अपने उभरते बाजार स्थानीय मुद्रा सरकारी बॉन्ड सूचकांक और संबंधित सूचकांकों में पूरी तरह से सुलभ मार्ग (एफएआर) के तहत जारी किए गए भारतीय सरकारी बॉन्डों को शामिल करने के ब्लूमबर्ग के फैसले से भारतीय ऋण बाजार को काफी मजबूती मिलेगी। 31 जनवरी, 2025 से शुरू होकर अगले 10 महीनों में इन बॉन्ड को सूचकांकों में शामिल किया जाएगा। जेपी मॉर्गन के बाद ब्लूमबर्ग अपने उभरते बाजार बॉन्ड सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉन्ड को शामिल करने वाला दूसरा प्रमुख वैश्विक सूचकांक प्रदाता होगा। जेपी मॉर्गन इंडेक्स में जून 2024 से भारतीय बॉन्डों को शामिल किया जाएगा।
जेपी मॉर्गन के तुरंत बाद ब्लूमबर्ग सूचकांक, जिसे कि ज्यादा व्यापक रूप से देखा जाता है, में शामिल करने से भारतीय बाजार में 2 से 3 अरब डॉलर का निवेश आने की उम्मीद है और यह उन बड़े अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा बढ़ाने वाला कदम साबित होगा जो अपनी ऋण होल्डिंग को विविधता देना चाहते हैं। इससे आगे चलकर ऋण बाजार में ऊंचा निवेश प्रवाह आएगा।
केंद्रीय बजट 2020-21 में यह ऐलान किया गया था कि केंद्र सरकार की कुछ श्रेणियों की प्रतिभूतियों को बिना किसी रोकटोक के गैर निवासी निवेशकों के लिए खोला जाएगा, जिसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने एफएआर के तहत सिक्योरिटी जारी करना शुरू किया। उम्मीद के मुताबिक ही इससे वैश्विक सूचकांकों में भारत सरकार के बॉन्डों को शामिल करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
सैद्धांतिक रूप से देखें तो बॉन्डों को सूचकांकों में शामिल करने के कई फायदे हैं। इससे विदेशी बचत का बड़ा प्रवाह आएगा जिससे न केवल सरकार को अपने राजकोषीय घाटे की भरपाई करने में मदद मिलेगी, बल्कि चालू खाते के घाटे की भरपाई में भी आसानी होगी। इन सूचकांकों की निगरानी करने वाले फंड निष्क्रिय प्रकृति के हैं और इनसे आने वाला प्रवाह सक्रियता से प्रबंधित कोषों के मुकाबले ज्यादा स्थायी माना जाता है।
आगे चलकर एफएआर के तहत और प्रतिभूतियां जारी की जाएंगी, और चूंकि बजट घाटे के कुछ हिस्से की भरपाई विदेशी बचत से होगी तो इससे घरेलू बचत पर दबाव कम हो जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था की कुल उधारी लागत में कमी लाने में मदद मिलेगी। व्यापक स्तर पर देखें तो वैश्विक सूचकांकों में सरकारी बॉन्डों को शामिल करना भारत के वृहद आर्थिक ताकत में भरोसे को भी बताता है। भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से है जिसमें वृहद आर्थिक स्थिरता भी है।
भारत के पास बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भी रहता है, जिससे विदेशी मोर्चे पर स्थिरता बनाए रखने में मदद मिली है, हाल में अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा नीतिगत सख्ती के दौर में इसका प्रमाण भी मिला। साल 2024 में अब तक भारतीय ऋण बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने करीब 5 अरब डॉलर का निवेश किया है। वैसे तो सूचकांक में शामिल होने के कई फायदे हैं, लेकिन यह गौर करना अहम होगा कि ऋण बाजार में ज्यादा विदेशी निवेश से कई तरह के जोखिम भी बढ़ सकते हैं।
जैसा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि सूचकांक में शामिल होना एक दोधारी तलवार की तरह है। वैसे तो निकट अवधि में सूचकांकों में भार बढ़ने और इन सूचकांकों की निगरानी करने वाले प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियों में वृद्धि होने से प्रवाह में वृद्धि होगी, लेकिन यदि सूचकांक प्रदाताओं द्वारा भारत का भार कम किया जाता है तो इसका विपरीत भी हो सकता है। ऐसे हालात में विदेशी कोष भारतीय प्रतिभूतियों से निकल जाएंगे और इससे उधारी की लागत तथा भारतीय रुपया, दोनों पर दबाव बढ़ेगा।
एफएआर के तहत अधिक निर्गम जारी होना, जो कि विदेशी निवेशकों के लिए एक तरलता वाला बाजार बनाने के लिए जरूरी होगा, दबाव के समय अस्थिरता को बढ़ा सकता है। इसका मतलब यह है कि अधिक विदेशी निवेश के लिए बेहतर और ज्यादा चुस्त वृहद आर्थिक प्रबंधन की जरूरत होगी।
संक्षेप में कहें तो भारत को कम और स्थिर मुद्रास्फीति के साथ-साथ कम राजकोषीय और चालू खाता घाटा बनाए रखने का लक्ष्य रखना होगा। वैसे तो इसे लगातार कम किया जा रहा है, लेकिन इस संदर्भ में उच्च सरकारी बजट घाटा एक नाजुक बिंदु बना हुआ है। मुद्रा की अस्थिरता पर काबू पाने के लिए रिजर्व बैंक को विदेशी मुद्रा प्रवाह का भी सक्रियता से प्रबंधन करना होगा।
