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चीन और भूटान की दोस्ती भारत के लिए नई चुनौती!

चीन ने भूटान के साथ राजनयिक संबंध बनाए जाने के बाद आर्थिक, सांस्कृतिक और नागरिकों के बीच सहयोग के नए क्षेत्रों के संकेत दिए हैं।

Last Updated- November 08, 2023 | 6:47 AM IST
Opinion: The reality of China being in crisis

भूटान व चीन के बीच सौहार्दपूर्ण राजनयिक संबंधों की नई शुरुआत हुई है जिससे भारत तथा भूटान के बीच नई लक्ष्मण रेखा बनाने की दरकार हो सकती है। बता रहे हैं हर्ष वी पंत और आदित्य गौड़ारा शिवमूर्ति

अक्टूबर में चीन का दौरा करने वाले तांदी दोरजी भूटान के पहले विदेश मंत्री हैं। उनकी यात्रा ने दो कारणों से दुनिया भर का ध्यान आकृष्ट किया है। पहला यह कि अपनी सीमा वार्ता के 25वें दौर का समापन करके भूटान और चीन अब दशकों पुराना अपना क्षेत्रीय विवाद खत्म करने के करीब हैं।

भूटान के विदेश मंत्री की चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एक ‘सहयोग समझौते’ पर भी हस्ताक्षर किए जिसमें विवादित सीमाओं के परिसीमन और सीमांकन के लिए काम करने वाली एक संयुक्त तकनीकी टीम की जिम्मेदारियों और कार्यों का भी जिक्र है।

दूसरा, राजनयिक संबंधों से जुड़ी बातचीत कई मौके पर सामने आई है और यह यात्रा भी दोनों देशों के संबंध सामान्य होने के संकेत देती है। हालांकि इस घटनाक्रम को देखते हुए भारत ने एक सोची-समझी चुप्पी बनाए रखी जिससे यह आभास होता है कि वह भूटान की स्थिति को समझ रहा है और उसे इस घटनाक्रम से उसके हितों को नुकसान पहुंचने की उम्मीद नहीं है।

लेकिन यह भी संभव है कि चीन के साथ भूटान के राजनयिक संबंधों के सामान्य होने से भारत को नई चुनौतियों का सामना करना पड़े।

वर्ष 1950 के दशक में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा करने और बाद में भूटान के आठ आंतरिक क्षेत्रों पर कब्जा करने से चिंता बढ़ी। नतीजतन, भूटान ने अपने नए पड़ोसी चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध खत्म कर दिए। इसके अलावा भूटान पी5 देशों के साथ भी राजनयिक संबंध रखने में संकोच बरत रहा था लेकिन उसने भारत के साथ अपने विशेष संबंध को स्वीकार किया।

भूटान को तिब्बत की पांच उंगलियों का हिस्सा मानने की चीन की धारणा के चलते भी भूटान भारत के करीब आने लगा। लेकिन वर्ष 1984 में द्विपक्षीय वार्ता की शुरुआत के साथ चीन ने विवादित क्षेत्र को स्पष्ट रूप से दो क्षेत्रों तक सीमित कर दिया जिसमें उत्तर में पसमलुंग और जकरलुंग घाटियां और पश्चिम में द्रामाना, शाखातो, सिंचुलुंगपा और लांगमार पो घाटी, याक चू और चारिथांग घाटियां तथा डोकलाम पठार भी शामिल हैं।

चीन के लिए भूटान के साथ राजनयिक संबंध बनाने और विवादों का समाधान करना एक एशियाई शक्ति के रूप में उसकी छवि के लिए अहम तो है ही, साथ ही भारत के सामने अपनी आक्रामक स्थिति में सुधार के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।

इत्तफाक से चीन ने अलग-अलग वक्त में भूटान को भयभीत करने और मनाने के साथ शांत करना जारी रखा है। संभव है कि इसी दबाव की वजह से भूटान वार्ता के मंच पर आने के लिए बाध्य हुआ।

भूटान और चीन ने 1988 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और उसी साल एक समझौते को अंतिम रूप दिया। दोनों देशों के बीच 2016 तक 24 दौर की वार्ता हुई। हालांकि, हाल के वर्षों में शीर्घ समाधान के लिए चीन सक्तेंग क्षेत्र के पूर्वी क्षेत्र में नए दावे कर रहा है और विवादित क्षेत्रों में सीमा पार से जुड़ी घुसपैठ और बस्तियां तैयार करने को बढ़ावा दे रहा है।

ऐसे वक्त में जब भारत और चीन के संबंध बिगड़ रहे हैं तब भूटान ने चीन द्वारा धीरे-धीरे विवादित क्षेत्रों में घुसने पर रोक लगाने के लिए शीघ्र वार्ता करने पर जोर दिया है।

घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति ने भी वार्ता में तेजी लाने के लिए भूटान को अतिरिक्त प्रोत्साहन दिया। पुराने दौर में भूटान चीन को दो टूक जवाब दे सकता था लेकिन अब यह चीन को नई विश्व व्यवस्था के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में देखता है जिससे अलग नहीं रहा जा सकता है। इसी वजह से भूटान में चीन का निर्यात वर्ष 2020 के 200 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2022 में 1,500 करोड़ रुपये हो गया है।

संरचनात्मक मुद्दों और अवसरों की कमी के कारण युवाओं का पलायन भी बढ़ा है जिससे सुधारों की आवश्यकता बढ़ी है। इसीलिए भूटान, चीन को सुधारों की अपनी राह के लिए आवश्यक भागीदार के तौर पर देखता है।

भूटान, पूंजीगत और मशीनी वस्तुएं, टिकाऊ वस्तुओं और रोजमर्रा के उपकरणों का आयात करता है और इससे संकेत मिलता है कि जैसे-जैसे भूटान वृद्धि करेगा वैसे ही चीन पर इसकी निर्भरता भी बढ़ेगी। यही कारण है कि भूटान हाल के वर्षों में विवाद को समाप्त करने और चीन के साथ राजनयिक संबंध बनाने के संकेत देता रहा है।

हाल के घटनाक्रम में दिख रही तेजी के बावजूद भारत ने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। यह दोनों देशों के विशेष संबंधों और भूटान की सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों से जुड़ी समझ के भरोसे को दर्शाता है। आज तक भारत और भूटान के बीच बहुआयामी संबंध कायम हैं।

भारत भूटान के कुल निर्यात का लगभग 70 प्रतिशत आयात करता है और दोनों का व्यापार वर्ष 2020 के 9,400 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022 में 13,400 करोड़ रुपये हो गया है। परस्पर सौहार्दपूर्ण रिश्ते के एक महत्त्वपूर्ण घटक में पनबिजली परियोजनाओं में भारत का सहयोग और भूटान के पनबिजली निर्यात शामिल है।

इसी तरह, भारत ने भूटान की वर्तमान पंचवर्षीय योजना के लिए लगभग 4,500 करोड़ रुपये की सहायता की पेशकश की है। दोनों देशों के बीच करीबी सुरक्षा सहयोग वाला संबंध भी कायम है।

भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल, भूटानी सैनिकों को प्रशिक्षित करता है और वर्ष 2007 का समझौता कानूनी रूप से दोनों देशों को एक-दूसरे के हितों का सम्मान करने के लिए बाध्य करता है। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भूटान की वार्ता से भारत के हितों को कोई नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं है।

डोकलाम के मुद्दे पर भी भूटान ने त्रिपक्षीय वार्ता पर जोर देने का रुख अपनाया है जो भारत के प्रति उसकी संवेदनशीलता के भरोसे को और मजबूत करता है। हालांकि दोनों देशों के बीच बने विशेष संबंध भूटान को भारतीय हितों के प्रति विचारशील होने के बाध्य कर सकते हैं लेकिन नई चुनौतियां भी बनने की संभावना है। सबसे पहले भारत यह देखेगा कि चीन और भूटान किस तरह विवाद वार्ता से सीमा के सीमांकन की ओर बढ़ते हैं।

इसके अलावा डोकलाम जैसे संवेदनशील क्षेत्र के मुद्दे अनसुलझे हैं और सक्तेंग क्षेत्र को लेकर नए दावे किए जा रहे हैं। ऐसे में भारत यथास्थिति बदलने की चीन की क्षमता और उसके इरादे को लेकर सतर्कता बरतता रहेगा।

दूसरा, भूटान अब चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करके भारत और चीन की प्रतिस्पर्द्धी गतिविधियों में प्रवेश करने वाला नया और अंतिम दक्षिण एशियाई देश होगा।

चीन ने भूटान के साथ राजनयिक संबंध बनाए जाने के बाद आर्थिक, सांस्कृतिक और नागरिकों के बीच सहयोग के नए क्षेत्रों के संकेत दिए हैं। इसी तरह, चीन के मीडिया सूत्रों ने भी चीन की तीन वैश्विक पहलों को मान्यता देने और समर्थन देने के लिए भूटान की सराहना की है। इससे पता चलता है कि संबंधों के उभार के इस नए चरण में भारत और भूटान के बीच नई लक्ष्मण रेखा की भी जरूरत होगी।

(लेखक क्रमश: ओआरएफ में उपाध्यक्ष-अध्ययन, और दक्षिण एशिया के एसोसिएट फेलो हैं)

First Published - November 7, 2023 | 10:51 PM IST

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