अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने बीते कुछ दिनों में अदाणी समूह से जुड़े मामले में नए आरोप लगाए हैं। इस बार उसके निशाने पर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) तथा उसकी चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच हैं। हिंडनबर्ग ने अदाणी मामले की जांच में सेबी की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं और आरोप लगाया है कि बुच और उनके पति धवल बुच ने एक ऐसे फंड में निवेश किया है जिसका इस्तेमाल अदाणी के शेयरों में पैसा लगाने में किया गया।
उसने यह आरोप भी लगाया है कि नियामक अचल संपत्ति से जुड़े निवेश ट्रस्टों को बढ़ावा दे रहा है क्योंकि धवल का जुड़ाव एक ऐसी बड़ी निजी इक्विटी फर्म से है जो देश के अचल संपत्ति बाजार में मजबूत उपस्थिति रखती है। यह आरोप भी लगाया गया कि सेबी चेयरपर्सन एक सलाहकार फर्म की मालकिन हैं। आरोपों के मूल में हितों के टकराव की बात है।
सेबी और बुच दंपती ने अलग-अलग वक्तव्य जारी किए और हिंडनबर्ग के सवालों के जवाब दिए हैं। मामले में शामिल पक्षों और जो कुछ दांव पर लगा है उसे देखते हुए शायद वे हर किसी को संतुष्ट नहीं कर पाएं। उदाहरण के लिए विपक्षी दलों ने पूरे मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग पर नए सिरे से जोर दिया है।
मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक नई याचिका दायर की गई है। यह ध्यान देने लायक है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई की थी और इस वर्ष जनवरी में ही उसने इस आरोप को खारिज कर दिया था कि सेबी मामले की जांच के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा। उसने यह भी कहा था कि नियामक ने 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी कर ली थी। सेबी ने अपनी ताजा प्रतिक्रिया में कहा है कि मार्च में एक और क्षेत्र में जांच पूरी कर ली गई है तथा शेष एक मामले की जांच पूरी होने को है।
इस मामले के समाप्त होने में जहां समय है, वहीं हिंडनबर्ग मामला कम से कम दो प्रमुख व्यवस्थागत मुद्दे सामने लाया है जिन पर बहस करना तथा जिन्हें हल करना आवश्यक है। पहला, अन्य आरोपों के बीच सबसे बड़ा आरोप यह था कि ऑफशोर फंडों की मदद से शेयर कीमतों में छेड़छाड़ की गई तथा सार्वजनिक शेयर धारिता के मानकों का उल्लंघन किया गया।
अब तक नियामक ने स्पष्ट नहीं किया है कि ऐसा है या नहीं। दुनिया के सबसे बड़े शेयर बाजारों में से एक के नियामक की ओर से यह एक गंभीर कमी नजर आती है। बहरहाल, उसने विदेशी फंडों के लिए प्रकटीकरण के मानक सख्त कर दिए हैं जिनके तहत एक खास सीमा को पार करने वाले फंडों को आर्थिक लाभार्थियों के नामों तथा फंड के स्वामित्व की जानकारी देनी होगी। अगर नियामक तथ्यों के साथ इन आरोपों को खारिज कर पाता तो बाजार को एक कड़ा संदेश जाता।
दूसरा मसला चेयरपर्सन तथा निर्णय प्रक्रिया से जुड़े अन्य अहम लोगों से संबंधित है। सेबी ने कहा है कि प्रकटीकरण को लेकर उसके पास एक ठोस व्यवस्था है। अहम लोगों के लिए प्रकटीकरण मानकों को मजबूत बनाने तथा भविष्य में किसी अटकल को समाप्त करने के लिए नियामक को ऐसे लोगों के वित्तीय हितों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए चुनावों में सभी उम्मीदवारों को अपनी वित्तीय जानकारी सार्वजनिक करनी होती है। ऐसा ही नियम वित्तीय नियामकों की नियुक्ति के लिए भी बनाया जा सकता है। इससे भरोसा मजबूत होगा। यह बेहतर ही होगा कि ऐसे लोग खुद को संस्थानों से दूर रखें जो बतौर नियामक उनके निर्णयों से प्रभावित हो सकते हैं। एक अन्य संबद्ध मुद्दा खुद नियुक्ति का है।
यह एक दुर्लभ अवसर था जब निजी क्षेत्र के एक व्यक्ति को सेबी का चेयरपर्सन बनाया गया। हालिया विवाद के कारण इसे बदला नहीं जाना चाहिए। ऐसे पद निजी क्षेत्र के लोगों और अफसरशाहों, दोनों के लिए खुले होने चाहिए और सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की नियुक्ति होनी चाहिए। फिलहाल नियामक को जांच पूरी करके नतीजों को जल्द से जल्द सार्वजनिक करना चाहिए।