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तकनीकी बदलाव

Last Updated- April 10, 2023 | 10:48 PM IST
SEBI

आर्टिफि​शियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कृत्रिम मेधा को व्यापक रूप से अपनाए जाने की ​स्थिति में न केवल उत्पादकता में सुधार होता है बल्कि रोजगार के रुझान में भी बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है।

हाल ही में गोल्डमैन सैक्स द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि कुल वै​श्विक रोजगार का 18 फीसदी यानी करीब 30 करोड़ रोजगार एआई से प्रतिस्थापित किए जा सकते हैं। ऐसा होने से अगले 10 वर्ष में वै​श्विक उत्पादकता में 1.5 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी होगी। एक दशक में यह रा​शि 7 लाख करोड़ डॉलर के बराबर होगी। हालांकि भारत ऐसे देशों में शामिल होगा जहां रोजगार पर अपेक्षाकृत कोई खास असर नहीं होगा, लेकिन हमारे यहां उत्पादकता लाभ भी कम होंगे। उत्पादकता वृद्धि केवल 0.7 फीसदी अंक हो सकती है जब​कि भारत के कुल काम में 11-12 फीसदी स्वचालित हो सकता है।

इसका असर मु​श्किल में डालने वाला हो सकता है। एक नई तकनीक से हासिल होने वाला कम उत्पादकता लाभ निराशाजनक हो सकता है जबकि रोजगार के अवसरों में 11-12 फीसदी की कमी का भी गहरा असर होगा। ऐसा इसलिए कि बेरोजगारी पहले ही काफी अ​धिक है। इसके बावजूद मौजूदा नीतिगत प्रतिक्रिया समझदारी भरी नजर आती है। हालांकि व्यापक रूप से एआई को अपनाने के राजनीतिक असर को देखते हुए इस पर सीमित नीतिगत जोर को कम करके आंका जा रहा हो।

केंद्रीय इलेक्ट्रॉ​निकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अ​श्विनी वैष्णव ने हाल ही में संसद को बताया कि सरकार की फिलहाल एआई के इस्तेमाल को लेकर वृद्धि संबंधी नियमन या कानून बनाने जैसी कोई मंशा नहीं है। हालांकि उन्होंने इससे जुड़े जोखिम और नैतिक चिंताओं को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकार ने जवाबदेह कृत्रि मेधा के मानकीकरण तथा बेहतर व्यवहार को अपनाने को लेकर प्रयास शुरू कर दिए हैं।

गोल्डमैन सैक्स के अध्ययन में जेनरेटिव एआई मसलन चैट जीपीटी आदि पर ध्यान ​केंद्रित किया गया है जिसने इसके काम के दायरे को बहुत अ​धिक बढ़ा दिया है। वि​भिन्न भाषाओं, स्वर और वीडियो आदि में सहज भाषाई निर्देशों की बदौलत इंसानों के समान सामग्री तैयार कर पाने की क्षमता के कारण जेनरेटिव एआई का उपयोग करना आसान है। इसके अलावा अध्ययन में खालिस अंकेक्षण क्षमता में हुए भारी इजाफे का भी हवाला दिया गया जो एआई द्वारा अपनाए जाने वाले जटिल कामों के तेज लाभ को सक्षम बनाता है।

वि​भिन्न सरकारी विभागों तथा अदालतों में होने वाले लिपिकीय काम का बड़ा हिस्सा स्वचालित तरीके से किया जा सकता है लेकिन इसके चलते कई स्थायी रोजगार समाप्त हो जाएंगे। जेनरेटिव एआई का अलगोरिद्म पहले ही तस्वीरों के वर्गीकरण तथा पाठ करने में मनुष्यों के औसत कौशल को पार कर चुका है।

अध्ययन में कहा गया है कि एआई आधारित स्वचालन का भारत पर न्यूनतम असर होगा। यह केन्या, वियतनाम, नाइजीरिया, चीन और थाईलैंड से ऊपर है। वहां 11 से 16 फीसदी काम प्रभावित होगा। सबसे अ​धिक असर हॉन्गकॉन्ग पर होगा और उसके बाद इजरायल, जापान, स्वीडन, अमेरिका और ब्रिटेन का स्थान आता है। इन देशों में 25 से 30 फीसदी काम स्वचालित हो सकते हैं। विकसित देश इससे अ​धिक प्रभावित होंगे जहां दो तिहाई तक काम किसी न किसी हद तक स्वचालित होंगे।

अमेरिका और यूरोप का विस्तार से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि 46 फीसदी कार्यालयीन और प्रशासनिक काम, 44 फीसदी वि​धिक काम और 37 फीसदी वास्तु एवं इंजीनियरिंग काम स्वचालित किए जा सकते हैं। इनमें से आ​खिरी आंकड़ा वाक​ई दिलचस्प है क्योंकि ये कौशल वाले रचनात्मक कार्य हैं जहां जटिल ग​णितीय आकलन तथा रेखांकन आदि की जरूरत होती है। अगर नियामकीय बंदिशें नहीं लगाई जाती हैं तो इससे भारत को एआई आधारित क्षमताएं विकसित करने में मदद मिलेगी।

बहरहाल, एआई की अपरिहार्यता को देखते हुए जरूरत इस बात की है कि नीतियों को ​सक्रिय बनाया जाए। देश की आईटी श्रम श​क्ति को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वह एआई को लेकर शोध करे, नीति निर्माताओं को उत्पादकता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए और वैक​ल्पिक रोजगार अवसर तैयार करने चाहिए। चूंकि बड़ी कंपनियां भारत में अपने क्षमता केंद्र स्थापित कर रही हैं इसलिए भारत के लिए भी अवसर है कि वह इस तकनीकी बदलाव का लाभ ले।

First Published - April 10, 2023 | 10:48 PM IST

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