facebookmetapixel
₹9 का शेयर करेगा आपका पैसा डबल! वोडाफोन आइडिया में दिख रहे हैं 3 बड़े ब्रेकआउट सिग्नलपोर्टफोलियो को चट्टान जैसी मजबूती देगा ये Cement Stock! Q2 में 268% उछला मुनाफा, ब्रोकरेज ने बढ़ाया टारगेट प्राइससरकार फिस्कल डेफिसिट के लक्ष्य को हासिल करेगी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जताया भरोसाBilaspur Train Accident: बिलासपुर में पैसेंजर ट्रेन-मालगाड़ी से भिड़ी, 4 की मौत; ₹10 लाख के मुआवजे का ऐलानAlgo और HFT ट्रेडिंग का चलन बढ़ा, सेबी चीफ ने मजबूत रिस्क कंट्रोल की जरूरत पर दिया जोरमहाराष्ट्र में 2 दिसंबर को होगा नगर परिषद और नगर पंचायत का मतदानउत्तर प्रदेश में समय से शुरू हुआ गन्ना पेराई सत्र, किसानों को राहत की उम्मीदछत्तीसगढ़ के किसान और निर्यातकों को मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान, फोर्टिफाइड राइस कर्नल का किया पहली बार निर्यातBihar Elections: दूसरे चरण में 43% उम्मीदवार करोड़पति, एक तिहाई पर आपराधिक मामले; जेडीयू और कांग्रेस भाजपा से आगेIndiGo Q2FY26 results: घाटा बढ़कर ₹2,582 करोड़ पर पहुंचा, रेवेन्यू 9.3% बढ़ा

संपादकीय: भारत के खाद्य खपत में हो रहा बदलाव

खाद्य उत्पादों का कुल घरेलू व्यय ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में काफी कम हुआ है। पहली बार खाद्य क्षेत्र का औसत घरेलू व्यय परिवारों के समग्र मासिक व्यय के आधे से भी कम है।

Last Updated- September 11, 2024 | 9:45 PM IST
सरकार ने थोक पैकिंग वाली वस्तुओं पर अनिवार्य लेबलिंग का प्रस्ताव रखा, जनता से मांगी राय, Govt proposes mandatory labelling for bulk pre-packaged commodities

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रकाशित एक नए कार्यपत्र ‘भारत के खाद्य उपभोग में बदलाव और उसके नीतिगत निहितार्थ: घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण 2022-23 और 2011-12 का एक व्यापक विश्लेषण’ ने देश के खाद्य उपभोग संबंधी रुझानों के दिलचस्प पहलुओं पर प्रकाश डाला है।

घरेलू खपत व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2011-12 और 2022-23 के आंकड़ों की तुलना बताती है कि देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी इलाकों में घरेलू स्तर पर औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MCPE) में महत्त्वपूर्ण इजाफा हुआ है। वास्तव में ग्रामीण परिवारों के एमपीसीई में 164 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि शहरी इलाकों के परिवारों का एमपीसीई 146 फीसदी बढ़ा।

इसके अलावा औसत एमपीसीई में शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच का अंतर 13 फीसदी कम हुआ। इस संदर्भ में पर्चे ने खाद्य खपत रुझानों में बदलावों को अच्छी तरह दर्ज किया है। भारत जैसे विकासशील देश में यह घरेलू व्यय का बड़ा हिस्सा है।

आंकड़े आगे दिखाते हैं कि खाद्य उत्पादों का कुल घरेलू व्यय ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में काफी कम हुआ है। पहली बार खाद्य क्षेत्र का औसत घरेलू व्यय परिवारों के समग्र मासिक व्यय के आधे से भी कम है। इससे संकेत मिलता है कि तमाम परिवारों की स्थिति में सुधार हुआ है। यह बात ऐंजल कर्व परिकल्पना के अनुरूप ही है जो यह मानती है कि किसी परिवार की आय बढ़ने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों पर होने वाला व्यय कम होता है।

एचसीईएस के आंकड़े न केवल भारतीयों के कुल व्यय में खाद्य उत्पादों की हिस्सेदारी में गिरावट की ओर संकेत करते हैं बल्कि वे यह भी बताते हैं कि खाद्य व्यय के घटकों में बदलाव आया है। अनाज से दूध और दुग्ध उत्पादों, ताजे फलों, अंडों, मछली और मांस की ओर। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो खाद्य खपत बास्केट कैलरी वाले भोजन से प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों वाले भोजन की ओर जा रही है। व्यापक स्तर पर खाद्य खपत रुझानों में बदलाव को देखते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के भार में संशोधन का मामला बनता है।

बहरहाल, इस कवायद को अंजाम देने के पहले समझदारी यही होगी कि 2023-24 के एचसीईएस के परिणामों की प्रतीक्षा की जाए जो अगले वर्ष के आरंभ में आने हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि अनाजों पर होने वाले व्यय में कमी उन परिवारों में अधिक है जो आय वितरण के निचले 20 फीसदी में आते हैं। ऐसे ही रुझान प्रति व्यक्ति घरेलू स्तर पर विभिन्न खाद्य पदार्थों की वास्तविक मात्रा के लिए भी देखने को मिले। यह न केवल भोजन में विविधता की ओर संकेत करता है बल्कि इस बात को भी रेखांकित करता है कि सरकार के खाद्य सुरक्षा संबंधी प्रयास प्रभावी हैं क्योंकि इसके चलते गरीबों और वंचित परिवारों को अपना बचत व्यय अनाज के बजाय अन्य खाद्य पदार्थों पर खर्च करने का अवसर मिला। निचले 20 फीसदी लोगों की स्थिति निश्चित रूप से पहले से बेहतर है। आवागमन, टिकाऊ वस्तुओं और आभूषण आदि पर बढ़ा व्यय इसकी बानगी है।

इस संदर्भ में खाद्य विविधता को बढ़ाने के लिए (कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए यह जरूरी है) सरकार मूल्य समर्थन को गेहूं और चावल के अलावा अन्य अनाज पर लागू कर सकती है। इससे उत्पादन में विविधता लाने और कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने में मदद मिलेगी। अब यह स्थापित हो चुका है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को धान और गेहूं की खेती से बाहर निकलने की जरूरत है।

नकारात्मक पहलू की बात करें तो आंकड़े दिखाते हैं कि पान, तंबाकू और अन्य नशे पर होने वाला व्यय 2.7 फीसदी से बढ़कर 3.2 फीसदी हो गया। 2022-23 में औसत ग्रामीण परिवारों ने इन चीजों पर ताजे फलों से ज्यादा खर्च किया। पैकेटबंद और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर होने वाले व्यय की हिस्सेदारी बढ़ी है और यह बात लोगों के स्वास्थ्य पर असर डालने वाली है।

सरकार को यही सलाह होगी कि वह ऐसे उत्पादों के बारे में जागरुकता फैलाए और खपत सही दिशा में हो सके। खासतौर पर निम्न आय वर्ग वाले समूहों में।

First Published - September 11, 2024 | 9:38 PM IST

संबंधित पोस्ट