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निर्यात को चाहिए नीतिगत मदद

Last Updated- February 17, 2023 | 9:18 AM IST
Cargo handling increased at major ports, record 795 million tonnes of cargo handled in 2022-23

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को उचित ही कहा कि भारतीय निर्यातकों को वैश्विक घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए और अधिक ग्रहणशील होना होगा। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 2021-22 में भारतीय निर्यातकों ने जो तेजी दर्ज की थी वह अब धीमी पड़ रही है।

निर्यातकों को वैश्विक मांग में इजाफे से काफी मदद मिली क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्था महामारी के कारण मची उथल-पुथल से निपट रही थी। अब जबकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला सामान्य हो रही है, फिर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है।

ऐसा आंशिक रूप से इसलिए हो रहा है कि बड़े केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक सख्ती अपना रहे हैं। हालांकि अब यह माना जा रहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन पहले लगाए गए अनुमानों की तुलना में बेहतर होगा लेकिन इसके बावजूद इसमें उल्लेखनीय कमी आने का खतरा है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ताजा अनुमानों के मुताबिक 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 2.9 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल कर सकती है। यह आंकड़ा इससे पहले जताए गए अनुमानों से 20 आधार अंक अधिक है। माना जा रहा है की 2022 में विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 3.4 फीसदी रहेगी।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान यह भी है कि 2023 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि महज 2.4 फीसदी रह जाएगी जबकि 2022 में यह 5.4 फीसदी थी। दुनिया की आर्थिक और व्यापारिक वृद्धि में आ रही कमी भारत के कारोबारी आंकड़ों में भी नजर आ रही है।

बुधवार को जारी आंकड़े बताते हैं कि जनवरी माह में भारत का वाणिज्यिक निर्यात सालाना आधार पर 6.5 फीसदी कम हुआ जबकि मासिक आधार पर इसमें 4.5 फीसदी की कमी आई। अप्रैल से जनवरी तक की अवधि में निर्यात 8.5 फीसदी बढ़ा। ध्यान रहे 2021-22 में इसमें 40 फीसदी का इजाफा देखने को मिला था जिसके चलते वाणिज्यिक वस्तु निर्यात 422 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।

चालू वर्ष में अब तक भारत ने 369.25 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया है। मौजूदा हालात में अनुमान तो यही है कि कुल निर्यात पिछले वर्ष से बहुत अलग नहीं होगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि आयात में भी कमी आई है। ऐसा आंशिक तौर पर जिंस की कम कीमतों के कारण हुआ है। यही वजह है कि व्यापार घाटा भी एक वर्ष में सबसे निचले स्तर पर आ गया है।

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.4 फीसदी के बराबर हो गया है और इस बात में भी चिंता बढ़ाई है। हालांकि इस में कमी आने की भी उम्मीद है। विश्लेषकों का मानना है कि पूरे वित्त वर्ष में यह सकल घरेलू उत्पाद के 3 फीसदी से कम रह सकता है।

यह बात भी ध्यान देने लायक है कि भारत के सेवा निर्यात में लगातार मजबूती आ रही है और माना जा रहा है कि चालू वर्ष में अब तक है 30 फीसदी से अधिक बढ़ चुका है। बहरहाल सतर्क दृष्टिकोण और बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा कम लोगों को काम पर रखा जाना बताता है कि इस मोर्चे पर भी दबाव उत्पन्न हो सकता है।

यद्यपि भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू खाते के घाटे की भरपाई को लेकर भरोसा जताया है लेकिन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के विशुद्ध विक्रेता बन जाने से बाह्य खाते पर एक बार फिर दबाव उत्पन्न हो सकता है। इस पर नजर रखनी होगी।

नीतिगत स्तर पर जहां अनुमान यह है कि 2024 में वैश्विक व्यापार वापसी कर लेगा, वहीं भारत को निर्यात को गति देने के लिए एक मजबूत व्यापार नीति की आवश्यकता है। केंद्रीय बजट में टैरिफ में और इजाफा न करके अच्छा कदम उठाया गया लेकिन इसके साथ ही अनुमान यह भी था कि वह टैरिफ कम करके भारतीय कारोबारियों को वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकरण में मदद करेगा।

बहरहाल सरकार ने वह प्रक्रिया शुरू नहीं करने का निर्णय लिया। बल्कि व्यापार को लेकर ऐसा कुछ खास नहीं कहा गया जो समेकित मांग का बड़ा जरिया बने। व्यापार के मोर्चे पर संभावनाओं के दोहन के लिए यह आवश्यक है कि नीतियों को भी बदलती वैश्विक हकीकतों के अनुरूप बनाया जाए। ऐसा करके ही हम स्थायी रूप से उच्च वृद्धि और बेहतर निर्यात हासिल कर सकेंगे।

First Published - February 17, 2023 | 12:13 AM IST

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