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Editorial: फेडरल रिजर्व के फैसले के गूढ़ अर्थ

शेयर और बॉन्ड बाजार दोनों में बिकवाली हुई। एसऐंडपी 500 भी 3 % गिरा। भारत में बेंचमार्क BSE Sensex में गुरुवार को 1.2 फीसदी की गिरावट आई।

Last Updated- December 19, 2024 | 9:50 PM IST
Brokerage firms' view on Federal Reserve's rate cut फेडरल रिजर्व की दर कटौती पर ब्रोकरेज फर्मों का नजरिया

बदलती नीतिगत वास्तविकता के मुताबिक ढलना अक्सर वित्तीय बाजारों के लिए मुश्किल होता है। बुधवार को अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) ने दरों में 25 आधार अंकों की कमी की। यह कमी वित्तीय बाजारों की अपेक्षाओं के अनुरूप ही थी। लेकिन शेयर और बॉन्ड बाजार दोनों में बिकवाली हुई। एसऐंडपी 500 में तीन फीसदी की गिरावट आई जबकि 10 वर्ष के अमेरिकी सरकारी बॉन्ड की यील्ड 13 आधार अंक बढ़कर 4.5 फीसदी हो गई जो कई महीनों का उच्चतम स्तर है। बॉन्ड कीमतें और यील्ड एक दूसरे से उलटी चाल चलते हैं। भारत में बेंचमार्क बीएसई सेंसेक्स में गुरुवार को 1.2 फीसदी की गिरावट आई। वित्तीय बाजारों में इस बिकवाली की प्राथमिक वजह एफओएमसी के संशोधित अनुमानों को माना गया। इसने दिखाया कि समिति को अब उम्मीद है कि फेडरल फंड दरों में 2025 में केवल 50 आधार अंकों की कमी होगी जबकि सितंबर में एक फीसदी कमी का अनुमान लगाया गया था।

इस बदलाव की वजह है मुद्रास्फीति। हालांकि मुद्रास्फीति की दर 2022 की ऊंचाइयों से काफी नीचे आई है लेकिन अभी भी यह फेडरल रिजर्व के मध्यम अवधि के दो फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है। संशोधित अनुमानों के मुताबिक 2025 में मुद्रास्फीति की दर सितंबर के अनुमान से 40 आधार अंक बढ़कर 2.5 फीसदी रह सकती है। कोर मुद्रास्फीति (खाद्य और ईंधन क्षेत्र से परे) के अनुमानों को भी संशोधित करके बढ़ाया गया है। सकारात्मक बात यह है कि एफओएमसी के सदस्यों ने वृद्धि और रोजगार के अनुमानों में भी अनुकूल संशोधन किया है। बहरहाल वित्तीय बाजार 2025 में दरों में अधिक कटौती पर दांव लगा रहे हैं। हालांकि इसकी संभावना बहुत कम है। मुद्रास्फीति के ऐसे नतीजों से परे वित्तीय बाजार डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाले नए प्रशासन की अनिश्चित संभावनाओं पर भी चिंतित है। उदाहरण के लिए ट्रंप तमाम वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाना चाहते हैं। उनका इरादा चीन जैसे चुनिंदा देशों पर ऊंचा शुल्क लगाने का भी है।

हालांकि दुनिया वास्तविक कार्रवाई पर नजर रखेगी लेकिन फेड के नजरिये से ऐसे कदम अपरिहार्य रूप से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ाएंगे जिसका असर उच्च मुद्रास्फीति में नजर आएगा। हालांकि मुद्रास्फीति पर शुल्क दरों का प्रभाव समय के साथ कम हो सकता है लेकिन यह फेड के काम को जटिल बना सकता है। ऐसे बदलाव वैश्विक वित्तीय बाजारों में भी अस्थिरता बढ़ाएंगे। तुलनात्मक रूप से ऊंची ब्याज दरें पूंजी प्रवाह को अमेरिका की ओर करेंगी और डॉलर को मजबूती देंगी। यह बात अन्य मुद्राओं पर, खासकर उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव डालेगी। फेड के निर्णय के बाद डॉलर सूचकांक दो वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। इसके परिणामस्वरूप शेयर बाजार में गिरावट के अलावा गुरुवार को भारतीय रुपये ने भी डॉलर के समक्ष 85 रुपये का मनोवैज्ञानिक अवरोध भंग कर दिया। रुपया अपेक्षाकृत स्थिर रहा है और वर्ष की शुरुआत से अब तक उसमें बमुश्किल दो फीसदी की गिरावट आई है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा हाल के महीनों में भारी बिकवाली के बावजूद ऐसा हुआ है क्योंकि रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में अच्छा खासा हस्तक्षेप किया है। रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर से अब तक करीब 50 अरब डॉलर कम हुआ है। हालांकि इसके लिए कुछ हद तक परिसंपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन भी वजह हो सकता है।

अमेरिका की नीतिगत संभावनाएं यही संकेत देती हैं कि कम से कम निकट भविष्य में रुपये पर दबाव रहेगा। रिजर्व बैंक के लिए बेहतर होगा कि वह बहुत अधिक विदेशी मुद्रा खर्च करके रुपये का बचाव न करे। वास्तव में रुपये की कीमत अब भी ज्यादा है और उसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है। इसके अलावा अगर दूसरे विकासशील देशों की मुद्राओं में मजबूत डॉलर के कारण गिरावट आती है तो अपेक्षाकृत मजबूत रुपया देश के कारोबार योग्य क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा पर असर डालेगी। इससे बचना चाहिए। बहरहाल, मुद्रा में अपेक्षित कमजोरी रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों और मौद्रिक नीति समिति की चर्चाओं में भी नजर आनी चाहिए। अमेरिकी नीतियों को लेकर आने वाले कुछ महीनों में स्पष्टता नजर आनी चाहिए।

First Published - December 19, 2024 | 9:50 PM IST

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