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Editorial: आचार संहिता की चुनौती

सात चरणों में होने जा रहे आम चुनावों के लिए करीब 96.9 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं। इसके साथ ही चार राज्यों के विधान सभा चुनाव भी होंगे।

Last Updated- March 17, 2024 | 9:53 PM IST
आचार संहिता की चुनौती, Editorial: Challenge of code of conduct

एक महीने से कुछ अधिक समय के भीतर देश में दूसरे सबसे लंबे आम चुनावों का सिलसिला आरंभ हो जाएगा। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का बड़ा उत्सव होगा। भारत जैसे विशाल भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता वाले देश के लिए इस पंचवर्षीय आयोजन का पैमाना कभी कम नहीं था। 2024 के चुनाव का आकार अपने पूर्ववर्तियों को छोटा साबित कर देगा।

सात चरणों में होने जा रहे आम चुनावों के लिए करीब 96.9 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं। इसके साथ ही चार राज्यों के विधान सभा चुनाव भी होंगे। यह आंकड़ा देश की चुनावी कवायद को इस वर्ष अन्य बड़े लोकतांत्रिक देशों में होने जा रहे चुनावों की तुलना में बड़ा बनाने वाला है। उदाहरण के लिए इंडोनेशिया में हाल ही में चुनाव संपन्न हुए। वहां करीब 20.4 करोड़ मतदाता हैं।

अमेरिका जो दुनिया का सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश है वहां करीब 16.8 करोड़ मतदाता हैं। भारत में कुल मतदाताओं में आधी संख्या महिलाओं की है।
अनुमान के मुताबिक ही इन मतदाताओं में जो गरीब हैं वे प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार के निशाने पर हैं। इन चुनावों में युवाओं की अहम भूमिका होगी क्योंकि करीब 29 फीसदी मतदाता 18 से 29 वर्ष की आयु के हैं।

एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारत में करीब दो लाख मतदाताओं की आयु 100 वर्ष से अधिक है। यह एक तथ्य है कि भारत इतने बड़े चुनावों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के जरिये अंजाम देने में कामयाब रहता आया है और हमारे ऊपर 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों की तरह मत पत्रों की हेराफेरी या चोरी जैसे कोई इल्जाम नहीं लगे। इस लिहाज से भारत का प्रदर्शन सराहनीय है।

कुछ चिंता की बातें भी हैं और उनमें से प्रमुख है भारतीय निर्वाचन आयोग की आदर्श चुनाव आचार संहिता की निगरानी और उसे प्रभावी ढंग से लागू कराने की क्षमता। इस लिहाज से देखा जाए तो चुनाव प्रक्रिया को लंबा बनाना मसलन 1999 के 29 दिन से 2019 में 39 दिन और 2024 में उसे 44 दिन करना प्रमुख विपक्षी दलों के बीच विवाद का विषय है। चुनाव आयोग ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि कई चरणों में चुनाव कराना इसलिए आवश्यक है ताकि बड़ी संख्या में केंद्रीय सुरक्षा बलों को
10 लाख से अधिक मतदान केंद्रों पर तैनात किया जा सके।

चुनावों को अंजाम देने के लिए चुनाव आयोग 1.5 करोड़ मतदानकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों की सेवाएं लेता है। चुनाव प्रचार अभियान की आवृत्ति और गहनता को देखते हुए यह यह उम्मीद करना कठिन है कि वह इस बात की प्रभावी निगरानी करे कि सभी दल आचार संहिता का पालन कर रहे हैं अथवा नहीं। चरणबद्ध मतदान भी सवाल पैदा करते हैं। प्रमुख आशंका यह है कि लंबी अवधि तक विस्तारित चुनाव सत्ताधारी दल को असंगत रूप से फायदा पहुंचाते हैं क्योंकि उसके पास सरकारी अधोसंरचना होती है जिसका वह चुनाव प्रचार में फायदा उठा सकता है।

एक और विषय जिस पर अपर्याप्त ध्यान दिया गया है वह है टेलीविजन, वेबसाइट, सोशल मीडिया और फोन का प्रचार उपकरणों के रूप में इस्तेमाल। लंबे समय तक चलने वाले चुनावों में ऐसे आभासी प्रचार प्रतिस्पर्धी दलों को यह अवसर देते हैं कि वे उन इलाकों में भी अपने प्रचार को बढ़ा सके जहां चुनाव आयोग के निर्देशों के मुताबिक मतदान के 48 घंटे पहले प्रचार रोक दिया जाना चाहिए।

अधिकांश दल चतुराईपूर्ण तरीके से इन प्रचार तकनीकों का इस्तेमाल करके प्रचार पर रोक को धता बताने की कोशिश करते हैं। ये वे चुनौतियां हैं जिनसे निर्वाचन आयोग को शीघ्र निपटने की आवश्यकता है। इसके अलावा चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए भी मशविरा जारी किया है।

उदाहरण के लिए उसने सलाह दी है कि प्रचार अभियान मुद्दों पर आधारित होना चाहिए और राजनीतिक दलों को नफरत फैलाने वाले भाषण देने से बचना चाहिए। मतदान की अपीलें जाति और धर्म के आधार पर नहीं की जानी चाहिए और यह प्रमुख चुनाव प्रचारकों की जिम्मेदारी है कि वे शुचिता बनाए रखें। चूंकि चुनाव प्रतिस्पर्धी होते हैं, ऐसे में यह चुनाव आयोग का दायित्व है कि हर कोई नियम कायदों का पालन करे।

First Published - March 17, 2024 | 9:53 PM IST

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