समाप्त हो रहे वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक वृद्धि सामान्य स्तर पर लौटती नजर आ रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के दूसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही में 6.5 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल कर पाई है जबकि पिछले वर्ष यह 9.2 फीसदी थी। वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 24 के बीच औसत वृद्धि दर 8.8 फीसदी थी। इसमें आंशिक योगदान महामारी वाले वर्ष के कम आधार का भी था। वित्त वर्ष 13 से वित्त वर्ष 20 के बीच औसत वृद्धि दर 6.6 फीसदी थी। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि कई लोगों ने अनुमान जताया था कि वृद्धि दर इस सप्ताह शुरू हो रहे वित्त वर्ष 26 में करीब 6.5 फीसदी रहेगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी 6.7 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान जताया है।
उम्मीद है कि वित्त वर्ष 26 में वृद्धि दर दीर्घावधि के औसत के करीब रहेगी, वर्ष की शुरुआत बाहरी मोर्चे पर जबरदस्त अनिश्चितता के बीच हो रही है। भारत और अमेरिका के बीच चार दिवसीय वार्ता में यह सहमति बनी है कि प्रस्तावित द्विपक्षीय समझौते को लेकर आगे क्या कदम उठाने हैं। आने वाले सप्ताहों में क्षेत्रवार संबद्धता की शुरुआत होने की उम्मीद है। हालांकि यह एक सकारात्मक बदलाव है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह आगामी दो अप्रैल से अमेरिका की ओर से प्रस्तावित बराबरी के शुल्क की कार्रवाई को रोकने के लिए पर्याप्त होगा या नहीं। चूंकि बराबरी के शुल्क के विचार को लागू करना अत्यधिक जटिल है इसलिए शायद इसकी शुरुआत चुनिंदा क्षेत्रों के साथ की जाए। बहरहाल, अमेरिकी व्यापार नीति अभी भी अनिश्चितता की बड़ी वजह है। अमेरिकी व्यापार नीति में संरक्षणवादी रुख अपनाए जाने और उसके व्यापारिक साझेदारों की ओर से संभावित प्रतिक्रियाएं न केवल व्यापार को प्रभावित करेंगी बल्कि विश्व स्तर पर निवेश और खपत मांग पर असर डालेंगी। इससे समग्र वैश्विक वृद्धि प्रभावित होगी।
देश विशेष को ध्यान में रखने वाले संभावित टैरिफ से इतर वैश्विक व्यापारिक तनाव तथा आर्थिक गतिविधियों पर उसका प्रभाव भी भारत के आर्थिक परिणामों को प्रभावित करेगा। बहरहाल, मौजूदा अनिश्चित माहौल में भारत के नीति निर्माताओं को इस तथ्य से राहत मिलेगी कि फिलहाल वृहद स्थिरता को अधिक जोखिम नहीं हैं। सरकार से उम्मीद है कि वह राजकोषीय समेकन के पथ पर बनी रहेगी और वित्त वर्ष 26 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 4.4 फीसदी पर सीमित रखेगी। खुदरा महंगाई में भी कमी आने की उम्मीद है जिससे मौद्रिक नीति समिति की ओर से और अधिक मौद्रिक सहजता की आशा है। बाहरी मोर्चे पर जहां चालू खाते का घाटा कम बना रहने की उम्मीद है वहीं निवेश से जुड़ी अनिश्चितताएं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की आवक पर असर डाल सकती हैं जो मुद्रा को प्रभावित करेगा। अमेरिका में संभावित उच्च मुद्रास्फीति नीतिगत ब्याज दरों को प्रभावित कर सकती है और इसका असर वैश्विक पूंजी प्रवाह पर पड़ सकता है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वित्त वर्ष 25 में केवल 2.7 अरब डॉलर मूल्य के शेयर और बॉन्ड खरीदे हैं जबकि पिछले वर्ष यह राशि 41 अरब डॉलर की थी।
वित्त वर्ष 26 में सबसे बड़ा जोखिम अमेरिकी व्यापार नीति की अनिश्चितता का है। एक बार स्पष्टता आने के बाद भारत में नीतिगत ध्यान वृद्धि को गति देने पर केंद्रित किया जाना चाहिए। आर्थिक समीक्षा इस बात को रेखांकित करती है कि अगर हमें 2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य पाना है तो करीब 8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करनी होगी। मौजूदा हालात में तो वृद्धि दर में यह इजाफा मुमकिन नहीं नजर आता। खासतौर पर वैश्विक माहौल को देखते हुए। इसका एक तरीका आर्थिक सुधारों को गति प्रदान करना हो सकता है। क्या वित्त वर्ष 26 अगली पीढ़ी के आर्थिक और शासन संबंध सुधारों की शुरुआत करेगा? इस सवाल का जवाब ही नए वर्ष तथा उससे आगे की अवधि के लिए वृद्धि के दायरे को आकार देगा।