संपादकीय

Editorial: सेबी के कदम स्वागत योग्य

अब 25,000 करोड़ रुपये के बजाय 50,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति संभाल रहे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) से अधिक बारीक जानकारी मांगी जाएगी।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- March 25, 2025 | 10:14 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नए अध्यक्ष तुहित कांत पांडेय की अध्यक्षता में इसकी पहली बोर्ड बैठक में कुछ अहम कदम उठाए गए हैं। सोमवार की इस बैठक में सेबी बोर्ड के सदस्यों तथा अधिकारियों के हितों के टकराव से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा शुरू करने का औपचारिक फैसला लिया है। यह पहल दो कारणों से महत्त्वपूर्ण है। पहला, पांडेय ने हाल ही में एक सार्वजनिक टिप्पणी में हितधारकों के बीच भरोसे एवं पारदर्शिता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि यह बात सेबी पर भी लागू होती है। उन्होंने कहा कि सेबी को ज्यादा पारदर्शी होना चाहिए और इसके लिए योजना बनाई जाएगी। हालांकि यह अंश सेबी की वेबसाइट पर मौजूद भाषण में नहीं था मगर अब सेबी बोर्ड ने इस बारे में फैसला कर ही लिया है तो स्पष्ट है कि संस्था इस दिशा में बढ़ने के लिए कटिबद्ध है।

दूसरा कारण, इस कदम से पता चलता है कि बाजार नियामक बदलते हालात के मुताबक कदम उठाने से पीछे नहीं रहना चाहता। मत भूलिए कि सेबी की पिछली मुखिया माधवी पुरी बुच पर अमेरिका की शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने हितों के टकराव का आरोप लगाया था। उसने एक बड़े भारतीय औद्योगिक समूह के खिलाफ चल रही जांच का जिक्र कर यह आरोप लगाया था। इस आरोप के बाद बुच और सेबी ने बयान जारी किए थे। नियामक ने कहा था कि उसकी खुलासे की प्रक्रिया चाक-चौबंद है मगर इस समाचार पत्र सहित कई लोगों का कहना था कि उसे और मजबूत करने की जरूरत है। प्रतिभूति बाजार नियामक में प्रमुख व्यक्ति पर हितों के टकराव का आरोप लगने पर बाजार का भरोसा हिल सकता है, जिसके असर बहुत समय तक दिख सकते हैं।

सेबी बोर्ड ने इसीलिए उच्च-स्तरीय समिति के गठन का निर्णय लिया है, जो ‘बोर्ड सदस्यों एवं अधिकारियों के मामले में हितों के टकराव और संपत्ति, निवेश, देनदारी एवं संबंधित मामलों से जुड़े प्रावधानों’ की व्यापक समीक्षा करेगी। इस समिति में विशेषज्ञ और प्रख्यात लोग होंगे। गठन के तीन महीने के भीतर इसकी रिपोर्ट आने की उम्मीद है। आशा की जानी चाहिए कि रिपोर्ट सार्वजनिक भी की जाएगी ताकि इस पर खुलकर चर्चा हो सके। उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें अहम होंगी मगर यदि प्रमुख अधिकारियों के हित सार्वजनिक किए जाते हैं तो पूरी प्रक्रिया मजबूत होगी। दूसरे वित्तीय नियामक भी ऐसा ही कर सकते हैं। इससे नियामकीय संस्थाओं में प्रमुख अधिकारियों के हितों पर शंका उठाने की संभावना खत्म हो जाएगी और वित्तीय बाजार में भरोसा बढ़ेगा।

हितों के टकराव वाले मुद्दे के अलावा सेबी बोर्ड ने कई और महत्त्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय निर्णय लिए। मसलन अब 25,000 करोड़ रुपये के बजाय 50,000 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति संभाल रहे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) से अधिक बारीक जानकारी मांगी जाएगी। सीमा बढ़ने का मतलब है कि अधिकतर एफपीआई को कम खुलासे करने होंगे। इससे पूंजी की आवक बढ़ने की संभावना है। यह जरूर कहा जा सकता है कि सीमा बढ़ाने का काम चरणबद्ध तरीके से किया जाता। ऐसे बदलाव बाजार की फौरी जरूरतें देखकर नहीं किए जाने चाहिए। बहरहाल सेबी ने अच्छा फैसला यह किया कि किसी एक कारोबारी समूह में ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले एफपीआई के लिए यह ढील देने से इनकार कर दिया। बोर्ड ने दूसरी श्रेणी के वैकल्पिक निवेश फंडों के लिए नियम बदले, जिससे वे नियामक की शर्तें ज्यादा आसानी से पूरी कर पाएंगे। बाजार के ढांचे से जुड़ी संस्थाओं के प्रावधान बदलने से संचालन और मजबूत होना चाहिए।

First Published : March 25, 2025 | 10:08 PM IST