भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में नकदी की स्थिति विगत कुछ तिमाहियों में तेजी से बदली है। वर्ष 2024 के अंत में जहां बैंकिंग व्यवस्था में 2 लाख करोड़ रुपये की कमी थी वहीं अब 3 लाख करोड़ रुपये प्रति दिन के अधिशेष की स्थिति में है और यह राशि कुछ दिनों में बढ़कर 4 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। कई बार केंद्रीय बैंक व्यवस्था को जानबूझकर कमी या अधिशेष की स्थिति में रखते हैं ताकि मौद्रिक नीति संबंधी लक्ष्यों को हासिल किया जा सके, परंतु किसी भी तरह की अति के अनचाहे परिणाम सामने आ सकते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को हाल की तिमाहियों में नकदी की कमी के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा। इसकी एक वजह रुपये के समर्थन के लिए मुद्रा बाजार में उसके द्वारा किया गया हस्तक्षेप भी रही। इससे बाजार में ब्याज दरें बढ़ीं। बहरहाल, रुपये पर दबाव कम होने पर हालात बदले और मुद्रास्फीति संबंधी हालात अनुकूल हो गए।
जैसा कि रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा के 6 जून की मौद्रिक नीति के बाद के वक्तव्य में कहा गया, केंद्रीय बैंक ने जनवरी से 9.5 लाख करोड़ रुपये की टिकाऊ नकदी व्यवस्था में डाली। केंद्रीय बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी 100 आधार अंकों की कमी करने का भी निर्णय लिया जिसे चार टुकड़ों में लागू किया जा रहा है। इससे व्यवस्था में 2.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य की टिकाऊ नकदी आएगी। यही वजह है कि कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी इस वर्ष 5 लाख करोड़ रुपये तक जा सकती है। नकदी की कमी से मुद्रा बाजार की दरें बढ़ती हैं और आम तौर पर ऋण दरों में भी इजाफा होता है। ऐसे में अधिशेष नकदी का विपरीत प्रभाव होता है। व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी से मुद्रास्फीति संबंधी जोखिम बढ़ते हैं। हालांकि निकट भविष्य में भारत मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सहज स्थिति में है लेकिन अतिरिक्त नकदी परिसंपत्ति मूल्य मुद्रास्फीति में इजाफा कर सकती है। उदाहरण के लिए बैंकों ने अन्य दरों के साथ बचत जमा दरों में कटौती की है जिससे बचतकर्ता अपने फंड बेहतर यील्ड वाली परिसंपत्तियों में लगा सकते हैं।
अतिरिक्त नकदी बैंकिंग व्यवस्था को कम दरों पर ऋण देने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है। जैसा कि इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट दिखाती है, कई बाजार प्रतिभागी उस समय चकित रह गए जब एक सरकारी उपक्रम को केवल 6.1 फीसदी की दर पर 1,000 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया। यह लगभग फंड की लागत के ही बराबर है। फंड की सहज उपलब्धता कुछ बैंकों को ऐसी संस्थाओं को ऋण देने को प्रेरित कर सकती है जो अयोग्य हों। बहरहाल, यह ध्यान देने लायक है कि कम नीतिगत दर या अतिरिक्त नकदी शायद बैंक ऋण को बढ़ावा न दे और उसकी कई वजह हो सकती हैं।
विश्व स्तर पर अहम निश्चितता व्याप्त है जो निजी क्षेत्र के निवेश निर्णयों पर असर डालेगी। इतना ही नहीं कंपनियां पूंजी बाजार से और अधिक फंड जुटा रही हैं। जैसा कि रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दिखाती है, पूंजी बाजार से जुटाए जाने वाले संसाधन 2024-25 में 32.9 फीसदी बढ़े हैं और डेट के क्षेत्र में इनमें 60 फीसदी का इजाफा हुआ। इस वर्ष सर्वाधिक कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी किए गए जिनका मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। डेट बाजार में गहराई बढ़ने के साथ ही उच्च दर वाले निगमों को डेट बाजार से फंड जुटाना अधिक आसान लगेगा बजाय कि बैंकिंग व्यवस्था के। ऐसे में प्रतिस्पर्धा बैंकिंग व्यवस्था में शुद्ध ब्याज मार्जिन पर असर डालेगी।
नकदी प्रबंधन के संदर्भ में जहां रिजर्व बैंक परिवर्तनीय दर रिवर्स रीपो वहीं वेटेड औसत कॉल दर भी नीतिगत दर से काफी नीचे है। रिजर्व बैंक अपने हालिया नीतिगत फैसलों के प्रसार को सक्षम बनाने के लिए कुछसमय तक चीजों को इसी प्रकार बनाए रखने का इरादा रख सकता है। यद्यपि उसे प्रणाली में अतिरिक्त नकदी के प्रबंधन के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे। खासकर जब सीआरआर में कमी के कारण और अधिक नकदी जारी होने की उम्मीद है। उसे बाजार को यह भी बताना चाहिए कि वह अतिरिक्त नकदी को किस स्तर पर बनाए रखना चाहता है।