पिछले महीने जब प्रफुल्ल पटेल की लड़की की शादी हुई, तो देश-विदेश से अतिथि आए। उदयपुर के सबसे प्रमुख पंच सितारा होटल में शादी संपन्न हुई।
हालांकि उदयपुर में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा नहीं है, लेकिन सब कुछ सुचारु रूप से हो गया। किसी को किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई।यदि शादी आज से तीन दिन पहले हुई होती, तो शायद नजारा कुछ और होता, क्योंकि इस दौरान भारतीय विमान प्राधिकरण (एएआई) के कर्मचारी हड़ताल पर थे। भारत के 127 हवाईअड्डों पर तैनात 14 हजार कर्मचारियों की हड़ताल का समन्वय वामपंथी दल कर रहे थे।
उनका रोष हवाईअड्डों की सेवाओं के निजीकरण को लेकर था। साथ ही, उनका कहना था कि हैदराबाद और बेंगलुरु में जो नए अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे खुल रहे हैं, उनके चालू हो जाने के बाद दोनों शहरों के पुराने हवाईअड्डों पर परिचालन का काम बंद नहीं किया जाए।
खैर, प्रफुल्ल पटेल द्वारा दिलासा दिलाए जाने के बाद एयरपोर्ट अथॉरिटी कर्मचारी यूनियन (एएईयू) ने अपनी हड़ताल वापस ले ली और एक दफा फिर हवाईअड्डों पर काम सुचारु रूप से चलने लगा है।
यह बात दीगर है कि हड़ताल के दौरान यात्रियों को अपना-अपना सामान खुद उठाना पड़ा था और शौचालयों से बदबू आनी शुरू हो गई थी। पिछले साल लंदन के महापौर ने ब्रिटेन के वित्त मंत्री गार्डन ब्राउन (जो अब प्रधानमंत्री हैं) को चेतावनी दी थी कि यदि लंदन के प्रमुख हवाईअड्डों हीथ्रो और गैटविक के पुख्ता प्रबंधन नहीं किए गए, तो ब्रिटेन का व्यापार तेजी से नीचे फिसल सकता है।
कुछ यही हाल है भारत का। भारत में निवेश व्यापार की अपनी कठिनाइयां तो हैं ही, लेकिन इनमें से सबसे बड़ी है हमारे देश के हवाईअड्डों की समस्या।पटेल की दिक्कत साफ है। आज कई निजी हवाई कंपनियां आ गई हैं।
इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के एकीकरण से बनी नई कंपनी एयर इंडिया के प्रमुख के सामने तगड़ी चुनौती है। 2006 में 9 करोड़ यात्री भारत के हवाईअड्डों से गुजरे। 300 से 320 हवाईजहाज अब भारत के इस्तेमाल में हैं।
यह संख्या 2012 तक 600 तक पहुंच सकती है। लेकिन सामान-माल को लादने-उतारने और यात्रियों को संभालने के इंतजाम वही हैं, जो पांच साल पहले थे। नतीजतन यात्रियों को हवाईअड्डे पर हर जगह देरी का सामना करना पड़ता है।
पटेल ने दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डों के संचालन की जिम्मेदारी निजी कंपनियों को सौंप दी। लेकिन बात नहीं बनी, बल्कि पूरे हवाईअड्डे के नए सिरे से निर्माण की वजह से पहले से दी जा रही सुविधाएं भी ठीक से नहीं चल पा रही हैं।
हवाईजहाजों क ो घंटों हवा में हवाईअड्डे की परिक्रमा करनी पड़ती है, क्योंकि जमीन पर जहाजों की भीड़ लग जाती है और हवाईजहाजों के खड़े होने में समस्या होती है। तेल खपाने में हवाई कंपनियों को नुकसान होता है, सो अलग।
ऐसे में पटेल का यह कहना कि कम खर्च में यात्रा करने वाले यात्रियों को थोड़ी तकलीफ उठाने पर शिकायत नहीं करनी चाहिए, जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है।
नतीजा यह है कि जरा-सी अड़चन और यात्रियों की वर्षों की भड़ास उबलकर सामने आ जाती है।
पटेल से पूछा जा सकता है कि आखिर जो यात्री उनकी पुत्री के विवाह में उदयपुर आए थे, उन्हें तकलीफ होती तो कैसा लगता?यह भी कहने की जरूरत नहीं है।
पटेल व्यापार चलन के बारे में सब जानते हैं, सब भांपते समझते हैं। महाराष्ट्र के गोंडिया जिले में उनका 400 करोड़ रुपये का बीड़ी का व्यापार है, जहां उनका परिवार कई सालों से बसा है।
सी. जे. टोबैको नाम की इस कंपनी में 60 हजार लोग कार्यरत हैं, जो सिर्फ बीड़ी ही नहीं जायदाद, फाइनैंस और खाद्य तेल का व्यापार भी करती है। इतनी श्रमशक्ति का संचालन करने वाला विकासशील भारत में एक दर्जन हवाईअड्डे क्यों नहीं चला पाता?
एक और चीज समझ में नहीं आती । पटेल ने यह निश्चय किया कि एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय करके एक बृहत भारतीय हवाई कंपनी बनाई जाए, जिसका नाम होगा एयर इंडिया। इकोनॉमीज ऑफ स्केल के चलते इससे ज्यादा मुनाफा होगा, ऐसा उनका अनुमान है।
लेकिन आज की तारीख में जब यह सरकारी एयरलाइंस के घाटे से उबर नहीं पाई है। पर इस कंपनी के घाटे को लाभ में कैसे रूपांतरित किया जाएगा, यह एक रहस्य है। एयर इंडिया की सबसे बड़ी चुनौती है सरकारी नियंत्रण।
कोई भी किसी भी वक्त खड़ा होकर कह सकता है विमान खरीदे जाने में धांधली हुई है और इस पर जांच समिति का गठन किया जाए। यही वजह है कि सरकारी हवाई कंपनियां स्पध्र्दा में पिछड़ गई हैं। अपने कार्यकौशल से पटेल ने विमान खरीदने की स्वीकृति तो सरकार से ले ली है।
लेकिन आगे इसका संचालन कैसे होगा, इसके लिए कोई सिस्टम नहीं बनाया है। दूरगामी सोच के बगैर भारत में विमान कंपनियां प्रगति नहीं कर सकतीं। पटेल ने विरासत में कुछ खास नहीं छोड़ा है।वैसे प्रफुल्ल पटेल सौहार्दशील, प्रसन्नचित्त और हंसमुख मंत्री हैं।
राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में शरद पवार के बाद सर्वेसर्वा प्रफुल्ल पटेल ही हैं। यह काम पहले सुरेश कलमाडी करते थे। पवार की प्रबंधन प्रक्रिया को आत्मसात कर चुके हैं पटेल। लिहाजा वह पवार के हर हाव-भाव से वाकिफ हैं।
अब पवार की पुत्री सुप्रिया को पार्टी और राजपाट संभालने के लिए तैयार किया जा रहा है। आने वाले दिनों में सुप्रिया से प्रफुल्ल पटेल के उतने ही मधुर रिश्ते होंगे, यह अभी कहना मुश्किल है।