सप्ताहांत पर खबरें आईं कि टेक क्षेत्र की अग्रणी कंपनी ऐपल अमेरिका भेजे जाने वाले अपने सभी आईफोन चीन के बजाय भारत में ही बनाना शुरू करना चाहती है। इसके पीछे की वजह समझना बहुत मुश्किल नहीं है। यह सही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की टैरिफ की जंग सभी साझेदार देशों पर असर डालेगी (इनमें अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष वाले देश शामिल हैं) लेकिन चीन उनके खास निशाने पर है। अमेरिका ने हाल में कहा है कि चीन पर लगाया जा रहा दंडात्मक शुल्क हमेशा नहीं रहेगा मगर यह साफ है कि चीन के साथ कारोबार जोखिम में रहेगा। ऐसे में ऐपल या किसी अन्य बड़ी कंपनी के लिए समझदारी इसी में है कि वह अपने उत्पादन को यथासंभव चीन से बाहर ले जाए और जोखिम कम कर ले।
अगर ऐपल वाकई अपना उत्पादन चीन से भारत ले आती है तो भारत के लिए यह की मोर्चों पर बहुत लाभदायक स्थिति होगी। स्थिति इसी सप्ताह स्पष्ट होगी, जब इस टेक दिग्गज कंपनी की तिमाही आय की रिपोर्ट आएगी और विश्लेषकों के प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। वास्तव में ऐपल ठेके पर फोन बनवाकर भारत में अपना उत्पादन लगातार बढ़ा रही है। एक अनुमान के मुताबिक मार्च 2025 में समाप्त हुए वर्ष में भारत में 22 अरब डॉलर मूल्य के आईफोन असेंबल किए गए, जो उससे पिछले वर्ष की तुलना में 60 फीसदी अधिक आंकड़ा था। ऐपल हर वर्ष अमेरिका में करीब 6 करोड़ आईफोन बेचती है। अगर अमेरिका के लिए ये फोन 2026 से भारत में ही बनाए गए तो उत्पादन दोगुना करना पड़ सकता है।
यह बड़ा मौका होगा। ध्यान देने वाली बात है कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां देसी बाजार पर नजर जमाकर भारत आती हैं मगर ऐपल का जोर दुनिया भर के लिए यहीं पर उत्पादन करने पर है। हालांकि भारत में उसकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है मगर उत्पादन में यह वृद्धि अमेरिका और बाकी दुनिया के लिए होगी। खबरों के मुताबिक 2024 में 1 लाख करोड़ रुपये के आईफोन निर्यात किए गए। इससे विनिर्माण के ठिकाने के तौर पर भारत की क्षमताओं का पता चलता है। खबर यह भी है कि हाल में स्थानीय मूल्यवर्द्धन तेजी से बढ़ा है। ऐसे में उम्मीद है कि उत्पादन बढ़ने पर कलपुर्जे बनाने वाले भी भारत आना चाहेंगे। आर्थिक और भूराजनीतिक माहौल देखते हुए जोखिम कम करने वाली ऐपल इकलौती कंपनी नहीं होगी। दूसरी कंपनियां भी आएंगी। चीन से दूरी बनाने का सिलसिला तो पिछले कुछ समय से चल रहा है लेकिन हालिया कारोबारी झटका इसमें तेजी ला सकता है और भारत के लिए यह अहम मौका होगा।
किंतु कंपनियां खुदबखुद नहीं आएंगी। भारत को भी निवेश आकर्षित करने के लिए प्रयास करना होगा। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारों ने ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिनसे ऐपल का उत्पादन चीन से निकलकर भारत आ सकता है। लेकिन सभी कंपनियों के लिए ऐसा नहीं किया जा सकेगा। इसलिए जरूरी है कि प्रक्रियाओं को तेजी से सहज बनाया जाए ताकि कंपनियां भारत की अफसरशाही के जाल में उलझकर नहीं रह जाएं। उदाहरण के लिए जमीन आसानी से उपलब्ध करानी होगी।
भारत बेशक अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम कर रहा है और खबरों के मुताबिक बात सही दिशा में चल रही है मगर हमें आयात शुल्क में काफी कमी करने की जरूरत है। ऐसा करने से कच्चे माल और उपकरण लाने में आसानी होगी तथा वैश्विक कंपनियों को भारत में पैर जमाने में मदद मिलेगी। इससे विनिर्माण को बल मिलेगा और भारत की बढ़ती श्रम शक्ति को रोजगार मिलेगा। भारत को यह मौका हाथ से निकलने नहीं देना चाहिए। यह आगे चलकर ‘ऐपल मूमेंट’ की तरह याद किया जाएगा, जो देश में विनिर्माण क्षेत्र की तकदीर बदलने वाला साबित हो सकता है।