हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शोध, विकास एवं नवाचार (आरडीआई) योजना को मंजूरी दी है। इस योजना के अंतर्गत देश के उद्योग जगत को 1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन करने की बात कही गई है। इसमें से 20,000 करोड़ रुपये की राशि इस वर्ष के बजट में तय है। यह फंड किस प्रकार वितरित किया जाएगा, इसे लेकर आरंभिक टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि इसका बड़ा हिस्सा कम ब्याज या शून्य ब्याज दर पर कई फंड ऑफ फंड्स और सीधे कंपनियों को दिया जाएगा। यहां जब मैं फंड ऑफ फंड्स सुनता हूं तो मुझे आश्चर्य होता है। मुझे नहीं पता है कि सीधे नवाचार बढ़ाने के लिए उन्हें कैसे जवाबदेह बनाया जाएगा। मेरा मानना है कि ज्यादातर धनराशि सीधे कंपनियों को दी जानी चाहिए। सवाल यह है कि कंपनियों को क्यों? किन कंपनियों को और कैसे वित्तीय मदद दी जाए?
नवाचार कंपनियों में होता है। इसमें कुछ किंतु-परंतु हो सकता है पर यह तथ्य सही है। आप बाकी सब कुछ सही कर लें- उच्च शिक्षा में सार्वजनिक धन वाले शोध को सही ढंग से अंजाम दें, राष्ट्रीय मिशन को सही ढंग से आगे ले जाएं, धनराशि को बिना लालफीताशाही के तेज गति से आने दें लेकिन कपंनियों में जो हो रहा है उसे गलत समझ लें, तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। मैं इस बात पर जितना जोर दूं कम है: दुनिया भर में नवाचार मुख्यतः फर्मों में ही होता है। केंद्रीय नवाचार गतिविधियां मसलन बाजार की तलाश, डिजाइन और वितरण का काम सभी कंपनियों में होता है। शोध और नए ज्ञान अमूल्य हो सकते हैं लेकिन वे नवाचार में सिर्फ उपयोग होते हैं, वे उसका मूल नहीं होते। कंपनियों को शोध एवं विकास में अधिक निवेश के लिए प्रेरित करना, उस शोध एवं विकास को नवीन उत्पादों और सेवाओं में परिवर्तित करना, तथा स्वामित्व प्रौद्योगिकी के इर्द-गिर्द व्यवसाय का निर्माण करना, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सके, एक जीवंत राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली की कुंजी है।
ऐसे में कंपनियों को ऐसी किसी भी योजना के केंद्र में होना चाहिए जो नवाचार को बढ़ाना चाहती है। कंपनियों में शोध एवं विकास की सही व्यवस्था सार्वजनिक शोध को जिस प्रकार आकर्षित कर सकती है वैसा कोई और व्यवस्था नहीं कर सकती है। परंतु भारतीय उद्योग द्वारा शोध एवं विकास में अपर्याप्त निवेश करना ही हमारे नवाचार को प्रभावित कर रहा है। आरडीआई योजना को इस पर ध्यान देना चाहिए और यह काम फंड ऑफ फंड्स जैसे बिचौलियों के बिना करना चाहिए।
तथ्यों से शुरुआत करते हैं। जैसा कि मैंने इस स्तंभ में पहले और अपनी किताब में भी कहा है और हर मिलने वाले से कहता हूं, भारतीय उद्योग जगत शोध एवं विकास में बहुत कम निवेश करता है। हम अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 0.3 फीसदी आंतरिक शोध एवं विकास में लगाते हं जबकि वैश्विक औसत 1.5 फीसदी है। हमारी 10 सबसे कामयाब गैर वित्तीय कंपनियां (रिफाइनिंग, सूचना प्रौद्योगिकी सेवा और उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र की उच्च मुनाफा कमाने वाली कंपनियां) अपने मुनाफे का 2 फीसदी शोध एवं विकास पर व्यय करती हैं। दूसरी तरफ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी में सफल कंपनियां मुनाफे का 29 से 55 फीसदी शोध एवं विकास में लगाती हैं। यूं ही नहीं, दुनिया के शीर्ष 10 प्रौद्योगिकी आधारित औद्योगिक क्षेत्रों में भारतीय कंपनियां नदारद हैं। लब्बोलुआब यह है कि देश के उद्योग जगत का अधिकांश हिस्सा इतना शोध एवं विकास कार्य नहीं कर रहा है कि फंडिंग में जो इजाफा हो रहा है उसकी तत्काल खपत कर सके। 20,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन अच्छी खासी राशि है। शोध एवं विकास व्यय मोटे तौर पर लोगों पर है-औसतन उपकरण और सामग्री पर कुल व्यय का एक तिहाई से भी कम खर्च होता है। लगभग 20,000 करोड़ रुपये के व्यय से शोध एवं विकास में लगभग 20,000 और लोगों को जोड़ा जा सकता है। इनमें से कौन सी कंपनियां एक वर्ष में बड़े पैमाने पर विस्तार कर पाएंगी?
