जिन देशों को उदार साझा कानूनी परंपराएं इंगलैंड से विरासत में मिली हैं, वहां उनके भूभाग में जन्मे सभी लोगों को नागरिकता दी जाती है। न केवल यूनाइटेड किंगडम में, बल्कि भारत में और राष्ट्रमंडल समूह के अधिकांश देशों में के साथ-साथ अमेरिका में भी ऐसा ही है। यही कारण है कि लोगों को उस समय झटका लगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करके ‘जन्म के आधार पर नागरिकता’ पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में इस आदेश को कई लोगों ने कानूनी रूप से चुनौती दी। परंतु अब दक्षिणपंथियों के दबदबे वाली अमेरिकी सर्वोच्च अदालत ने कहा कि उन चुनौतियों में से कोई इतनी दमदार नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप के आदेश को पलटा जा सके। संक्षेप में कहें तो कुछ राज्य शायद जन्म के आधार पर नागरिकता को मान्यता दे सकते हैं तथा कुछ अन्य नहीं भी दे सकते।
30 दिन के भीतर प्रशासन देश के बड़े हिस्से में जन्म के आधार पर नागरिकता को प्रतिबंधित करना शुरू कर सकता है। अक्सर कहा जाता है कि दक्षिणपंथी नेता अपने देशों को पुराने काल खंड में वापस ले जाना चाहते हैं। इस कोशिश में कह सकते हैं कि इरादा है अमेरिका को 19वीं सदी में वापस ले जाने का क्योंकि उसके बाद ही वहां जन्म के आधार पर नागरिकता देने की शुरुआत की गई थी।
1898 में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने वॉन्ग किम अर्क के मामले में यह निर्णय दिया था। उनका जन्म 1870 के दशक में कैलिफोर्निया में चीनी माता-पिता की संतान के रूप में हुआ था। अमेरिकी अधिकारी चाहते थे कि उन्हें नागरिक न माना जाए लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि वह अमेरिका में पैदा हुए हैं इसलिए उन्हें एक नागरिक के सभी अधिकार हासिल हैं। तब से वहां यह कानून लागू है और इसने अमेरिका को एक सफल बहुजातीय समाज बनाने में मदद की है।
यकीनन यह बात ट्रंप के कुछ समर्थकों को नाराज भी करती है। ऐसी भी चिंताएं हैं कि कुछ लोग अपनी संतान के जन्म के कुछ समय पहले अमेरिका आ जाते हैं ताकि उनके बच्चे को यहां पैदा होने पर नागरिकता मिल जाए। इसके अलावा यह भी कि अवैध प्रवासियों के बच्चों को भी यहां नागरिकता मिल जाती है और ऐसे में उनके माता-पिता को वापस भेजने में समस्या आती है। परंतु यह कानून का संभावित दुरुपयोग असली समस्या नहीं है। असली समस्या यह तथ्य है कि कोई भी अमेरिकी नागरिक हो सकता है। फिर चाहे वह किसी भी नस्ल या वंश का हो।
अगर ट्रंप जन्म के आधार पर नागरिकता के कानून को खत्म करने में कामयाब हो जाते हैं (इसे अभी कई कानूनी चुनौतियां मिलेंगी) तो अमेरिका की पहचान और दुनिया में उसकी भूमिका में बहुत बड़ा बदलाव आएगा। लंबे समय से अमेरिका के बारे में सबसे आकर्षक बातों में से एक यह थी कि वह किसी भी जगह या संस्कृति से आने वाले लोगों को अपना लेता है और उन्हें वही अधिकार और अवसर देता है जो स्थानीय लोगों को। इससे अमेरिका का भला हुआ है।
उसने यह सुनिश्चित किया है कि वह विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में अग्रणी बना रहे और वित्तीय शक्ति और कारोबार का केंद्र बना रहे। उदाहरण के लिए सदी के आने वाले वर्षो में आर्थिक और राष्ट्रीय शक्ति के अधिकांश अनुमानों के मुताबिक अमेरिका चीन से आगे रहने वाला है क्योंकि वह बाहरी लोगों को जगह देता है जबकि चीन ऐसा नहीं करता। अमेरिका की कामयाबी पर दुनिया के तमाम देशों का बहुत कुछ दांव पर है क्योंकि उन सभी देशों की आबादी के कई लोग और रिश्तेदार अमेरिकी बन चुके हैं। इस बदलाव से अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व पर जो असर होगा, उसके लिए वह तैयार नहीं है।