सूचना प्रौद्योगिकी सेवा क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने रविवार को घोषणा की कि कंपनी वैश्विक स्तर पर अपने मझोले और वरिष्ठ कर्मचारियों की संख्या में दो फीसदी की छंटनी करने जा रही है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कंपनियां खासकर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियां कारोबारी माहौल में बदलाव को लेकर किस प्रकार प्रतिक्रिया दे रही हैं। टीसीएस की इस घोषणा का अर्थ है कि वह अपने कुल 6 लाख कर्मचारियों में से करीब 12,000 की छंटनी करेगी। कंपनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि वह स्वयं को भविष्य के लिए तैयार कर रही है। इसमें नई तकनीक के क्षेत्रों में निवेश और बड़े पैमाने पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल शामिल है। इनका इस्तेमाल कंपनी अपने उपभोक्ताओं के लिए भी करेगी और अपने स्तर पर भी। हालांकि यह आंशिक तौर पर चुनौतीपूर्ण कारोबारी माहौल की बदौलत भी हो सकता है लेकिन विश्लेषक इस कदम की व्याख्या एआई के कारण हो रहे ढांचागत बदलाव के रूप में कर रहे हैं।
यकीनन कई बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां मसलन माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम और इंटेल ने भी अपने-अपने कर्मचारियों की तादाद कम करने की योजनाओं की घोषणा की है। इस रुझान को समझने में चूक नहीं की जा सकती है। प्रौद्योगिकी जगत तेजी से बदल रहा है और एआई को अपनाने तथा उसकी वृद्धि के साथ न केवल प्रौद्योगिकी कंपनियां बल्कि तमाम क्षेत्रों के कारोबार इसे अपना रहे हैं। इस संदर्भ में टीसीएस प्रबंधन की सराहना की जानी चाहिए कि वह भविष्य की तैयारी कर रहा है और तेजी से बदलते माहौल में प्रासंगिक बने रहने के लिए कड़े निर्णय लेने को तैयार है। केवल वही संगठन मूल्यवर्धन करने, रोजगार तैयार करने और दीर्घावधि में वृद्धि में योगदान कर पाएंगे जो तेजी से बदलते तकनीकी और कारोबारी माहौल को अपनाने के लिए तैयार हों। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि तकनीकी चुनौतियों के अलावा वैश्विक कारोबारी माहौल भी अनुकूल नहीं है। अमेरिका द्वारा अपनाई गई नीतियों से उपजी अनिश्चितता दुनिया भर में निवेश को प्रभावित कर रही है।
बहरहाल, एआई को अपनाने से कारोबार में बहुत परिवर्तन आ रहा है और भारत जैसे देश के लिए नीतिगत चुनौतियां भी उत्पन्न हो रही हैं क्योंकि भारत को बड़े पैमाने पर रोजगार तैयार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए एक बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने हाल ही में इस समाचार पत्र से कहा कि वे ऐसे बिंदु पर पहुंच रहे हैं जहां एक ही मॉडल कई ऐसे काम में सहायता करेगा जिन्हें केवल इंसान कर सकते हों। एक बार जब कारोबार ऐसे मॉडल को अपना लेंगे तो वे बहुत बड़े पैमाने पर इंसानों की जगह लेने लगेंगे। परिणामों के मामले में एआई या स्वचालन को अपनाना संतुलन को श्रम के बजाय पूंजी के पक्ष में और अधिक झुका देगा। हालांकि कई क्षेत्रों में यह पहले ही हो रहा है लेकिन मध्यम अवधि में इसमें बहुत अधिक इजाफा होने वाला है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भारत जैसे देश में नीतिगत स्तर पर इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया दी जानी चाहिए? दुर्भाग्यवश इनके कोई आसान उत्तर नहीं हैं। नीतियां कंपनियों को तकनीक को अपनाने से नहीं रोक सकती हैं क्योंकि उनके प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए ये आवश्यक हैं। बहरहाल, इससे इंसानी श्रम की मांग जरूर कम होगी।
यकीनन इनके प्रबंधन और संचालन के लिए जरूर प्रतिभाओं की जरूरत होगी। भारत को इन क्षेत्रों में अपनी विशाल तकनीकी श्रम शक्ति को नए सिरे से निर्देशित करके शायद फायदा हो सकता है। शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रशिक्षण को भी अनुकूलित करने की जरूरत हो सकती है। प्रौद्योगिकी को अपनाने से विभिन्न प्रकार के कार्य भारत आ सकते हैं। बेशक ये सब केवल संभावनाएं हैं और कुछ भी तय ढंग से नहीं कहा जा सकता है। इस समय यकीनन एक व्यापक नीतिगत बहस की आवश्यकता है कि भारत व्यापारिक गुटबाजी और प्रौद्योगिकी द्वारा तेजी से श्रम का स्थान लेने की बढ़ती संभावनाओं के माहौल में जनांकिकी का लाभ कैसे उठा सकता है।