10 में से करीब 9 कर्मचारी किसी न किसी तरह जेनेरेटिव एआई टूल्स पर निर्भर हैं। भारत में इसे अपनाने की दर अधिकांश विकसित देशों से कहीं तेज है।

बहरहाल, नई कार्य व्यवस्था अहम कमियों को भी उजागर करती है। गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था को उसके लचीलेपन के लिए पसंद किया जाता है और यह अभी भी औपचारिक श्रम संरक्षण के दायरे से बाहर है। लाखों आपूर्ति कर्मी, फ्रीलांसर और प्लेटफॉर्म आधारित पेशों में बीमा का अभाव है, भविष्य निधि की व्यवस्था नहीं है या फिर दिक्कतें दूर करने की कोई व्यवस्था नहीं है। जब तक नियामकीय ढांचा विकसित नहीं होता है, लचीलापन असुरक्षा के रूप में नजर आ सकता है।

रिपोर्ट में छोटे लाभ और निष्पक्ष कार्य प्रोटोकॉल की मांग, जिसमें कौशल-सत्यापित प्रमाणपत्र और डेटा संरक्षण मानदंड शामिल हैं, नीतिगत शून्य को रेखांकित करती है। कौशल के क्षेत्र में बढ़ती खाई भी एक बड़ी समस्या है। एआई विभिन्न उद्योगों में उत्पादकता को बदल रहा है, लेकिन केवल सीमित संख्या में कंपनियां बड़े पैमाने पर एआई प्रशिक्षण प्रदान करती हैं, जिससे डिजिटल साक्षरता का असमान परिदृश्य बन रहा है।

बड़ी कंपनियां स्वचालन और विश्लेषण को अपना रही हैं, जबकि छोटे और मध्यम उद्यम इन्हें अपनाने के लिए जूझ रहे हैं। जैसे भारत की 1990 और 2000 के दशक की सेवा-आधारित वृद्धि ने समृद्धि के ऐसे क्षेत्र बनाए जिनसे बड़ी संख्या में कम-कुशल और असंगठित कामगार बाहर रह गए थे, वैसे ही एआई-आधारित वृद्धि उस समस्याग्रस्त प्रवृ​त्ति को दोहराने का जोखिम रखती है। स्वचालन की नई लहर असमानताओं की खाई को और चौड़ा कर सकती है, जैसा कि एक बार सेवाओं के उभार ने किया था।

लैंगिक यानी स्त्री-पुरुष में और क्षेत्रीय असमानता ने भी चुनौती बढ़ा दी है। महिलाओं की रोजगार-योग्यता का स्तर 50.86 फीसदी है जो अब पुरुषों के लगभग समान है लेकिन उच्च वृद्धि वाले क्षेत्रों मसलन तकनीक, विनिर्माण और ऊर्जा क्षेत्र में उनकी सीमित पहुंच है। क्षेत्रीय अंतर बरकरार हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक रोजगार के मामले में आगे हैं जबकि बिहार और पूर्वोत्तर के राज्य काफी पीछे हैं। देश के कौशल मिशन के अगले चरण में समता और दक्षता पर ध्यान देना होगा।

रोजगार की योग्यता को सार्थक रोजगार में बदलने के लिए नीतियों को अर्थव्यवस्था में हो रहे प्रगति और परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाना होगा। एक आधुनिक श्रम ढांचे को गिग और रिमोट कार्य को मान्यता देनी चाहिए। इस संदर्भ में लागू होने की प्रतीक्षा कर रहीं चार श्रम संहिताएं एक शुरुआत हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, नैतिक एआई शासन को बढ़ावा देने के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भर्ती और कार्यस्थल प्रबंधन में एल्गोरिदम की पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे। अंततः, शिक्षा और कौशल सुधार के जरिये कक्षाओं को करियर से जोड़ना चाहिए और परियोजना-आधारित तथा उद्योगों के साथ तालमेल वाली शिक्षा दी जानी चाहिए।

First Published : November 19, 2025 | 9:27 PM IST