हमें ऐसी कंपनियों की आवश्यकता है जो शोध एवं विकास में अच्छी खासी राशि का निवेश कर रही हों और अंतरराष्ट्रीय स्तर का शोध एवं विकास करें। हमें ऐसी कंपनियां चुननी होगी जो पहले ही शोध एवं विकास के क्षेत्र में अच्छा खासा काम कर रही हों। मिसाल के तौर पर उनकी शोध एवं विकास तीव्रता (बिक्री के प्रतिशत के रूप में शोध एवं विकास) उनके अंतरराष्ट्रीय समकक्षों की कम से कम आधी हो। दुनिया की शीर्ष 2,500 कंपनियों और हमारे देश की कंपनियों के बारे में यह आंकड़ा आसानी से उपलब्ध है। आंकड़े बताते हैं कि छह क्षेत्रों यानी औषधि, रसायन, ऑटो, डिफेंस, औद्योगिक इंजीनियरिंग और खाद्य क्षेत्र की हमारी शीर्ष पांच कंपनियों में औसतन शोध एवं विकास तीव्रता वैश्विक समकक्षों की आधी से ज्यादा है। इन क्षेत्रों में शोध एवं विकास में सबसे अधिक निवेश करने वाली कंपनियों में अपना शोध एवं विकास टीम बढ़ाने की सबसे अधिक क्षमता होनी चाहिए। एक उदार सीधी फंडिंग योजना से सामान्य फंड की उपलब्धता की तुलना में अधिक आवेदन आने चाहिए। भारत के शीर्ष 300 शोध एवं विकास निवेशकों में से कई आवेदन कर सकते हैं। हमारी 100वीं सबसे अधिक खर्च करने वाली कंपनी ने वर्ष 2022-23 में शोध एवं विकास में करीब 97 करोड़ रुपये का निवेश किया। हमारी 200वीं सबसे अधिक खर्च करने वाली कंपनी ने करीब 33 करेाड़ रुपये और 300वीं बड़ी कंपनी ने करीब 16 करोड़ रुपये का निवेश किया। दुनिया की शीर्ष कंपनियों की तुलना में यह बेहद कम है। आरडीआई योजना से इसे बदलने का प्रयास करना चाहिए। मेरा सुझाव है कि हम जिन कंपनियों को आरडीआई द्वारा वित्त पोषित करते हैं, उन्हें यह कहना चाहिए कि वे अगले 12 महीनों में शोध एवं विकास के काम में लगाए जाने वाले लोगों की संख्या को बढ़ाकर डेढ़ गुना करें। यदि हम ऐसा कामयाबी से कर लेते हैं तो यह सिलसिला जारी रखा जा सकता है। पांच साल में निरंतर सफल कंपनियां मौजूदा शोध एवं विकास निवेश को आठ गुना तक बढ़ाना होगा। इससे देश में एक मजबूत शोध एवं विकास परंपरा तैयार हो जाएगी और नए उत्पाद और सेवाएं दुनिया के सामने आने शुरू हो जाएंगी। एक दूसरी आवश्यकता भी है। जिन कंपनियों को आरडीआई की फंडिंग मिले उन्हें माैजूदा शोध एवं विकास में और गहराई लानी चाहिए। गहराई से तात्पर्य है कि उन्हें कम प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (टीआरएल) में अधिक निवेश करना चाहिए। कंपनियों को अपने नवाचार के प्रयोगों को गहराई प्रदान करने के लिए सार्वजनिक फंडिंग वाले शोध का इस्तेमाल करना चाहिए।
आज हमारे पास ऐसी एक भी कंपनी नहीं है जो टर्नओवर के प्रतिशत के मामले में या शोध एवं विकास पर कुल खर्च की जाने वाली राशि के मामले में अपनी वैश्विक समकक्ष कंपनियों का मुकाबला कर सके। पांच साल बाद हम उम्मीद कर सकते हैं कि तकरीबन 100 से अधिक भारतीय कंपनियां ऐसा करती हुई नजर आएंगी। ये कंपनियां अन्य अनेक कंपनियों के लिए रोल मॉडल का काम करेंगी और इस तरह हम एक जीवंत राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली तैयार कर सकेंगे।