शनिवार को भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हो गया और दोनों पक्षों ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। हालांकि ऐसी खबरें हैं कि पाकिस्तान ने शनिवार की रात संघर्ष विराम की शर्तों का उल्लंघन किया लेकिन उम्मीद यही है कि हालात सुधरेंगे और सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक अपने घरों को वापस लौट सकेंगे। दोनों देशों के नेतृत्व की सराहना होनी चाहिए कि आखिर उन्होंने मेलमिलाप किया। अगर संघर्ष लंबा छिड़ता तो यह किसी के पक्ष में नहीं होता।
बहरहाल अब जबकि दोनों पक्ष हालात का जायजा लेने के लिए वापस लौट चुके हैं तो यह भी ध्यान देने लायक है कि 22 अप्रैल के आतंकी हमले से काफी कुछ बदल चुका है। उस हमले में एक नेपाली नागरिक समेत 26 लोगों की जान गई थी। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वह ऐसे कदमों को बर्दाश्त नहीं करेगा। अपनी प्रतिक्रिया में भारत ने सैन्य उपायों के अलावा कूटनीतिक उपाय भी अपनाए। भारत ने सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया। 7 मई को भारत ने जो सैन्य कार्रवाई की वह नपी-तुली, सटीक निशाने पर और गैर उकसावे वाली थी। भारत ने 9 स्थानों पर आतंकी अधोसंरचना को निशाना बनाया। न तो किसी सैन्य परिसंपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और न ही नागरिकों को।
हालांकि, पाकिस्तान ने सैन्य और नागरिक स्थानों पर गोलाबारी शुरू कर दी जिससे परिसंपत्ति का भी नुकसान हुआ और जानें भी गईं। पाकिस्तान हालात को भड़काना क्यों चाहता है इसे समझना मुश्किल नहीं है। पहलगाम हमलों के पीछे का इरादा यही था कि भारत के साथ तनाव बढ़ाया जाए। अन्य बातों के अलावा इससे पाकिस्तान सरकार और सैन्य नेतृत्व को अपनी स्थिति मजबूत बनाने का मौका मिलता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वह ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रहता। यह देखना होगा कि पाकिस्तानी नेतृत्व किस हद तक, खासकर सैन्य मामले में इन लक्ष्यों को पाने में कामयाब रहा। पहलगाम हमलों पर भारत की प्रतिक्रिया ने जरूर उसे चौंकाया होगा और उम्मीद की जानी चाहिए कि यह एक डर या प्रतिरोधक का काम करेगी।
इसके बावजूद, यह माना सही नहीं होगा कि पाकिस्तान आतंकवाद को मदद पहुंचाना बंद कर देगा। इस बात की भी संभावना नहीं है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख अपना रुख बदलेंगे और 16 अप्रैल के अपने भाषण से अलग रुख अपनाएंगे। ऐसे में भारत को सतर्क रहना होगा। आतंकवाद के विरुद्ध हमारी जंग जारी रहेगी। भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने पर काम करना जारी रखना होगा, खुफिया नेटवर्क मजबूत करना होगा और सैन्य क्षमताओं में इजाफा करना होगा। हमें आतंकी हमलों को नाकाम करने के लिए हर वक्त तैयार रहना होगा और त्वरित प्रतिक्रिया देनी होगी। गत सप्ताह जो सीमित सैन्य संघर्ष हुआ उसमें ढेरों सूचनाएं और आंकड़े हासिल हुए होंगे जिनका इस्तेमाल अपने सशस्त्र बलों की तैयारी को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है। भारत को पाकिस्तान को अलग-थलग करने के कूटनीतिक प्रयास भी जारी रखने होंगे और यह भी कोशिश करनी होगी कि उसे आतंकवाद का समर्थन करने की ऊंची कीमत चुकानी पड़े।
इस संदर्भ में असली चुनौती यही है, जो गत सप्ताह भी दिखी कि पाकिस्तान में पूरा नियंत्रण सेना के हाथ में है और नागरिक सरकार के पास ज्यादा कुछ करने या कहने को नहीं है। खासकर पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व बड़ी तस्वीर को देखने की क्षमता नहीं रखता है, तथा उसका सीमित लक्ष्य है आंतरिक स्तर पर अपनी ताकत को मजबूत बनाए रखना। यह भी एक वजह है जिसके चलते पाकिस्तान में लोकतंत्र नहीं फल-फूल पाता। इसके परिणामस्वरूप नागरिक सरकार के पास ज्यादा शक्ति नहीं है और वह अहम नीतिगत निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। पाकिस्तान की नीतिगत दशा उसकी आर्थिक स्थिति और कूटनीतिक अलगाव में नजर आती है। जब तक रणनीतिक निर्णय सरकार के बजाय सेना लेती रहेगी तब तक भारत के लिए हालात चुनौतीपूर्ण बने रहेंगे। यह बात ध्यान देने लायक है कि पाकिस्तान के पास खोने को कुछ नहीं है। दूसरी ओर भारत के साथ आर्थिक आकांक्षाएं जुड़ी हुई हैं। आतंकवादी घटनाएं और सैन्य संघर्ष की संभावना कारोबारी माहौल को प्रभावित करती हैं। भारत को ऐसे हालात कम करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।