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Editorial: बांग्लादेश से रिश्तों की चुनौतियां
भारत समय रहते हसीना के विरोधियों के साथ पिछले रास्ते की कूटनीतिक राह निकालने में नाकाम रहा और हसीना-विरोधी आंदोलन की कामयाबी ने उसे अजीब स्थिति में डाल दिया।
Last Updated- May 19, 2025 | 11:03 PM IST
Bangladesh political crisis
बांग्लादेश की वर्तमान सरकार जिसे छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपदस्थ करके स्थापित किया गया था, वह अपने ही आदर्शों पर खरी उतरने में नाकाम रही है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के अधीन काम कर रही इस सरकार से अपेक्षा थी कि वह साफ-सुथरे और निष्पक्ष चुनाव कराने का माहौल तैयार करेगी। परंतु उसने इस दिशा में सीमित प्रयास किए और कई अवसरों पर तो उसने विरोध प्रदर्शन के दौरान और उसके बाद समाज में उभरे विभाजन को ही बढ़ावा दिया है।
कुछ सप्ताह पहले अंतरिम सरकार के प्रभावी सदस्यों ने अलग होकर एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने का निर्णय लिया और गत सप्ताह सरकार ने हसीना की अवामी लीग को चुनाव लड़ने से रोकने का निर्णय लिया। कोई भी निष्पक्ष पर्यवेक्षक इसे इस रूप में देखेगा कि नया प्रतिष्ठान चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। चूंकि हसीना की प्रमुख आलोचना यही है कि उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए लोकतांत्रिक संस्थानों को प्रभावित किया इसलिए यह समझना मुश्किल है कि नया प्रतिष्ठान वही काम करने के बाद नैतिक रूप से ऊंचे स्तर पर रहने का दावा कैसे कर सकता है? वे खुद ही चुने हुए नहीं हैं।
यूनुस की पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए थी कि देश में आर्थिक स्थिरता बहाल हो और राजनीतिक शांति का माहौल बने। बहरहाल, ऐसा नहीं हुआ। आर्थिक स्थिरता इस बात पर निर्भर करीती है कि बड़े कारोबारी साझेदारों के साथ रिश्ते किस तरह सुधारे जा सकते हैं और निवेशक समुदाय को बांग्लादेश के भविष्य के बारे में सुरक्षित कैसे महसूस कराया जा सकता है। भारत के साथ बढ़ते तनाव और देश में कानून-व्यवस्था की कमजोर हालत को देखते हुए (अवामी लीग के विरुद्ध कदम उठाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को खुलकर धता बताया गया) यह समझ पाना मुश्किल है कि निवेशक देश की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को उदारता से कैसे देखेंगे।
बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है। ऐसे में अगले वर्ष कम विकसित अवस्था से बाहर निकलने और यूरोपीय संघ जैसे कुछ बाजारों में शुल्क मुक्त पहुंच खोने पर उसे कठिन ढांचागत सुधारों से गुजरना होगा। ऐसे में उसकी प्राथमिकता अन्य साझेदारियों को बढ़ावा देना होना चाहिए न कि उन्हें खत्म होने देना। भारत ने अब बांग्लादेश के निर्यात पर कुछ कारोबारी प्रतिबंध लागू किए हैं। ऐसा तब किया गया जब यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर इलाके को लेकर कुछ गलत टिप्पणियां कीं। बहरहाल, भारत ने शायद पिछले कुछ सालों के अनुभव से सबक नहीं लिया। पहले उसने हसीना को खुलकर समर्थन दिया और इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश के नागरिकों के बीच हसीना की अलोकप्रियता ने भारत के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्तों में नकारात्मकता पैदा की।
भारत समय रहते हसीना के विरोधियों के साथ पिछले रास्ते की कूटनीतिक राह निकालने में नाकाम रहा और हसीना-विरोधी आंदोलन की कामयाबी ने उसे अजीब स्थिति में डाल दिया। अब वह नए सत्ता प्रतिष्ठान के साथ संबद्धता नहीं कायम कर रहा। ऐसा रुख मौजूदा विश्व में कामयाब नहीं होगा। भारत अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा समर्थक था लेकिन अब उसे समझ में आ रहा है कि तालिबान के साथ रिश्तों को नए सिरे से आकार देना ही देश के हित में है। क्या हमारे कूटनयिक यह मानते हैं कि तालिबान से बात करना सही है लेकिन बांग्लादेश के साथ नहीं? स्पष्ट है कि इस बारे में काफी चर्चा हो सकती है।
भारत को यह बात समझनी चाहिए कि बांग्लादेश के समाज में भारत को लेकर अविश्वास का माहौल है और यह हसीना को समर्थन देने से उत्पन्न हुआ जबकि वह अधिनायकवाद की राह पर बढ़ गई थीं। ऐसे में रिश्ते बहाल करने की ओर पहला कदम भारत को बढ़ाना होगा। चाहे जो भी हो, बड़े देश को हमेशा छोटे पड़ोसी की चिंताओं को दूर करने के लिए आगे बढ़ना होता है। इस मामले में यह जरूरत दोगुनी है। पड़ोस में स्थिरता लाने के लिए बातचीत की शुरुआत की जानी चाहिए।
First Published - May 19, 2025 | 10:19 PM IST
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