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Editorial: निवेश सुधार की मिली जुली तस्वीर

सीमित राजकोषीय क्षमताओं के बीच आर्थिक वृद्धि को मध्यम से दीर्घ अवधि तक बरकरार रखने के लिए निजी निवेश का रफ्तार पकड़ना जरूरी है।

Last Updated- August 21, 2024 | 9:20 PM IST
Private Investment

मांग के चार प्रमुख कारकों- निजी खपत, निवेश, सरकारी व्यय और निर्यात – में सरकारी व्यय, खासतौर पर पूंजीगत व्यय के माध्यम से होने वाले व्यय ने पिछले कुछ वर्षों में देश की आर्थिक वृद्धि में मुख्य योगदान किया है। उदाहरण के लिए इस वर्ष केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय आवंटन सकल घरेलू उत्पाद के 3.4 फीसदी के बराबर है। किंतु आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए लंबे अरसे तक सरकारी व्यय पर निर्भर नहीं रहा जा सकता क्योंकि केंद्र और राज्य के खजानों की भी सीमाएं हैं।

सीमित राजकोषीय क्षमताओं के बीच आर्थिक वृद्धि को मध्यम से दीर्घ अवधि तक बरकरार रखने के लिए निजी निवेश का रफ्तार पकड़ना जरूरी है। इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के हालिया आंकड़े दिखाते हैं कि विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता का इस्तेमाल बढ़ रहा है।

वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में क्षमता का इस्तेमाल एक दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यह 2021-22 की तीसरी तिमाही से ही लगातार 75 फीसदी के आसपास बना हुआ है। क्षमता के उच्च इस्तेमाल से आम तौर पर कारोबारों को उत्पादन क्षमता बढ़ाने का प्रोत्साहन मिलता है, जिससे नया निवेश भी आता है। लेकिन बिक्री के मुकाबले इन्वेंट्री यानी उत्पादों के स्टॉक का अनुपात महामारी से पहले की तुलना में काफी ऊंचा है। यह 2020-21 की पहली तिमाही में 113 फीसदी था और उस उच्चतम स्तर से घटकर 2023-24 की चौथी तिमाही में 65 फीसदी रह गया परंतु इसका लगातार ऊंचा स्तर बताता है कि उपभोक्ता मांग में अनिश्चितता और कमजोरी है।

क्षमता के बढ़ते इस्तेमाल और इन्वेंट्री का लगातार ऊंचा स्तर शायद बताता है कि खपत में वृद्धि अनुमान से सुस्त है। यह देखकर शायद कंपनियां फौरन बड़ा निवेश करने के लिए तैयार नहीं होंगी। इस समाचार पत्र में बुधवार को प्रकाशित समाचार का उदाहरण लें तो देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजूकी अपने उत्पादन में कतरब्योंत कर रही है ताकि डीलरों के पास पड़ा कारों का स्टॉक कम हो सके।

इसके अलावा रिजर्व बैंक के नए मासिक बुलेटिन में यह भी कहा गया है कि भारत के विनिर्माण क्षेत्र के पास अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं मसलन ब्राजील और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक रिक्त क्षमता है यानी अधिक क्षमता इस्तेमाल के बगैर पड़ी है। रिक्त क्षमता वह है, जिसका इस्तेमाल मांग बढ़ने पर करने से अतिरिक्त उत्पादन किया जा सकता है।

देश के विनिर्माण क्षेत्र के पास सेवा क्षेत्र के मुकाबले अधिक रिक्त क्षमता है। इसका अर्थ है कि मांग सुधरने पर उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है। सकारात्मक पहलू देखें तो कंपनियों और बैंकों की बैलेंस शीट अच्छी स्थिति में हैं और इनसे निजी निवेश में सुधार को मदद मिलनी चाहिए। मूडीज रेटिंग्स के अनुसार भारतीय कंपनियां क्षमता विस्तार के साथ अगले एक-दो साल में 45 से 50 अरब डॉलर सालाना निवेश कर सकती हैं।

यह व्यय विभागों को एक साथ लाने, नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के प्रयासों के कारण होगा। मूडीज का अनुमान यह भी है कि भारत में जिन कंपनियों को वह रेटिंग देती है, उनका कुल मुनाफा अगले दो वर्ष में सालाना 5 फीसदी दर से बढ़ेगा। विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली व्यापक वृद्धि से इसमें मदद मिलेगी।

बैंक ऋण से संबंधित आंकड़े यह भी बताते हैं कि निवेश के मोर्चे पर गतिविधियां सुधरी हैं। मगर यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि व्यापक निजी निवेश में सुधार हो रहा है। क्षमता का इस्तेमाल बढ़ा है लेकिन उद्योग के पास इन्वेंट्री भी बहुत अधिक है। ऐसे में काफी कुछ इस बात पर निर्भर होगा कि निजी खपत मांग आने वाली तिमाहियों में किस तरह बढ़ती है।

मॉनसून अच्छा होने और ग्रामीण मांग पटरी पर आने से मदद मिल सकती है परंतु निवेश को वैश्विक कारण भी प्रभावित करेंगे। बढ़े हुए भूराजनीतिक तनाव, व्यापार में उथलपुथल और विकसित देशों में मांग में कमी की संभावना निर्यात मांग और निवेश में रोड़ा अटकाएगी। चीन में काफी अतिरिक्त क्षमता भी भारत में निवेश पर खास तौर पर निर्यात करने वाले क्षेत्रों में निवेश पर असर डालेगी।

First Published - August 21, 2024 | 9:20 PM IST

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