जानकारी के मुताबिक वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद एक पैनल के गठन पर विचार कर रही है ताकि डेरिवेटिव (वायदा एवं विकल्प) कारोबार की अधिकता से उत्पन्न होने वाले संभावित जोखिमों का अध्ययन किया जा सके। वायदा एवं विकल्प या फ्यूचर और ऑप्शन कारोबार में तेज उछाल और इसमें खुदरा भागीदारी में इजाफे ने शायद व्यवस्था के लिए जोखिम बढ़ा दिया हो और अगर बड़े स्तर के उतार-चढ़ाव हुए तो इसके संक्रामक प्रभाव भी हो सकते हैं।
हालांकि जो थोड़ी-बहुत जानकारी है, उसके मुताबिक पैनल शायद खुदरा डेरिवेटिव कारोबारियों और उनकी मार्जिन फंडिंग के संभावित स्रोत पर ध्यान दे सकता है। वह इस संभावना की भी जांच करेगा कि क्या लोग व्यक्तिगत ऋण का इस्तेमाल इस प्रकार की ट्रेडिंग में मार्जिन की रकम के लिए कर रहे हैं। डेरिवेटिव ट्रेडिंग के मामले में भारत अन्य देशों से अलग नजर आता है।
देश में न केवल वायदा एवं विकल्प में सबसे ज्यादा कारोबार होता है बल्कि यहां डेरिवेटिव कारोबार की मात्रा का अनुपात भी नकद इक्विटी कारोबार की मात्रा की तुलना में खतरनाक रूप से बढ़ा हुआ है। भारतीय बाजार का सांकेतिक कारोबार नकद इक्विटी बाजार का 400 गुना से अधिक है। यह दूसरे बड़े उन वित्तीय बाजारों के उलट है जहां यह अनुपात आमतौर पर 10 से 15 गुना है।
वॉल्यूम का अधिक आकार खुदरा कारोबारियों की बढ़ती संख्या की वजह से है। इससे यह संभावना बनती है कि कारोबार का रिश्ता असुरक्षित ऋणों से हो सकता है। अगर यह सही है तो इससे भारी जोखिम की स्थिति बनती है और व्यापक वित्तीय क्षेत्र में संक्रमण फैल सकता है। 2023-24 में वायदा एवं विकल्प कारोबार का टर्नओवर एक साल पहले की तुलना में दोगुना हो गया।
2023 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 10 में से नौ खुदरा निवेशकों को वित्त वर्ष 2022 में पैसा गंवाना पड़ा। यह नुकसान प्रति कारोबारी 1.1 लाख रुपये का रहा। चूंकि खुदरा भागीदारी बढ़ी है और कारोबार का आकार 2022 से दोगुना से अधिक हो चुका है इसलिए अब प्रति व्यक्ति नुकसान भी अधिक होने की संभावना है।
नियामक को संदेह है कि कई खुदरा कारोबारी ऊंची ब्याज दर पर असुरक्षित व्यक्तिगत ऋण लेते हैं ताकि फ्यूचर और ऑप्शन कारोबार के लिए जरूरी मार्जिन दिया जा सके। यह चलन खासतौर पर उन गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में हो सकता है जिनकी अपनी ब्रोकरेज शाखा होती है और कई मामलों में ऐसी कंपनियां बैंकों से ऋण लेती हैं। यदि ऐसा मामला है तो जब कभी फ्यूचर और ऑप्शन में भारी उतार-चढ़ाव हुआ तो पूरे वित्तीय तंत्र के लिए बड़ा जोखिम खड़ा हो सकता है।
फ्यूचर कारोबार में जहां कोई संपति निर्मित या नष्ट नहीं होती है वहीं ऑप्शन कारोबार के साथ ऐसी बात नहीं है। ऑप्शन विक्रेता को असीमित नुकसान हो सकता है। यह भी संभव है कि औसत खुदरा विक्रेता नुकसान का बचाव करने में बहुत कुशल न हो। अगर खुदरा कारोबारी ऊंची ब्याज दर पर मार्जिन फंडिंग के लिए ऋण लेते हैं तो उन्हें अधिक नुकसान होगा। इसका कर्जदाताओं पर भी बुरा असर होगा।
बहरहाल, सेबी ने जोखिम के स्तर का आकलन करने की कोशिश की लेकिन वह उपाय कारगर नहीं रहा। इसे निजता का उल्लंघन भी माना गया। नियामक ने खुदरा डेरिवेटिव कारोबारियों की कुल संपत्ति का आकलन करने का प्रयास किया ताकि व्यवस्थागत जोखिम के स्तर का आकलन करके व्यक्तिगत कारोबारियों की विशुद्ध संपत्ति के आधार पर उनकी सीमा तय की जा सके।
भले ही यह विचार कारगर नहीं रहा हो लेकिन प्रस्तावित पैनल जोखिम कम करने के लिए बेहतर तरीके निकाल सकता है। वह वायदा एवं विकल्प क्षेत्र में अत्यधिक कारोबार की वजह का भी पता लगा सकता है। इस क्षेत्र के बारे में और अधिक आंकड़े तथा समग्र विश्लेषण मददगार साबित होगा। नियामक के लिए भी बेहतर होगा कि वह जागरूकता कार्यक्रम चलाए।