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Editorial: बढ़ेगा विवाद- ट्रांसफर प्राइसिंग पर संसदीय समिति की रिपोर्ट के मायने

विधेयक के अंतिम संस्करण में सरकार को कर दायरे को बढ़ाते हुए विवेकाधिकार को कम करने पर ध्यान देना चाहिए।

Last Updated- July 24, 2025 | 10:05 PM IST
Income Tax

संसद की एक प्रवर समिति ने नए आय कर विधेयक पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है जो 1961 में बने मौजूदा कानून की जगह लेगा। उसने मसौदा विधेयक में कई बदलावों के सुझाव दिए हैं। इनमें अचल संपत्ति से होने वाली आय के आकलन से संबंधित सुझाव भी शामिल हैं। समिति ने नए विधेयक की स्पष्टता की तारीफ की है। इस विधेयक में 23 अध्यायों में 536 अनुच्छेद हैं। इसके साथ ही उसने कहा है कि कुछ क्षेत्रों में परिभाषा के स्तर पर अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है। यह चकित करने वाली बात है कि सांसदों ने आय कर अधिकारियों को दिए जा रहे अत्यधिक विवेकाधिकार को लेकर कोई बात नहीं कही है। उदाहरण के लिए यह चिंता की बात है कि समिति की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कर अधिकारियों की शक्तियों में विवादित वृद्धि का समर्थन करती है। ये शक्तियां उन्हें सोशल मीडिया अकाउंट, ऑनलाइन ऐप्स और व्यक्तिगत ईमेल तक पहुंच मुहैया कराती हैं।

यकीनन प्रस्तावित बदलावों से कुछ मामलों में अतिरिक्त विवेकाधिकार मिल जाएंगे। ट्रांसफर प्राइसिंग से जुड़ी जांच ऐसा ही एक क्षेत्र है। स्वाभाविक रूप से, यह महत्त्वपूर्ण है कि आयकर को नियंत्रित करने वाले कानून उचित मात्रा में कर का भुगतान करने से बचने के लिए मुनाफे को राष्ट्रीय सीमाओं या विभिन्न कंपनियों के बीच स्थानांतरित करने के प्रयासों की सही पहचान करें। ट्रांसफर प्राइसिंग का पारदर्शी और पूर्व अनुमान लगाना, कर चोरी कम करने तथा बेहतर और वृद्धिकारी कारोबारी माहौल तैयार करने की दिशा में अहम है। इस प्रयास के केंद्र में यह तय करना है कि कौन-सी कंपनियां या इकाइयां एक दूसरे से गहराई से जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए अगर एक फर्म का किसी दूसरी फर्म के निर्णयों पर वास्तव में प्रभाव है तो वह दूसरी फर्म को ऐसी ट्रांसफर प्राइसिंग अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती है ताकि दूसरी फर्म पर का बोझ कम हो। ऐसे संबद्ध उद्यमों का निर्धारण कैसे होता है स्वाभाविक रूप से यह बात महत्त्वपूर्ण है।

बहरहाल, संसद के समक्ष की गई सिफारिशें सुझाती हैं कि प्रबंधन,  नियंत्रण या पूंजी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी यह मानने के लिए पर्याप्त वजह है कि एक फर्म दूसरी से इतनी करीब है कि उसे ट्रांसफर प्राइसिंग की दृष्टि से संबद्ध उद्यम माना जाए। अभी अधिकांश मामलों में खास मानक हैं। इनमें से कुछ मात्रात्मक हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है। उदाहरण के लिए निदेशक मंडल का नियंत्रण या वोटिंग अधिकारों के साथ एक खास हिस्से तक अंशधारिता। ऐसा लगता है कि कानून निर्माता इन अनिवार्यताओं की जगह संबद्धता की आम परिभाषा लाना चाहते हैं। यह सही नहीं है। न केवल इसलिए क्योंकि इससे अधिक छानबीन होगी बल्कि इसलिए भी क्योंकि इससे कर अधिकारियों के विवेकाधिकार और बढ़ जाएंगे और वे सीमा पार भुगतान करने वाली कंपनियों के खिलाफ अधिक जांच कर सकेंगे।

देश के कर कानून में ऐसे बदलाव वैश्विक रुझानें के उलट होंगे और सीमा पार लेनदेन के बढ़ने में बाधा बनेंगे। विश्व भर में अब एक सर्वमान्य सिद्धांत यह है कि कर प्रणालियां अधिक नियम आधारित और कम विवेकाधीन हों। हालांकि अब प्रस्तावित ट्रांसफर प्राइसिंग मानक कर अधिकारियों को यह तय करने की अत्यधिक शक्ति दे रहे हैं कि संबद्ध उद्यम क्या हैं और किन लेनदेन की जांच ट्रांसफर प्राइसिंग के नजरिये से की जानी चाहिए।

कर चोरी में कमी लाने के पीछे जो भी तर्क हो और, निश्चित रूप से, भारत को ऐसे सिद्धांतों को लागू करने के लिए काम करना चाहिए जो ट्रांसफर प्राइसिंग को कम से कम करें। परंतु इस दौरान देश की अफसरशाही की वास्तविकता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। विवेकाधिकार में वृद्धि अनिवार्य रूप से उत्पीड़न और अधिक संख्या में कर दावों की ओर ले जाती है जिन पर विवाद हो सकता है। कभी-कभी तो यह सालों तक चल सकता है। विधेयक के अंतिम संस्करण में, सरकार को कर दायरा बढ़ाते हुए विवेकाधिकार को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह इस सिद्धांत पर दृढ़ता से टिके रहकर सबसे अच्छा किया जा सकता है कि प्रणाली पारदर्शी, पूर्वानुमान योग्य और नियम-आधारित होनी चाहिए।

First Published - July 24, 2025 | 9:53 PM IST

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