वित्तीय बाजारों के विश्लेषक और अर्थशास्त्री पिछले कुछ सप्ताह से यह बहस कर रहे थे कि क्या भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) नीतिगत रीपो दर में और कटौती करने की स्थिति में है। इस समाचार पत्र द्वारा सप्ताह के आरंभ में प्रकाशित एक पोल में कुछ विश्लेषकों ने उम्मीद जताई थी कि एमपीसी अगस्त की नीतिगत बैठक में नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती कर सकती है। बहरहाल, छह सदस्यीय एमपीसी ने बुधवार की बैठक में सर्वसम्मति से दरों को 5.5 फीसदी के वर्तमान स्तर पर यथावत रखने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के साथ आई टिप्पणी स्पष्ट संकेत देती है कि फिलहाल जो हालात हैं उनके मुताबिक समिति शायद मौजूदा चक्र में नीतिगत रीपो दर में और कटौती करने की स्थिति में न हो। जून के मुद्रास्फीति संबंधी आंकड़ों में गिरावट के बाद बाजार में उम्मीद जगी थी और सालाना मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान भी कम किए गए थे।
एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को 3.7 फीसदी से कम करके 3.1 फीसदी कर दिया है जो 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी कम है। बहरहाल, ऐसी कई वजह थीं जिनके चलते कोई भी समझदार केंद्रीय बैंक मौजूदा हालात में दरों में कटौती नहीं करता। पहली बात, यह याद करना उचित होगा कि मौद्रिक नीति का दूरदर्शी होना जरूरी है। ऐसे में जहां मौजूदा पूरे वर्ष के लिए मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को संशोधित करके कम किया गया है, वहीं चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति की दर के 4.4 फीसदी रहने का अनुमान है। अनुमान है कि 2026-27 की पहली तिमाही में यह बढ़कर 4.9 फीसदी तक पहुंचेगी। ऐसे में चूंकि मुद्रास्फीति की दर के आने वाली तिमाहियों में लक्ष्य से अधिक रहने की उम्मीद है और चूंकि यह वास्तविक नीतिगत दर को कम कर देगी, ऐसे में नीतिगत दरों में और कमी करना सही नहीं होता।
दूसरी बात, कम समग्र मुद्रास्फीति (सभी घटकों सहित) की दर में खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी योगदान है, खासतौर पर सब्जियों की कीमतों में। मुख्य मुद्रास्फीति (खाद्य एवं ईंधन जैसी उतार-चढ़ाव वाली वस्तुओं से इतर) की दर जून में 4.4 फीसदी थी। खाद्य कीमतों में कमी भी समग्र मुद्रास्फीति पर असर डालेगी। तीसरा, मौद्रिक नीति समिति ने दरों में हस्तक्षेप को पहले ही लागू कर दिया था। व्यवस्था में उसका प्रभाव अब दिख रहा है। चौथा, मौद्रिक नीति समिति ने वृद्धि अनुमानों को संशोधित नहीं किया। उसे उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5 फीसदी की दर से विकसित होगी। 2026-27 की पहली तिमाही में वृद्धि दर के 6.6 फीसदी रहने का अनुमान है। 2026-27 की पहली तिमाही में वृद्धि और मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए इस समय दरों में कटौती के पक्ष में तर्क देना मुश्किल है। इसके अलावा अनिश्चितता को देखते हुए यह हमेशा बेहतर होता है कि किसी तरह के नीतिगत रोमांच से बचा जाए। व्यापार संबंधी परिदृश्य की बात करें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत पर 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया है। रूस से तेल आयात करने के जुर्माने के रूप में भारत पर यह अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है। यह कदम और संबंधित अनिश्चितताएं वृद्धि और मुद्रास्फीति संबंधी परिदृश्य पर असर डालेंगी। देखना होगा कि हालात कब और कैसे बदलते हैं।
मौद्रिक नीति संबंधी निर्णयों के अलावा रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने नकदी प्रबंधन की भी बात की। रिजर्व बैंक ने हाल के महीनों में व्यवस्था में काफी नकदी डाली है। जून में नकद आरक्षित अनुपात में 100 आधार अंकों की कमी करने की घोषणा की थी जिसे चार चरणों में लागू किया जाना है। रिजर्व बैंक ने जुलाई में औसतन 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की अतिरिक्त नकदी को अवशोषित किया था। नकदी की आसान उपलब्धता मौद्रिक नीति के प्रभाव को लागू करने में मदद करती है। बहरहाल, यह प्रभाव पूरा होने पर रिजर्व बैंक को नकदी को लेकर बाजार के अनुमानों को दिशा देनी होगी। इसके साथ ही उसे संभावित अनचाहे परिणामों का भी आकलन करना होगा। वृद्धि को सहारा देने की बात करें तो रिजर्व बैंक ने अपना काम कर दिया है और बाहरी माहौल के कारण उत्पन्न समस्याओं के हल कहीं और तलाशने होंगे।