facebookmetapixel
कनाडा पर ट्रंप का नया वार! एंटी-टैरिफ विज्ञापन की सजा में 10% अतिरिक्त शुल्कदेशभर में मतदाता सूची का व्यापक निरीक्षण, अवैध मतदाताओं पर नकेल; SIR जल्द शुरूभारत में AI क्रांति! Reliance-Meta ₹855 करोड़ के साथ बनाएंगे नई टेक कंपनीअमेरिका ने रोका Rosneft और Lukoil, लेकिन भारत को रूस का तेल मिलना जारी!IFSCA ने फंड प्रबंधकों को गिफ्ट सिटी से यूनिट जारी करने की अनुमति देने का रखा प्रस्तावUS टैरिफ के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत, IMF का पूर्वानुमान 6.6%बैंकिंग सिस्टम में नकदी की तंगी, आरबीआई ने भरी 30,750 करोड़ की कमी1 नवंबर से जीएसटी पंजीकरण होगा आसान, तीन दिन में मिलेगी मंजूरीICAI जल्द जारी करेगा नेटवर्किंग दिशानिर्देश, एमडीपी पहल में नेतृत्व का वादाJio Platforms का मूल्यांकन 148 अरब डॉलर तक, शेयर बाजार में होगी सूचीबद्धता

Editorial: जेन स्ट्रीट मामला- खतरे की घंटी अनसुना करता मुनाफे का लालच

सेबी के कई अध्ययन बताते हैं कि 90 फीसदी से अधिक खुदरा ट्रेडर्स को वायदा एवं विकल्प क्षेत्र में अपना पैसा गंवाना पड़ता है।

Last Updated- July 20, 2025 | 10:59 PM IST
PI Industries

हेज फंड जेन स्ट्रीट के विरुद्ध नियामकीय कदम ने इक्विटी डेरिवेटिव्स बाजार की ओर नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया है। अभी इस मामले पर कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी क्योंकि हेराफेरी के आरोपों और जेन स्ट्रीट के कीमतों के आर्बिट्राज (कीमतों में अंतर का लाभ) के दावों की पुष्टि होनी बाकी है। इसके बावजूद यह तो स्पष्ट है कि इक्विटी बाजार के नकद और डेरिवेटिव्स क्षेत्र के बीच असंतुलन है और हेज फंड तथा अनुभवी व्यापारी इसी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। जैसा कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हाल ही में कहा भी डेरिवेटिव्स बाजार का नॉमिनल टर्नओवर नकद बाजार से 350 गुना था और यह कोई सामान्य हालात नहीं है। देश का कुल बाजार पूंजीकरण जहां उसे आकार में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा शेयर बाजार बनाता है वहीं उसका डेरिवेटिव्स बाजार मात्रा के मुताबिक दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है।

खुदरा ट्रेडर्स बेहतर रिटर्न की उम्मीद में बड़ी संख्या में वायदा एवं विकल्प कारोबार में पैसा लगाते हैं। हालांकि, सेबी के कई अध्ययन बताते हैं कि 90 फीसदी से अधिक खुदरा ट्रेडर्स को वायदा एवं विकल्प क्षेत्र में अपना पैसा गंवाना पड़ता है। वर्ष2024-25 में उनका समग्र नुकसान 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक था।

डेरिवेटिव्स एक ऐसा क्षेत्र है जहां कुछ ट्रेडर्स को जितना लाभ होता है बाकियों को उतना ही नुकसान होता है। इस आकलन में विनिमय शुल्क और करों को हटाया जा सकता है। यह सच है कि इस धन को शेयरों जैसी अधिक उत्पादक परिसंपत्तियों में निवेश के माध्यम से दीर्घावधि पूंजी वृद्धि को लक्षित करने में अधिक लाभप्रद ढंग से लगाया जा सकता है, बजाय इसके कि इसे विकल्पों जैसी परिसंपत्तियों में लगाया जाए, जिनमें एक निश्चित तारीख पर सौदे काटने ही होते हैं। यही वजह है कि नियामक ने खुदरा कारोबारियों को कई चेतावनियां दीं और उन्हें डेरिवेटिव्स कारोबार के जोखिमों बारे में बताया। खबरों के मुताबिक तो वह कहीं अधिक व्यापक जागरूकता अभियान भी शुरू करने वाला है। वह शायद एक्सपायरी के दिन कारोबार पर नियंत्रण लागू करने के उपायों पर भी विचार कर रहा है। यह खुदरा ट्रेडर्स में डेरिवेटिव्स कारोबार लोकप्रिय है। विकल्प अपनी एक्सपायरी के थोड़ा पहले काफी सस्ते हो जाते हैं। ऐसे में ट्रेडर्स के पास गुंजाइश अधिक होती है और कीमतों में मामूली फेरदबल भी भारी लाभ और हानि की वजह बन सकते हैं।

हालांकि कई बातें हैं जिन पर नियामक को ध्यान देना होगा और उसके बाद ही वह नए उपायों की घोषणा कर सकेगा। उसने नवंबर 2024 में डेरिवेटिव्स में सटोरिया गतिविधियां नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए और उनका असर हुआ क्योंकि उसके बाद से कुल वॉल्यूम में कमी आई है। अधिक नियंत्रण और हेज फंडों के परिचालन की निगरानी के कारण भविष्य में मात्रा में और कमी आ सकती है। ऐसे में वायदा एवं विकल्प बाजार के लिए उपयोगी लक्ष्यों को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा। उदाहरण के लिए आर्बिट्राज की अपनी व्यवस्था के माध्यम से मूल्य खामियों को दूर करना, लागत की दृष्टि से बेहतर हेजिंग संभावनाएं तैयार करना और इक्विटी बाजार के लिए गहराई तैयार करना। इस संदर्भ में खरीदार के लिए सावधान रहने वाली पुरानी चेतावनी सामने आती है। जो लोग पैसा गंवाते हैं उन्हें पता होता है कि वे पैसा गंवा चुके हैं और हर डेरिवेटिव्स कारोबार प्लेटफॉर्म अब उपयुक्त चेतावनी जारी करते हैं। अगर खुदरा ट्रेडर्स जोखिम लेना ही चाहते हैं तो शायद नियामक के लिए उनको रोकना उचित नहीं होगा बशर्ते कि बाजार की स्थिरता प्रभावित न हो रही हो। नियामक निरंतर शैक्षणिक अभियानों के जरिये जागरूकता फैलाता रह सकता है।

इसके अतिरिक्त यह तर्क दिया गया है कि असंतुलित मात्रा अनुपातों की एक वजह नकद इक्विटी में लीवरेज की कमी और सेकंडरी बॉन्ड बाजार में गतिविधि का अभाव है। इसलिए यह सही है कि डेरिवेटिव्स में वॉल्यूम असामान्य है। बहरहाल अगर बाजार प्रणाली और नियामक, डेट और इक्विटी बाजार दोनों में नकद बाजार टर्नओवर सुधारने पर ध्यान दें तो असंतुलन दूर होना शुरू हो जाएगा।

First Published - July 20, 2025 | 10:59 PM IST

संबंधित पोस्ट