सरकारी स्वामित्व वाले मझगांव डॉक्स लिमिटेड (एमडीएल ) द्वारा 5.3 करोड़ डॉलर के सौदे के तहत कोलंबो डॉकयार्ड पीएलसी (सीडीपीएलसी) में बहुलांश हिस्सेदारी हासिल करने की घोषणा को हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के मजबूत होते समुद्री प्रभाव के रूप में देखा जाना चाहिए। भारतीय नौसेना के लिए युद्ध पोत और पनडुब्बियां तथा तेल उत्खनन के लिए प्लेटफॉर्म और पोत बनाने वाली एमडीएल देश की सबसे बड़ी रक्षा शिपयार्ड और एक नवरत्न कंपनी है। घाटे में चल रही और श्रीलंका की सबसे बड़ी पोत निर्माता और मरम्मत इकाई सीडीपीएलसी का प्रस्तावित अधिग्रहण एमडीएल के पोर्टफोलियो में अहम विस्तार करेगा।
इसके अतिरिक्त इसका शिपयार्ड गहरे पानी में स्थित कोलंबो बंदरगाह के करीब है जो माल के आवागमन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक सरकारी कंपनी के रूप में यह सौदा श्रीलंका में भारत की प्रतिष्ठा को मजबूत करने वाला है। ध्यान रहे कि चीन ने पहले ही श्रीलंका में काफी दखल कर लिया है। हंबनटोटा अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह समूह में पहले ही चीन की 85 फीसदी हिस्सेदारी है और उसने श्रीलंका के दक्षिण में स्थित बंदरगाह को 99 वर्ष की लीज पर लिया है।
एमडीएल और सीडीपीसीएल के बीच हुआ रणनीतिक सौदा भारत और श्रीलंका के अधिकारियों के बीच गहन चर्चा का परिणाम है। यह सौदा किसी निजी कंपनी के बजाय देश की एक प्रमुख सरकारी कंपनी के साथ हुआ और इसे भी एक अहम संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। यह बताता है कि गत वर्ष सितंबर में हुए चुनाव में अनुरा दिशानायके के जीतने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट बढ़ी है।
अपनी चीन समर्थक छवि से जुड़े अनुमानों के विपरीत दिशानायके ने श्रीलंका को सबसे अधिक कर्ज देने वाले चीन और भारत के बीच एक संतुलन कायम करने का प्रयास किया है। ध्यान रहे कि मुश्किल समय में भारत ने उसे आपात ऋण देने का बंदोबस्त किया था। भारत वह पहला देश था जहां दिशानायके राष्ट्रपति बनने के बाद विदेश यात्रा पर आए।
सीडीपीएलसी गत वर्ष नवंबर से ही मुश्किलों से जूझ रही है जब उसकी जापानी साझेदार ओनोमिची डॉकयार्ड कंपनी (51 फीसदी की हिस्सेदार) उस समय बाहर निकल गई जब श्रीलंका और जापान के बीच वित्तीय राहत संबंधी बातचीत विफल हो गई। कंपनी डिफॉल्ट का सामना कर रही थी और वहां छंटनी और बंदी के बादल मंडरा रहे थे जब संभावित खरीदार के रूप में कुछ अन्य कंपनियों के साथ एमडीएल का चयन किया गया। यह सौदा दोनों पक्षों के लिए लाभदायक नजर आता है।
सीडीपीएलसी के पास करीब 30 करोड़ डॉलर के ऑर्डर हैं और एमडीएल की तकनीक और भारतीय आपूर्ति श्रृंखला और बाजार उसके लिए अवसर लेकर आए हैं। एमडीएल भारतीय नौसेना के लिए तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियां और छह डीजल-बिजली चालित स्टेल्थ पनडुब्बियां बना रही है। सीडीपीएलसी का अधिग्रहण भारतीय कंपनी को विस्तार का अवसर देगा ताकि वह केवल भारतीय नौसेना के ऑर्डर पर निर्भर न रहे और पूर्वी एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोप और अफ्रीका के उन देशों के साथ कारोबार कर सके जहां श्रीलंकाई कंपनी का बाजार है।
उस लिहाज से देखें तो यह सौद भारतीय सरकारी कंपनी के लिए एक परीक्षा की तरह होगा कि वह विदेशी कारोबार को किस तरह संभाल पाती है। विदेशी कारोबारों में सरकारी कंपनियों का प्रदर्शन मिलाजुला रहा है। ओएनजीसी विदेश और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन जैसी कंपनियों के साथ ऊर्जा क्षेत्र में हम विदेश में काम कर रहे हैं।
रेल इंडियन टेक्निकल ऐंड इकनॉमिक सर्विस यानी राइट्स और डब्ल्यूएपीसीओएस (जल क्षेत्र की मशविरा फर्म) जैसी कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय मशविरा कार्यक्रमों में प्रतिस्पर्धी साबित हुई हैं। परंतु कई अन्य को दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा है जिसने देश के सरकारी क्षेत्र की राह मुश्किल की है। इन दिक्कतों में लालफीताशाही और तकनीकी ठहराव की भी भूमिका रही है। एमडीएल में ये कमियां नहीं हैं और वह किफायती प्रबंधन के लिए जानी जाती है। एक ऐसे क्षेत्र में जहां चीन के सरकारी उपक्रमों का दबदबा है वहां काफी कुछ इसकी कामयाबी पर भी निर्भर करेगा।